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६०, वर्ष २८, कि
अएवं निवासी:
कहा गया है। व्याकरण की दृष्टि से, 'लिच्छवि' शब्द जहाँ तक इसकी सीमा का सम्बन्ध है, गंगा नदी इसे की व्युत्पत्ति 'लिच्छु, शब्द से हुई है। यह किसी वंश का मगध साम्राज्य से पृथक् करती थी। धीरे चौधरी के नाम रहा होगा । बौद्ध ग्रंथ 'खुदकपाठ' ) षषोषशब्दों में, "उत्तर दिशा में लिच्छवि-प्रदेश नेपाल तक कृत) की अट्ठकथा में निम्नलिलित रोचक कथा है-काशी विस्तृत था।" श्री राहल सांकृत्यायन के अनुसार, वज्जि- को रानी ने दो जुड़े हुए मांस-पिण्डो को जन्म दिया और प्रदेश में माधुनिक चम्पारन तथा मजज्फरपुर जिलों के उनका गगा नदी में फिकवा दिया। किसी साध ने उनको कुछ भाग, दरभंगा जिले का अधिकांश भाग, छपरा जिल उठा लिया और उनका स्वयं पालन-पोषण किया। वे के मिर्जापुर एवं परसा, सोनपर पुलिस-क्षेत्र तथा कुछ निच्छवि (त्वचा-रहित) थे। काल-क्रम से उनके अंगों का अन्य स्थान सम्मिलित थे।
विकसित हुप्रा और वे बालक-वालिका बन गये। बड़े होने बसाढ में हए पुरातत्व विभाग के उत्खनन से इस
पर वे दूसरे बच्चों को पीड़ित करने लगे, अतः उन्हें दूसरे स्थानीय विश्वास की पुष्टि होती है कि वहा राजा विशाल
बालको से अलग कर दिया गया। (वज्जितन्व-जिका गढ़ था । एक मुद्रा पर अंकित था-'वेशालि इनु · ट
तब्य)। इस प्रकार ये 'वज्जि' नाम से प्रसिद्घ हुए। ..'कारे सयानक ।" जिसका अर्थ किया गया, "वैशाली साधु ने उन दोनों का परस्पर विवाह कर दिया और राजा का एक भ्रमणकारी अधिकारी।" इस खदाई में जैन तीर्थ से ३०० योजन भूमि उनके लिए प्राप्त की। इस प्रकार दूरों की मध्यकालीन मूर्तियां मी प्राप्त हुई है।
उनके द्वारा शासित प्रदेश 'वज्जि-प्रदेश' कहलाया।" वंशाली की जनसंख्या के मुख्य अंग थे-क्षत्रिय । श्रीर चौधरी के शब्दों में "कट्टर हिन्दू-धर्म के प्रति उनका सात धर्म: मैत्री भाव प्रकट नहीं होता। इसके विपरीत, ये क्षत्रिय
मगधराज अजात शत्रु साम्राज्य-विस्तार के लिए जैन, बौद्ध जैसे पब्राह्मण सम्प्रदायों के प्रबल पोषक थे।
। लिच्छवियो पर आक्रमण करना चाहता था। उसने अपन
म मनुस्मति के अनुसार, "झल्ल, मल्ल, द्रविड़, खस आदि के मन्त्री बसकार (वर्षकार) को बद्ध के पास भेजत हुए समान वे वात्य राजन्य थे।"१२ यह सुविदित है कि प्रात्य कहा- ब्राह्मण ! भगवान बद्ध के पास जाग्रो पौर का अर्थ यहां जैन है, क्योकि जैन साधु एवं धावक हिसा मेरी पोर से उनके चरणों में प्रणाम करो। मेरी ओर से पत्य, पौर्य, ब्रह्मचर्य पार परिपह इन पांच लोग उनके पारोग्य तथा कुशलता के विषय में पूछ कर उनसे
उपयुक्त श्लोका र लिच्छ- निवेदन करो कि वैदेही-पुत्र मगधराज प्रजातशत्रु ने वियों को निच्छवि' कहा गया है। कुछ विद्वानों ने लिच्छ- वज्जियों पर आक्रमण का निश्चय किया है और मेरे ये विकों की तिब्बती उदगम' सिंदद करने का प्रयत्न किया शब्य कहो--'वज्जि-गण चाहे कितने शक्तिशाली हो, मै हैं परन्तु यह मत स्वीकार्य नहीं है। अन्य विद्वान के अनु- उनका उन्मूलन करके पूर्ण विनाश कर दूंगा। इसके बाद सार लिच्छवि भारतीय क्षत्रिय है, यद्यपि यह एक तथ्य सावधान होकर भगवान तथागत के बचन सुनो।"" और है कि लिच्छवि-गणतन्त्र के पतन के बाद वे नेपाल चले पाकर मुझे बताभो । तथागत का वचन मिथ्या नहीं होता। गये और वहां उन्होंने राजवंश स्थापित किया ।"
मजात शत्रु के मन्त्री के वचन सुन करप ने मंत्री लिडर' शब्द की व्युत्पति :
को उत्तर नहीं दिया बल्कि अपने शिष्य प्रानन्द से कुट - जैन-ग्रंथों में लिच्छवियों को लिच्छई' अथवा 'लिच्छवि प्रश्न पूछे और तब निम्नलिखित सात अपरिहानीय धमों - १२: झल्लो मल्लाश्च राजन्या: प्रात्यालि लिच्छिविरेवधो १४. री डेबिड्स (अनुवाद) बुद्ध-सुस्त (सेक्रिड-बुक्स
... नटपच करणश्च खसो द्रविड एव च। १०२२. आफ ईस्ट-भाग ११-मोतीलाल बनारसीदास, देहली १३. भरतसिह उपाध्याय--वही-पुष्ट ३३१.
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