Book Title: Anekant 1975 Book 28 Ank Visheshank
Author(s): Gokulprasad Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 38
________________ महाराज प्रशोक मोर जैनधर्म प्राचीन जैन इतिहास संग्रह भाग ५ पृ० ४० के अनु- तथा भावों को तर्क रूपी कसौटी पर घिसकर जांच सार अशोक के स्तम्भ लेखो मे पशु-वध और जल-प्राणियों करने से उसका लिखवाने वाला जैनधर्मी स्पष्ट सिद्ध हो का शिकार मादि अनेक प्रकार की हिसा पर अष्टमी, चतु- जाता है। (विस्तार के लिये, प्राचीन जैन इतिहास संग्रह दशी, पर्युपण (दशलक्षण पर्व) तीनो ऋतुमो के (कार्तिक, भाग ५ पृ० ३४ से ४० तथा भारतीय इतिहास : एक फाल्गन, पाषाढ़के अन्तिम पाठ-पाठ दिन) पठाई-पर्व मादि दृष्टि) मि० एस० बैल भी एशिपाटिक सोसायटी के जिन ५६ दिनो मे पाबन्दी लगाई है, ये सब दिन जैन धर्म जरनल भाग ६ पृष्ट १६६ पर लिखते है कि अशोक के पवित्र पर्व है। इनकी जैसी मान्यता जैनधर्म में है, बौद्ध स्तम्भ लेखों से उसका प्रम न केवल पशु पक्षियों से बल्कि धर्म मे नही। अनेक विद्वानो का विश्वास है कि जैन पर्व जलकाय, वायुकाय मादि सूक्ष्म जीव जन्त से भी प्रका के दिनो मे जीवहिंसा का रोकना अवश्य यह प्रकट करता होता है।" अशोक के स्तम्भ लेख यह प्रकट नही है कि इनको लिखवाने वाला महाराज अशोक जैन धर्मी करते कि वह बौद्ध धमौं था।" निःसन्देह प्रशोक था। सिद्धान्तों से अत्यन्त प्रभावित था।" अशोक के प्राज्ञापत्र) ___ अशोक के स्तम्भ लेखो के ऊपरी सिरे पर बने हुए प्रो० विलसन के शब्दो में, बौद्ध धर्म की अपेक्षा जैन धर्म सिंह-चिह्न का महात्मा बुद्ध के सिद्धान्तो से कोई सम्बन्ध से अधिक मिलते है" और उसके शिलालेख उसको जैन नहीं। सिह भ० महावीर का सुप्रसिद्ध चिह्न हे जिनकी धर्मी सिद्ध करते है।" मेजर जनरल फरलाग के शन्नो स्मति मे अशोक ने सिहयक्त स्तम्भ स्थापित कराये। में अशोक के स्तम्भ लेख एक सच्चे जैनधर्मी सम्राट के इतिहास रत्न डा. ज्योति प्रसाद का कहना है कि अशोक खुदवाये हुए है" । रायल एशियाटिक सोसाइटी के जरनल के शिलालेखो में कोई ऐसी बात प्रकट नहीं होती जिससे भाग ६ पृ० १६१-१६८ के अनुसार अशोक ने स्तम्भ उसका बौद्धधर्मी होना सिद्ध होता हा। अनेक विद्वानो स्थापित करने के विचार जैन धर्म स ही लिया। प्रशोक का कथन है कि अशोक के स्तम्भ लेखो की लिपि, शब्दों ने अपने लेखों में जैन पारिभाषिक शब्दो और भाषा का 16. Pillar Edicts show Ashoka's love towards the poor anafficted, towards the hip ds and quaerapede, towards the fouls of the air and beings that move in water. ---Rev. S Beal. Journal of Royal Asia Society vol. IX p. 199. 17. Inscriptions do not say that Ashoka embraced the doctrine of Gautama Budba. -Journal of mythic Society vol. XVII. p. 276. 18. Ashoka was specially influenced by the Jain doctrines as regard sacredness of in. violability of life. -Rev. H. Heras. Journal of Mythic Society XVII p. 271. 19. His (Ashoka's) Ordinance concerning sparing of animal life agree much more closey with the dicos of the heretical Jain than those of the Buddhists. -Prof. Wilson. (a) Journal of Royal Asiatic Society. 1883, p. 275. (b) Indian Antiquary vol. V p. 205. 20. Inscriptions of Asnoka prove his faith in Jainism. -- Jain Antiquary, vol. V p. 86. 21 His (Asoka's) Inscriptions are really those of a Jaina Sovereign. -Major General Furlong, Short Studies in Science of Comparative Religions. 22. Asoka graped the idea of building pillars from Jainism. The animals and symbols, which he used, are also found in Jainism. -Journal of Royal Asiatic Society, Vol IX, PP. 161 to168.

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