Book Title: Anekant 1975 Book 28 Ank Visheshank
Author(s): Gokulprasad Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

View full book text
Previous | Next

Page 39
________________ ३६, वर्ष २८, कि.१ अनेकान्त प्रयोग किया है। पीर उनपर वृषभ, सिह, अश्व बना दिया कि न केवल नर नारियो, पशु-पक्षियो बल्कि वाना जैन धर्म के प्रभाव का फल है। जलकाय, अग्निकाय और वायकाय के जीव-जन्तुषों की इस प्रकार सन्मति सन्देश मार्च १६६१ के अनुसार अशोक हत्या बन्द करने के आदेश अपने स्तम्भ लेखों में अंकित के शिलालेखो पर वास्तव में जैन धर्म की गहरी छाप है। कगये । ऐसी सूक्ष्म दया जैन धर्म के अतिरिक्त किसी अहिंसा प्रावि सिद्धान्तों के प्राधार पर : अन्य धर्म या सम्प्रदाय में नहीं पायी जाती। कुछ विद्वान अशोक को दयालु होने के कारण बौद्ध- बौद्ध धर्म में मास-भक्षण का निषेध नही। स्वयं धर्मी बताते है परन्तु श्री राजमल मडवैया, (पुरातत्वा- महात्मा बुद्ध का शरीरान्त मांस-भक्षण के कारण हुमा न्वेषक, भूतमार्गदर्शक शासकीय जिला पुरातत्व संग्रहालय, था।" इसके विपरीत जैन धर्म मे मास-भक्षी को नरकगामी विदिशा म० प्र०) ने अपने विदिशा-वैभव के पृ० ६३४ की संज्ञा दी है। स्वयं बुद्ध के समय केवल जैनधर्मी ही पर कथन किया है कि अशोक बड़ा निर्दयी था। उसने मास के त्यागी थे। जैन अन्टीक्वरी भाग ५ के अनुसार वंश के वंश नष्ट कर दिय । लिग-विजय के नरसहार उस समय ब्राह्मण व बौद्ध प्रादि स्पष्ट रूप से मांस-भक्षण को सुनकर हृदय कॉप उठना है। अशोक ने राज्य-लिप्सा करते थे। अशोक ने जैन धर्म के प्रभाव से न केवल स्वय के पीछे अपने दसो बडे भाइयो का घात कर दिया। मास का त्याग किया बल्कि अपने परिवार तक को इस लाखों मनुष्यों को मौत के घाट उतार कर दिग्विजा की। महान पाप से रोकने के लिए राज्य भोजन शाला में भी हजारों बच्चों को अनाथ और हजारो स्त्रियो को विधवा मास भक्षण पर रोक लगा दी। बनाया । यह विदिशा के जैनधर्मी नगर सेट थेष्टि की अशोक ने मास-भक्षण, पशु-बध, पशुबलि तथा पशुप्रभावशाली जैन महिमा की प्रेरणा का ही फल है कि यज्ञ आदि धर्म के नाम पर होने वाली हर प्रकार की अशोक ने हिंसा न करने का प्रण किया और इस प्रकार हिसा पर राज्य-प्राज्ञा द्वारा प्रतिबन्ध लगाकर हर प्राणी जैन धर्म को ही यह श्रेय प्राप्त है कि उसने अशोक का को जियो और जीने दो (Live & Let Live) की हृदय पलट दिया और उसका जीवन इतना अहिमामयी गारन्टी दी। 22-A. Asoka used technical terms and lan- have died from the effect of eating bad guage of Jains in composing of his cdicts. pork, with which he had been treated by a (1)-E. Senari Les Inscriptions Pıyasidsı, sweeper host", PP.505-513. (11)-- Jai Antiquary, Vol. PP. 9-15. --Traditional History of India p. 198. 22-B. The monuments of Asoka and their 25. In the Budhist period, it was only Jainism, symbols betray the influence of Jainism who condenined meat dishes. Brahmans on Asoka and he closely followed and copied Jain ideas in his buildings. and Buddhists and others freely partake -Jain Antiquary, Vol. VI, P.9. them, hence the statement of Asoka that 23 Asoka gave practical example of his piety in the end, he abolished hinsa for his royal towards living beings. Rogulations were kitchen altogether, betrays the influence of instituted for the protection of animals Jainism on him. Asoka's reign was and birds and forests were not to be burni. TRUELY A JAIN RAJYA.J. Antiquary No animal food was served at the Imperial table : vol. V PP. 53 to 60& 81to89. ---Dr. Zimmir : Philosophics of India, pp. 26. Asoka abolished killing of animals on all 497-498. account. No body was allowed to kill any 24. Buddha does not appear to have been a living being even for sake of religious vegetarian, if he were one. he would not belief or 10 santiate to sensual cravings.

Loading...

Page Navigation
1 ... 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268