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प्रय श्री नेमिनाथ व्याह
दोहरा छन्द-तुम बिन को ऐसी करे ग्रहो जगत के नाथ। क्या गाली मुझ देत हैं भये सु कहा प्रग्यान ॥१०. बहु सम्बोधन वचन कह सुन्यो सु नमि नमिनाथ । छन्द-जा जग में प्रीतम नम विना और तो सब तो सम छन्द-माथ नवाइ गए जब ही तब ही हरि सिविका ल धाए
जानति हों। सुर चारि प्रकार महामुख कार सुज जिनिन्द्र
तातें मात सुतात छिमा सबसौं प्रबनाहि कही अवमान ति हो
कहक सिर नाए । एवन सुकही उठि ठाढ़ी भई गिरि जाइ सुप्रजित कंकन डारि सुमेर उतार हुए सुसवार सुसामन भाए।
सुठानति हो। हरि हल दोऊ भ्राता जिनि के तात कहां तुम जात नवभव की भो सो प्रीत पिया इसमें क्या चूक वखानति हों।
कहत पाए।६१ वोहराछन्द-नवभव को तुमसौं लगी प्रीति महारसलीन । बोहरा छन्द-राज सम्पदा छोडि कर चले कहां परवीन । चक कहा प्रबके प्रभु सुदास पो भव तजि बीन ॥१०२ समद विज के प्रादि दे बिलखत वदन मबीन ।१२।
छन्द-हम दीन भई विललात अब तुम हो प्रयाल जुनाथ छन्द-तिनिको बहु संबोधन करिके सिविका हरि
हमारे। बल कंध लीन । मौन तजो मुख वैन भजो कर जोरि के पाय परों जु तुम्हारे सात पंड "लकरि चाले बहरि सुविद्याधर परवीन। जगजीवन जाव सु पालत हा मा जावा फिरि सुरिन्द्र ततकाय ततछिन लकरि गिरनारी घरि दीन ।
संभारो। सहां सिंघासन प्रासन ऊपर बैठे जय सुख प्रातमलोन ॥६३ मोह विना निरमोह भयो हमहू तो पिया अब साथ तुम्हारे ।। चाहराछद-तव सुरिन्द्र मानन्द करि प्रस्तुति पढ़ गन गाह। बोहराछन्द-राजलि ने बीच्छा लई भई जिका ताम। छोरोदधि जल लाइ करि प्रभु प्रसनान कराइ ॥६४ दुधर तप तपती भये करम खिपाये वाम ॥१०४ छन्द-तहां बहू भूषन वसन उतारे नगन दिगंबर भए प्रवीन छन्द-करम कलंक खिपाई विए सुकिए तप दुर्घर देह खई। भवभयभीत भए भवतें जब सहसभूप संग दिच्छा लीन । तव हरि जल चंदन अछित लेकरि दीपभूप सम पूजा कोन। प्रस्त्रीलिंग सुछेवि महा ललितंग सुनामा देव भई । अरघ बनाइ गाइ गन प्रभु के फेरि कीये जा नत्य प्रवीन ॥ या भव के अंतर ली रहे फिरि पीय पं जा मिलगे सही। दोहरा छन्द-तव कल्यानक करि जहां इन्द्र गये निज गेह। दोहरा छन्द-या सिसार प्रसार लख भये जतीसुर प्राय । राजुलि करत सिंगार जहां बात कही कई ऐह ||९६ पच महावत धारि के जपं सु प्रातम जाप ।।१०६ छन्द-काहे को सार सिंगार कर
छद-जब नेमोसुर जोग लीयो है घरौ महावत प्रति सुखकार सुनि तेरो पिया गिरनेर गयो री। दिन छप्पन लौं छपस्थ रहै फिर केवल उपजो प्रतिही सार मूछित है घरनी पंपरी मनो वीरज छटका मान परोरी। समोसरन जब रच्यो इन्द्र ने ताकी उपमा को नहिं पार । सुधिबुधि बिसरि गई सभई हम तन त चेतनि दरि भयोरी। सातसौ बरस संबोध कियो जिन परि पाये सो गद सीतल पवन सुचेत कोई मो पीब कहाँ जहाँ नाम लीयो रो।
गिरिनारि ॥१०७ दोहराछन्द-उग्रसैनि पर जाहक राजुलि नायो माथ। दोहरा छंद-प्राउ मास बाकी रही जोग निरोषौ जान । हम गिरि जाइगें जहाँ हमारी नाथ ॥६८
सम्व सूकला षष्टि में पोहो चे पोछि सुथान ॥१०८ छन्द-गयो नर हौ सुकहाजु भयो अब तेरो विवाह सुफेरि छंद-मुक्ति गए न रहे जग न मुनि पंचसो छतीस संग जए
करेंगे। कहे सूदहे वसूकम जवै सुसवै सिवतिय के कत भए। पुर पट्टन दीप समुद्र सबै ले प्रोहित संग सुप्राप फिरेंगे। खिरयो वपु अंग सरीर जहां सुतहां नख केस परे ज रहे। वर श्रेष्ट सुधीइम चन्द्रकला संपूरन छबि वर ल्याइघरोग। हरि हिय में धारि सुचारि प्रकार सुजय जय करत सु घर बैठि सुधीय यिररालि सुऐह उछाह सुफेरि करेंगे IIRE
प्राइ गए ॥१०॥ बोहराछन्द-ग्रहो तात वह नाय विन जगत भ्रात सम मान । दोहरा छंद-चंबन अगर इत्यादि ल सुकीने तन तयार ।