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१४६, वर्ष २८, कि०१
अनेकान्त
रूपों की पृथक् पहचान के लिए उनके रूप, वाहन और है । वाहनों के नाम है -वृषभ, कमल, गज, लोहासन, या युधो में अन्तर डाल दिया गया। विद्यादेवियों को स्वतन्त्र मयुर, हम, गरुड, मृग, तुरग, सिंह, कमोन, पाडा, कच्छा, व्यक्तित्व न देने का एकमात्र कारण हम यही ममझो है शूकर, मकर, सर्प, मत्स्य, व्याघ्र, शव, अष्टापद, पुष्प, कि ये यक्षियो मे भिन्न कोई अलग देवी नहीं है । इन शरभ, पुरुष, गोधा, अजगर । विद्यादेवी का रूप तो कल्पित है। सम्भवन इसीलिए मख : साधारणतः सभी देव देविया प्रपने मौम्य रूप दिगम्बर जैन शिल्प में इन देवियों का प्रकन देने में नही मे ही शिल्प मे प्राप्त होते है। किन्तु कुछ देवों के मुख एक प्राया। प्राबू की विमलवसही में इनका अकन प्राप्त होता में अधिक बताये गये है, देवियो में किसी का मुख एक में
अधिक नहीं होता । यक्षो मे तीन, चार, छह और पाठ हिन्दू और बौद्ध परम्पग में भी सरस्वती की मान्यता मब तक माने गये है। त्रिमख, कुमार, पाताल, किन्नर है। उनमे सरस्वती के षोडश पो या पाइश देवि की ग्रोर गोमेद यक्षो के ३ ; महायक्ष, ब्रह्म, पमुख कुवेर, मान्यता नही है। किन्तु षोडश विद्यादेवियों में से अधि- पोर भृकुटि यो के ४; रबेन्द्र यक्ष के ६ और वरुण यक्ष काश देवियो की मान्यता हिन्द और बौद्ध परम्पग मे भी के मन मान गये है। इनके अतिरिक्त, गोमव यक्ष का रही है । देवियों के रूप जैन, किन्द प्रौर बोट परम्पगमा मुख गौ जैसा है तथा मातग और गम्ड यक्षी के मुख बक्र में प्रायः मिलते-जलते रहे है। जैनो के विभिन्न लिखक या कुटिल मान है। भी इन देवियों के रूप के सम्बन्ध में एकमत नही रहे। भुजा : यो मे येवल २, यक्षियो म २, और विद्याइसलिए किमी देवी-मूर्ति को देख कर कि.मी पुरातत्व- देवियो मे २ के हो दो भजायें बताई है। चार भुजा वाले विशेषज्ञ के लिए यह निर्णय करना ग्रति माहमार्ण कार्य देव-देबियो मे १२ यक्षो, १८ यक्षियो प्रौर १३ विद्याही कहा जायेगा कि प्रस्तुत मूति किम परम्पग विशेप से देवियो के नाम है। पड़भजी देव-देवियों में ५ यक्ष और सम्बन्धित है।
२ यक्षी है । अष्टभूजी ३ यक्ष, १ यक्षी और १ विद्यादेवी शासन देवों का रूप · शासनदेव या शामन देवता है। २ यक्ष और १ यक्षी द्वादशभूजी माने है। कहने से शासन रक्षक यक्ष और यक्षी एव विद्यादेवी का प्रायष : शामन देव देवियो में १६ यक्ष प्रोर २० प्राशय लिया जाना है। इनका रूप, वाहन, प्रायुध, मद्रा, यक्षी एक-एक हाथ अभय या वरद मदा म उठाये हुए है। भजायें प्रोर उनमे लिए हए विविध प्रायधी के मम्बन्ध में विद्यादेवियो में दिगम्बर परम्परा के अनुसार एक भी दवी विभिन्न जैन शास्त्री मे ऐकमत्य नहीं मिलता । स्थान के वरद मुद्रा मे नही है। श्वेताम्बर परम्परा के अनुसार सकोच के कारण इस मबको जानकारी विस्तार से न दे कई देवियां वरद मुद्रा मे हाथ उठाए हुए है। इन देवियो के कर यहाँ केवल उमका सकेत मात्र दिया जा रहा है। शेष हाथो में निम्नलिखित प्रायुध या उपकरण है-- माला,
प्रासन-ये सभी देव-देवियां या तो ललितामन मे परश, विजौरा, बज्र, चक्र, फल, त्रिशूल, कमल, अकुश, बैठते हैं अथवा बीरासन मे । ललितामन मे दाया पर तलवार दण्ड, शख कनिका चन्द्र, कमण्डलु, धनुष, दान, पीठासन पर रहता है और वायां पर दायी जघा पर। बाण. नागपाश, सर्प, भाला, घण्टा, मत्स्य, अक्षमाला, वीरासन मे दोनो जघानो के ऊपर दोनो पैरो को रखा। शक्ति, मद्गर, कलश, गदा, मूमल, चाबुक हल, हरिण, जाता है । प्राय: कमल, कूर्म, मकर और पीठामन पर ये पाश, पान पानगुच्छक, पुस्तक, ब ग्वला, वीणा, कुन्त, देव-देवियाँ वीरासन मे मिलते है, शेष वाहनों पर ललिता- खेट और नमस्कार मुद्रा। सन में प्राप्त होते है । ललितासन मे वाहन के एक पार्श्व वर्ण : शासन देव देवियों का वर्ण इस प्रकार है --- की ओर ही दोनो पैर रहते है।
यक्षो मे ३ सुवर्ण, ५ वेत, ११ श्यान २ रक्त, १ वाहन : इन देव-देवियो के वाहन अनेक प्रकार के हरित.१ इन्द्रधनुष पोर १ मदग वण के यक्ष है। १ अनगारधर्मामृत ८.३|| प्रभाचन्द्र कृत क्रियाकलाप ।