________________
वैशाली-गणतन्त्र
0 श्री राजमत न दिल्ली वंशाली-गणतन्त्र के वर्णन के बिना जैन राजशास्त्र "हे भिक्षुषों ! देव-सभा के समान सुन्दर इस लिच्छविका इतिहास अपूर्ण ही रहेगा। वैशाली-गणतन्त्र के निर्वा- परिषद को देखो। चित राष्ट्रपति ('राजा' शब्द से प्रसिद्ध) चेटक की पुत्री महात्मा बुद्ध ने वैशाली-गणतन्त्र के मादर्श पर भिक्ष त्रिशला भगवान् महावीर की पूज्य माता थीं" । (श्वे- संघ की स्थापना की। भिक्षु संघ के छन्द (मत-दान) ताम्बर-परम्परा के अनुसार, त्रिशला चेटक की बहन थी) तथा दूसरे प्रबन्ध के ढंगों में लिच्छवि (वैशाली) गणतंत्र भगवान महावीर के पिता सिद्धार्थ वैशालीके एक उपनगर का अनुकरण किया गया है।"(राहल सांकृत्यायन पुरातत्व'कुण्डग्राम' के शासक थे । अत: महावीर भी 'वैशालिक' निबन्धावली-पृष्ठ १२) यद्यपि बुद्ध शाक्य-गणतन्त्र से अथवा 'वैशालीय' के नाम से प्रसिद्ध थे । भगवान महा- सम्बद्ध थे (जिसके अध्यक्ष बुद्ध के पिता शुद्धोदन थे). वीर ने संसार-त्याग के पश्चात् ४२ चातुर्मासो मे से छः तथापि उन्होंने वैशाली-गणतन्त्र की पद्धति को अपनाया। चातुर्मास वैशाली में किये थे। कल्प-सूत्र (१२२) के अनु- हिन्दू राजशास्त्र के विशेषज्ञ श्री काशीप्रसाद जायसवाल मार महावीर ने बारह चातुर्मास वैशाली में व्यतीत किये के शन्दों मे "बौद्ध संघ ने राजनैतिक संघों से अनेक बातें
प्रहण की। बुद्ध का जन्म गणतन्त्र में हमा था.। उनके महात्मा बुद्ध एवं शाली:
पड़ोसी गणतन्त्र-संघ ये मोर वे उन्हीं लोगों में बड़े हाम। ___ इसका यह तात्पर्य नहीं कि केवल महावीर को ही उन्होने अपने संघ का नामकरण 'भिक्षु-संघ' अर्थात् भिक्षुओं वैशाली प्रिय थी। इस गणतन्त्र तथा नगर के प्रति महात्मा का गणतन्त्र किया। अपने समकालीन गुरुमों का अनुकरण बद्ध का भी मधिक स्नेह था। उन्होंने कई बार वैशाली करके उन्होंने अपने धर्म-संघ की स्थापना में गणतंत्र में बिहार किया था तथा चातुर्मास बिताए । निर्वाण से संघों के नाम तथा संविधान को ग्रहण किया । पालि-मूत्रा पूर्व जब बुद्ध इस नगर में से गुजरे तो उन्होंने पीछे मुड़ में उपत, बुद्ध के शब्दों के द्वारा राजनैतिक तथा धार्मिक कर वैशाली पर दृष्टिपात किया और अपने शिष्य प्रानन्द संघ व्यवस्था का सम्बन्ध सिद्ध किया जा सकता है।" से कहा, "प्रानन्द ! इस नगर में यह मेरी अन्तिम यात्रा विद्वान लेखक ने उन सात नियमों का वर्णन किया है होगी।" यहीं पर उन्होने सर्वप्रथम भिक्षुणी-संघ की स्था- जिनका पूर्ण पालन होने पर वज्जि-गण (लिन्यवि एव पना की तथा प्रानन्द के अनुरोध पर गौतमी को अपने विदेह) निरन्तर उन्नति करता रहेगा । इन नियमों का संघ में प्रविष्ट किया। एक अवसर पर जब बुद्ध को वर्णन महात्मा बुद्ध ने मगघराज अजात शत्रु (जो जिलिच्छिवियों द्वारा निमन्त्रण दिया गया तो उन्होंने कहा- गण के विनाश का इच्छुक था) के मन्त्री के सम्मुख किया।
१. मुनि नथमल-श्रमण महावीर, पृ. ३०३ २. इदं पच्छिमकं आनन्द ! तथागतस्स बेमालिद
स्सनं भविम्यति । ३. उपाध्याय श्री मुनि विद्यानन्द कृत 'तीर्थकर वर्षमान
से उधत
यंस भिक्खवे ! भिवम्वनं देवा तावनिमा अदिट्टा, प्रलोकेथ भिक्खवे! लिच्छवनी परिसं. अपलोकेष । भिक्खये ! लिच्छवी परिसर! उपसंहरथ भिक्सवे।
लिच्छवे! लिच्छवी परिसर तावनिसा सदसति ॥ ४. श्री काशी प्रसाद जायसवाल-हिन्द योनिटी