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महावीर : कुछ तथ्य
श्री शोभनाथ पाठक, मेघनगर (झबुमा)
तथा
सत्य, अहिंसा, अस्तेय, अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य की चैत्रे जिनं सिततृतीयजयानिशान्ते, वरीयता से युग को अवगत कराने वाले, २४वे तीर्थकर सोभाह्निचन्द्रमसि चोत्तर फाल्गुनिस्थे ।' महावीर की महत्ता को प्रकिना मुगम नही है, जिनके ।
चत्रमितपक्षफल्गनि शशकियोगे विने त्रयोदश्याम् । म्यादाद व अनेकान्त का सम्बल ममार को मवार, पाकुल
जज्ञे स्वोच्चस्थेषु ग्रहेषु सौम्येषु शुभलग्ने ।' अन्तस को उबारने मे पूर्ण सक्षम है। सह-अस्तित्व, सहि
इन उद्धरणो से यह स्पष्ट हो जाता है कि वर्द्धमान ठणुता व ममन्वय के समवेत स्वर ने उनकी वरवाणी मे
चैत्र शुक्ला त्रयोदशी को शुभ लग्न में पैदा हुए थे। जबकि उद्भत हो, भूले-भटके जनो के हृदय को मम्बल दिया,
अन्य पदो में और भी उल्लेख मिलता है, यथा:मानव को मानवता की तुला पर ऊपर उठाया, तथा ज्ञान
सिद्धार्थनपतितनयो भारतवर्षविदेहकुण्डपुरे । की थाती का अपूर्व कोप धरती पर लुटाया । अाज प्रणु में
देव्या प्रियकारिण्यो सुस्वप्नान्संप्रदय विभ॥' भयभीत मानवता के उद्धार के लिए महावीर का हिमा
अर्थात मिद्धार्थ राजा की प्रियकारिणी (त्रिशला) रूपी अस्त्र वरदान स्वरूप है। ऐसी महान विभूति के
धर्मपन्नी की पवित्र कोग्य से विदेह जनपद के कुण्डपुर ग्राम विषय में कुछ विशिष्ट बातें जानकर हम उनके गिद्धान्तो
मे महावीर का जन्म हमा था। यही बात 'काव्य-शिक्षा' को अपने जीवन में उतारे, इमी अपेक्षा से ज्ञान दवि का में भी की गई है, यथा:-- अतल मे पंठ आनन्दानुभूति से निहाल होने का माहान भातिकालिमाणिक्यं सिद्धार्थो नाम भूपति ।
कुण्डग्रामपुरस्वामी तस्य पुत्रो जिनोऽवतु ।' महावीर का जन्म-स्थान तथा काल
इन नथ्यो में स्पष्ट हो जाता है कि महावीर राजा पाश्र्वेशतीर्थसताने पञ्चाशदद्विशतात्मके ।
मिद्धार्थ की पत्नी विशला की कोख से विदेह जनपद के तब अन्तरवत्यिमहावीरोऽत्र जातवान ।।
का डग्राम मे पंदा हये थे। विदेह-जनपद के अन्तर्गत ही अर्थात पार्श्वनाथ तीर्थकर की तीर्थ-परमाग के ५०
वैशाली था जिमके ममीप ही कुण्डग्राम था जिसे माजकल वर्गाऽभ्यन्तर काल मे तीर्थकर वर्द्धमान महावीर उत्पन्न
वामुण्ड कहते है। यही कारण है कि महावीर का वध
वैशाली व निदेह मे विशेष रूप से ज्ञात होता है जो निम्न हुए । यह शुभ अवसर ५९६ ई० पूर्व का है, जब माना
उद्धरण से उजागर होना है, यथात्रिशला की कुक्षि से मास ७ दिन १२ घटे व्यतीत कर
विशाला जननी यस्य, विशाल कुलमेव च। वईमान चैत्र शुक्ला त्रयोदशी को प्रर्यमा योग में उत्पन्न
विशालं वचनं चास्य, तेन वैशालिको जिनः॥ हुए । यही बात विविध ग्रन्थों से भी पुष्ट होती है, यथा---
विदेह-जनपद से भी महावीर की घनिष्ठता व्यक्त की दष्टेग्रह रथ निजीविगत समलंग्ने,
गई है, यथा : "नाए नायपुत्ते नायकुलचन्दे विदेहदिन्ने, यथा पतितकालमसूत राजी। विदेहजच्चे विदेहसूमाले तीस बासाई विदेहसि कह।" १ बर्द्धगनचरित (प्रमग कवि), १७१८
३ निर्वाणभक्ति,४. २. निर्माण भक्ति, ५; तथा
४. काव्यशिक्षा, ३१. 'प्रच्छिना पावमासे अट्रय दिवमे बहन मियपक्खें ५. सूत्रकृतांग, २१३.
(जपघवला, भाग १, पृ. ७८) ६. कल्पमूत्र-सूत्र ११