Book Title: Anekant 1975 Book 28 Ank Visheshank
Author(s): Gokulprasad Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 41
________________ ३८, वर्ष २८, कि० १ भनेकान्त भारतीय इतिहास : एक दृष्टि के पृ० १०० के अनुसार इस प्रकार प्रशोक का उससे पहले और उसखे बाद समस्त वह जैन प्राचार्य सम्प्रति का शिष्य था। इसने अपने परिवार तथा उसका मौर्य वश और कूल जैनधर्मी था तो राज्य में हजारों जैन मन्दिर और हीरे-पन्ने, रत्नो प्रादि ऐसी शक्ति के अभाव में जो उसके हृदय को बदल दे, बदमल्य जवाहरातों की हजारो मूर्तिया (२४ तीर्थङ्करो अशोक जैन धर्म से कैसे पछता रह सकता था ? की) बनवा कर स्थापित की। न केवल भारत में बल्कि प्रशोक द्वारा विदेशों में धर्म-प्रचार: विदेशों तक में जैनधर्म फैलाने के लिए चन्द्रगुप्त के समान चन्द्रगुप्त मौर्य के जीवन काल में अशोक तक्षशिला प्रचारक भेजे । डा० विन्सेन्ट स्मिथ के अनुसार (अली (पाकिस्तान) का गवर्नर था, उसने वहाँ बुद्ध-धर्म का हिस्टरी आफ इण्डिया पृ०२०२-२०४) सम्प्रति ने अरब, नही, बल्कि जैनधर्म का प्रचार किया। उस समय सिकन्दर ईरान. अफगानिस्तान प्रादि अनेक देशो में जैन संस्कृति महान भारत में प्राया तो उसे तक्षशिला में बौद्ध भिक्षु स्थापित की। नहीं बल्कि जैन नग्न साधु अधिक संख्या में मिले । रायल ८. शालिशक (१६०-१७० ई० पू०)- अशोक का एशियाटिक सोसायटी, बोम्बे ब्रान्च के जरनल भाग ४ पृ० प्रपौत्र और सम्प्रति का पुत्र और उसका उत्तराधिकारी ४०१ के अनुसार सिकन्दर उन जैन मनियो के ज्ञान, तप था। यह भी सुदढ़ जैन श्रावक था। स्मिथ की अर्ली तथा आचरण से प्रभावित होकर स्वयं उनके पास तत्त्वहिस्टरी आफ इन्डिया पृ० १६६ के अनुसार इसने भी चर्चा के लिए गया और यूनान ले जाने का निमन्त्रण अपने पिता सम्प्रति के समान दूर-दूर तक विदेशों में जन- दिया। अशोक के स्तम्भ लेखो से सिद्ध है कि उसने धर्म का प्रचार किया। सीरिया, मिश्र, यूनान, अरब, लंका, अफगानिस्तान आदि अशोक के दूसरे सम्बन्धी दशरथ और उसके देव- अनेक देशो मे अपने धर्म का प्रचार करने के लिए प्रचारक वर्मन, फिर सतधनुष और फिर बृहद्रथ मौर्य वश के राजा भेजे"। यदि अशोक बोद्ध धर्मी होता तो वह वहाँ वौद्धहा जो जनधर्मी थे और उन्होंने जैनधर्मका ही प्रचार किया। धर्म का प्रचार कराता और वहाँ कुछ न कुछ बौद्ध धर्म के भारतीय इतिहास : एक दृष्टि पृ० १००-१०२ के अनु- चिह्न निश्चित रूप से अवश्य मिलने चाहिए थे परन्तु मार उन्होने जैन धर्म की प्रभावना के अनेक कार्य किये। बौद्ध-धर्म के स्थान पर वहाँ, एशियाटिक रीसर्चेस भाग ३ 30. Samprati was a great Jain Monarch and a staunch supporter of the faith. He errected thousands Jaina temples throughout his Empire and constructed a large number of images. He sent Jain Missionaries and asects abroad to preach Jainism in the distant countries and spread the faith there. - Jain Siddhant Bhaskar, Vol. XVI PP. 114-117. 31. A nacked Sraman-Acharya (Jain Preacher) went to Greece as his Samadhi spot was found marked at Athens. Indian Historical Quarterly vol. lI p. 293. The Gymnophists, whom Alexahder the great encountered near Taxilla were no doubt Jain sarmans. JBBRAS vol. IV p. 401. Likewise Ceylon was a great resort of Jains till the begining of chronicles. It is evedent even from Buddhist Chronicles that Nirgranthas (Jain naked Saints) predominated at Anuradha-pur in Ceylon, and were influcntial enough to attract the attention of the ruling monarch; who built a vihar (Jain temple) and a monastry for them in 3rd century B.C.-The Indian Seat of the Jainas p. 15. These continued to flourish till 80 B.C. It means that Jainism remained in Ceylon long after Asoka. J.A. Vol. VII p. 22. The traces of existence of Jainism in the countries of Arabia, Persia, and Afghanisthan, (Cunnig ham's Ancient Geography of India (New Edn) p. 674) are also available, which proves that Asoka formed his religion on the basis of Jainism and preached in as well. -Jain Antiquary vol VII PP. 23 to 25.

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