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भगवान महावीर की वैचारिक क्रान्ति
साहू श्रेयांस प्रसाद जैन, बम्बई कांति का सूत्रपात विचारों से होता है और विचार विशेष साधना की उच्च भूमिका में भले ही पूर्ण अहिंसक ही प्राचार और व्यवहार में परिवर्तन लाते है। विश्व हो सके किन्तु सबके लिए पूर्ण अहिंसा सम्भव नही है इतिहास इस बात का गवाह है कि दुनिया में जब भी इसीलिए भगवान महावीर ने मुनियों के लिए महावत कुछ परिवर्तन हुआ तो उसके पीछे चिन्तन और विचार और श्रावकों के लिए प्रणव्रतों का उपदेश दिया। 'जीयो की भूमिका अवश्य रही । समय समय पर संसार में और जीने दो' का सन्देश देने वाले भगवान महावीर ने अनेक महापुरुष हुए जिन्होंने अपने अनुभव, चिन्तन एवं जीने की कला सिखाई । जीवन एक दूसरे के सहयोग पर मनन से मानवजाति का मार्गदर्शन किया।
आधारित होता है । प्रत्येक व्यक्ति जीने और सुख से जीने आज से लगभग अढ़ाई हजार वर्ष पहले भारत की की कामना करता है। दुःख कोई नहीं चाहता, इसलिए पुण्य धरती पर भगवान महावीर ने जन्म लिया। २५०० महावीर ने सभी जीवों के प्रति समता का उपदेश दिया वर्ष पहले का वह युग संसार में वैचारिक क्रांति का युग और हिंसा का विरोध किया। था। दुनियां के और देशों में भी अनेक महापुरुष उस महावीर के युग मे धर्म के नाम पर अनेक क्रियाकाण्ड ममय मे हुए जिसमें सुकरात, कनफ्यूशियस, बुद्ध, जरथुन
यज्ञ एवं पाखण्ड प्रचलित थे और हिंसा को भी धार्मिक आदि उल्लेखनीय हैं । भगवान महावीर जिस युग में हुए
मान्यता देकर धर्म का एक अंग मान लिया गया था।
महावीर ने इस स्थिति में अपने क्रांतिकारी विचारों से उस समय की स्थिति में उन्होंने महान क्रांतिकारी चिंतन लोगों के सामने रखा। सचमुच महावीर क्रांतदृष्टा थे ।
धर्म के नाम पर चलने वाले पाखण्ड भोर हिंसा का प्रति
कार किया। ठीक उसी युग में भगवान बुद्ध ने भी ऐसी क्रांति का प्रथम चरण स्वयं जीवन से ही शुरू होता है।
ही धर्म-क्रांति की भोर महिसा की पावन धारा में सारा बंभव, विलास और भोगों को छोड़ कर त्याग एवं संयम
विश्व पवित्र हो उठा। की भोर उनका सहज झुकाव मानव जीवन के लक्ष्य के
सामाजिक क्षेत्र में जाति-पांति मोर छमाछत का प्रति एक क्रांति थी। संसार के सभी भौतिक सुखो को
बोलबाला था। भगवान महावीर ने कहा-'मनुष्य जन्म क्षणिक मानकर प्रात्मसुख के लिए महावीर ने घर-संसार छोड़कर साढ़े बारह वर्षों तक कठोरतम साधना की।
से नही, कर्म से महान बनता है । जाति से कोई उच्च कैवल्यज्ञान की प्राप्ति के बाद अपने चरम ज्ञान को प्राणी
अथवा नीच नहीं होता।' साधना के क्षेत्र में गरीब और मात्र के लिए पावन गंगा की तरह प्रवाहित किया।
अमीर, राजा या रंक, हरिजन या महाजन का भेद महा___महावीर की क्रांति, भाषा से शुरू होती है। विद्वानों
वीर ने नही स्वीकारा । उन्होंने मनुष्य मात्र को एक
जाति माना। खण्डवन की ओर जाते हए भगवान महाएवं बौद्धिकों के लिए वह युग संस्कृत भाषा एवं प्राकृत का पांडित्यपूर्ण युग था। किन्तु महावीर ने जनभाषा
वीर धीर-गंभीर मुद्रा में बढ़ रहे थे । सामने से एक वृद्ध अर्द्धमागधी को ही अपने उपदेशों के लिए चुना। क्रांति
व्यक्ति उनकी भोर तेजी से दौड़ता हुआ पाया और महा
बीर के पीछे चलने वाली भीड़ ने चिल्ला कर कहाके लिए यह जरूरी है कि जन-जन तक चिन्तन को पहुचाया जाय और इसीलिए विद्वानों की भाषा के स्था नपर
'उसे रोको, मागे मत प्राने दो। यह हरिकेशी चाण्डाल जनभाषा को भगवान महावीर ने अपनाया। महावीर ने
है, छू जायगा किसी कोचिन्तन के क्षेत्र में नई क्रांति दी, नया दृष्टिकोण प्रस्तुत
महावीर दो कदम आगे बढ़ते हुए धीर-गंभीर वाणी किया। उन्होंने सुख की प्राप्ति के लिए अहिंसा का मार्ग
में बोले-'उसे रोको मत, प्रागे पाने दो।' हरिकेशीबताया । अहिंसा का सूक्ष्म विवेचन करते हुए भी महावीर चाण्डाल महावीर के चरणो में झुकने लगा और महावीर ने उसे एकान्तिक या एकपक्षीय नहीं बनाया। व्यक्ति ने उसे गले से लगा लिया । सारे राजकुमार विस्मित हो