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पर्व २८, कि० १
अनेकान्त
सन्बन्धी चित्र अंकित है।
जैनियों के चौबीस तीर्थडुरों के प्रतीक हैं। धर्म युग ४. अशोक ने भ० महावीर के जन्म स्थान वैशाली २४-१-७१ के अनुसार भारत सरकार ने २२-७-१९४७ से में महावीर-चिह्न-युक्त सिंह स्तम्भ बनवाया" । प्रो. डा० इस पारे युक्त धर्मचक्र को अपने राष्ट्रीय ध्वज मे पूष्पमित्र ने अनेकान्त वर्ष २५ पृ० १७६ पर कहा कि अपनाया। वैशाली का यह स्तम्भ महात्मा बुद्ध की स्मृति मे बन- ७. प्रसिद्ध हिन्दू प्रामाणिक मासिक कल्याण १९५० वाया, संगत नहीं है क्योंकि ऐसा होता तो वह वीर-चिह्न पृ० ७३६ मे कथन है कि प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव का सिंह के स्थान पर बुद्ध के प्रतीक ही स्थापित करता। भी अशोक उपासक था। उसने अपने रामपुरषा स्तम्भ में
५. डा० पृष्पमित्र ने अनेकान्त वर्ष २५ पृ० १७० ऋषभ-चिह्न वृषभ स्थापित किया। पर यह भी बताया कि केवल ज्ञान के पश्चात तीर्थङ्कर ८. इतिहास के खोजी विद्वान मुकर्जी के 'अशोक,' भगवान चतुर्म ग्वी प्रतीत होते है। अनेक अत्यन्त प्राचीन १०८८ के अनुसार अशोक ने जैन साधुनों के प्रयोग चौमुखी तीर्थदर मूर्तियों का पुरातत्व विभाग के अधि- के लिए बहत सी गुफाएं बनवाई। अशोक तथा इसके कारियों को कंकाली टीला मथरा आदि अनेक स्थानों से प्रपौत्र दशरथ ने भी बिहार प्रान्त के बरेबर तथा नागारप्राप्त होना और लखनऊ आदि अनेक राज्य-पुरातत्व संग्रहा- जनी की पहाड़ियो मे भी अनेक गुफायें बनवायी" और लयों में प्राज भी उनका सुरक्षित होना जैन-धर्म मे चोमुखी उनकी देखभाल के लिए विशिष्ट अधिकारी नियुक्त मूर्तियों की पुष्टि करता है। अशोक ने जैन धर्म की इस किये। प्रथा से प्रभावित होकर ११वें जैन तीर्थवर श्रेयास जी सांची के तोरण-द्वार पर प्रशोक ने बाईमवें की जन्म भूमि सिंहपुरी में (वाराणसी के निकट) अपने ,
तीर्थदर नेमिनाथ के समोशरण की रचना कराई। कुछ स्तम्भ में चौमखी सिंह स्थापित किये और अहिंसामयी
विद्वान इसको बौद्ध विहार समझते है किन्तु सुप्रसिद्ध
मान दमको बौट विहार समझते है भारत सरकार भी महावीर के इस चौमुखी सिंहचिह्न को विद्वान त्रिभवन दास लहेर चन्द शाह ने प्राचीन भारत राष्ट्रीय चिह्न बना कर सिक्कों और नोटो पर इसका (गजराती) में इस सांची स्तुप पर तर्क पूर्वक प्रकाश प्रयोग करती है।
डालते हुए स्वीकार किया कि ये बौद्ध विहार नही है और ६. तीर्थर जब विहार करते है तो धर्म चक्र मागे- न इसका बौद्ध धर्म से कोई सम्बन्ध है। यह सम्पूर्ण रूप प्रागे चलता है और यह धर्म चक्र समस्त तीर्थङ्करो का से जैन धर्म का स्मारक है। विशेष चिह्न है। अशोक तीर्थरों का परम भक्त था। १०. अशोक बौद्ध सम्वत का नही बल्कि वीर सम्बत तीर्थङ्कर हर युग में चौबीस होते है । अशोक ने अपने धर्म का प्रयोग करता था। अशोक के पाठवें स्तम्भ-मभिलेख चक्र में चौबीम पारे बनवाये । अहिंसा वाणी वर्ष १५ में सम्बत २५६ अंकित है। कुछ विद्वान इसे बुद्ध निर्वाण पृ० ३२१ के अनुसार, भूतपूर्व प्रधान मन्त्री, भारत पंडित सम्वत समझते है किन्तु ऐसा मामने से अशोक का समय जवाहरलाल नेहरू के शब्दों में भी धर्म चक्र के चौबीस पारे ५४४ से २५६ घटा कर २८८ ई० पू० होता है जबकि
36 Asoka Pillar is surmounted by a lion,
which is the signifying emblem of the last Thirthankara, Lord Vardhamana Mahavira.
-Journal of Bihar & Orissa Research
Society, vol. III PP. 465-467. 37. Asoka also got excaved many a caves for the use of Sramans (Jain monks).
-Mookerjee's Asoka P. 88.
38. A group of caves in Bartara and Nagar
juni hills (Bihar) dedicated by Asoka and Dasarath for the use of Ajivika Sect. (Jain Ssints) -Kuraishi, List of Ancient Monuments Protected under Act VII of 1904 in the Bihar and Orissa Provinces (1938) p.
33.
39. The edicts of Asoka show that he appoin
ted special officers for looking into the affairs of Jainism. Prof. Keran's Asoka.