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iyR, वर्ष २८, कि० १
अनेकात
थे अथवा कल्पवासी। धरणेन्द्र और पद्मावती भवनवासी यक्षो के नाम इस प्रकार हैं : तिलोयपण्णत्तीदेवों की नागकुमार जाति के उत्तरक्षेत्रीय इन्द्र-इन्द्राणी (१) गोवदन, (२) महायक्ष, (३) त्रिमुख, (४)
___ यक्षेश्वर, (५) तुम्वख, (६) मातग, (७) विजय, पुराणों आदि में विभिन्न स्थनों पर यक्षों के भिन्न- (८) अजित, (६) ब्रह्म, (१०) ब्रह्मेश्वर, (११) भिन्न कार्यों का उल्लेख मिलता है, जैसे यक्षेन्द्र चार धर्म- कुमार, (१२) पण्मुख, (१३) पाताल, (१४) किन्नर, चक्रों को समवसरण मे धारण करते है । यक्ष तीर्थकरों को (१५) किंपुरुष, (१६) गरुड़, (१७) गन्धर्व, (१८) कुबेर, ६४ चमर दलाते है । समवसरण में यक्ष और यक्षी भग
ता भग- (१६) वरुण, (२०) भृकुटि, (२१) गोमेघ, (२२) वान के निकट रहते हैं । सर्वाह्न' यक्ष गज पर प्रारूढ़ हो पाल, (२३) मातंग और (२४) गुह्यक। कर मस्तक पर धर्मचक्र रख कर दोनों हाथों से उसे पकड़ वसुनन्दिकृत प्रतिष्ठासार, संग्रह -(१) गोमुख, रखता है और दो हाथ जोड़े हुए बिहार के समय भगवान् (२) महायक्ष, (३) त्रिमुख, (४) यक्षेश्वर, (५) तुंवर, के प्रागे चलता है। सर्वाह्न यक्ष किस जाति का देव है,
जाति का दव । (६) पुष्प,(७) मातग,(८) श्याम, (६) अजित, (१०) यह ज्ञात नही हो पाया। सम्भवतः वह व्यन्तर जाति का ब्रह्म, (११) ईश्वर, (१२) कुमार, (१३) चतुर्मुख, (१४) होगा। धर्मचक्र को धारण करने वाले यक्षेन्द्र भी व्यन्तर पाताल, (१५) किन्नर, (१६) गरुड़.(१७) गन्धर्व, (१८) जाति के होते है।
रवेन्द्र, (१६) कुबेर, (२०) वरुण, (२१) भृकुटि, ६४ चमर व्यन्तर जाति के यक्ष ढुलाते है । शेष यक्ष- (२२) गोमेद (२३) धरण और (२४) मातंग। यक्षी किस निकाय या जाति के देव है, इस प्रश्न का आशाधरकृत प्रतिष्ठासारोद्धार-सभी नाम वसुनन्दि उत्तर दृष्टिगोचर नहीं हुआ।
के अनुसार है। इसी प्रकार, दूसरा प्रश्न कि प्रत्येक यक्ष-यक्षी युगल नेमिचन्द्रकृत प्रतिष्ठातिलक-सभी नाम वसुनन्दि का पारस्परिक सम्बन्ध क्या था, यह भी अनसुलझा ही के अनुसार है । केवल १३वें यक्ष का नाम षण्मुख है। रख जाता है। किसी प्रतिष्ठा शास्त्र में प्रथवा दिगम्बर- हेमचन्द्रकृत अभिधानचिन्तामणि-चौथा यक्ष यक्षइवेताम्बर ग्रन्थ मे इस सम्बन्ध में कोई संकेत नहीं मिलता। नायक, छटवां सूमुख, पाठवा विजय, ग्यारहवां यक्षेश्वर, केवल धरणेन्द्र और पद्मावती के सबन्ध में उत्तरपुराण तेरहवों षण्मुख, अठारहवां यक्षेन्द्र, तेईसवाँ पाश्वं । शेष मादि शास्त्रों में यह उल्लेख प्राप्त होता है कि वे भवन- नाम वसुनन्दि के समान है। वासी निकाय की नागकुमार जाति के इन्द्र-इन्द्राणी थे। वर्धमानसूरिकृत आचारदिनकर-चोया यक्षेश्वर इनके अतिरिक्त, शेष २३ यक्ष-यक्षी भी क्या इसी प्रकार छटवां कुसुम ; शेष नाम साधारण परिवर्तन के साथ अभिपति-पत्नी थे अथवा नहीं, इस संबन्ध मे कोई सूचना प्राप्त धानचिन्तामणि के समान हैं। नहीं होती।
ठक्कुरफेरुकृतवास्तुसार प्रकरण-चौथा ईश्वर, मठायक्ष यक्षियों के नामों में वैषम्य : तीर्थकरो के रहवां यक्षेन्द्र । शेष हेमचन्द्र के अनुसार है। २४ यक्षो और यक्षियो के नामो के संबन्ध मे पादलिप्तसूरिकृत निर्वाणकलिका-ठक्कूरफेरु के शास्त्रो में बहुत मतभेद या वैषम्य है। दिगम्बर और समान हैं। म्वेताम्बर शास्त्रो में इनके जो नाम उपलब्ध होते है, अपराजितपृच्छ।-पहला वृषमुख, चोथा चतुरानन, वे यहाँ दिये जा रहे है। इससे उनमें कहाँ एकरूपता और नौवां जय, ग्यारहवाँ किन्नरेश। शेष नाम प्राचारदिनकर कहाँ वैषम्य है, यह समझने में सुविधा होगी।
के समान है।
१. उत्तुंगं शरदभ्रशुभ्रमुचित सविभ्रमं विभ्रतं,
यो दिव्य द्विपमारुरोह शिरसि श्री धर्मचक्र दो।
हस्ताभ्यामासितद्युति करयुगेनान्येन बद्धांजलि, तं जैनाध्वररक्षणक्षममिमं सर्वाह्नयक्षं यजे ॥
-प्रतिष्ठातिलक, पृ०६६।