________________
महावीर का गृह त्याग
डा० कस्तूर चंद कासलीवाल एम. ए. पी. एच. डी. दिन बीतते देर नहीं लगती । राजकुमार महावीर पूरे को बुलाया और लगे करने बात इस विषय पर। महावीर युवा हो चुके थे। सुन्दरता में वे कामदेव को भी लजित वहां श्राये और मौन होकर बैठे रहे। वे माता पिता के करने लगे थे। उनके प्रत्येक अंग की शोभा निराली थी। भावों को ताड़ गये थे इसलिये स्वयं ने इस विषय पर जब वे हाथी पर चढ़ कर वन विहार अथवा नगर दर्शन मौन रहना उचित समझा। उस समय वहां केवल छह को निकलते तो प्रजा जन महावीर जैसे सुन्दर एवं योग्य सदस्य थे-महाराज सिद्धार्थ, महारानी विशला, महावीर, राजकुमार को देव फूली नहीं समाती। अनेक मुन्दरियां प्रधान मंत्री, सेनाध्यक्ष तथा प्रजा की ओर से एक उनके दर्शन मात्र से ही पुलकित हो उठतीं और उन्हीं के प्रतिनिधि । समान सुन्दर वर पाने की कामना करतीं। कभी वे उस मौन को भंग करते हुये महाराज सिद्धार्थ ने कहाराजकुमारी के भाग्य की भी सराहना करती जिसके भाग्य “युवराज, अब तुम पूर्ण युबा हो चुके हो । गत वर्षों में महावीर जैसा पति पाना लिया था। बड़े बड़े राजा से राज्य कार्य में भी कभी कभी हाथ बटाते रहे हो । महाराजा महावीर के विवाह के लिये अपनी कन्या देने का तुम्हारी बुद्धि, शासन योग्यता एवं न्यायप्रियता की सभी प्रस्ताव रखते । इस तरह के प्रस्ताव आये दिन अपने लेकिन श्रोर से प्रशंसा हो रही है । प्रजाजन एवं राज्य कर्मचारी महावीर विवाह के प्रश्न को सदा टालते रहे । राज्य कार्य में तुम्हें अपने शायक के रूप में देखना चाहते हैं। इसलिये भी वे बहुत कम समय दे पाने लेकिन जब भी थोड़ा समय अाज हम सबने यह निश्चय किया है कि तुम्हें युवराज वे देते राज्य की बारीक से बारीक गुन्थियों को सहज ही वे घोषित कर दिया जाये और शीघ्र ही तुम्हारा विवाह सुलझा दने । न्याय करने में निष्पक्ष रहने और अपने कलिग देश की सुन्दर राजकुमारी यशोधग से कर दिया विशिष्ट ज्ञान से दूध का दूध और पानी का पानी करते। जावे । हमारी इस इच्छा को तुम बहुत दिनों से टालने इसलिये मटे लोग तो उनके पास जाने में भी मंकोच रहे हो, लेकिन अब उसे भविष्य के लिये स्थगित नहीं करतं । महावीर दिन प्रति दिन बड़े होने लगे। माता पिता किया जा सकता।" को चिन्ता बड़ने लगी। प्रजा में विवाह प्रश्न पर विभिन्न महाराज के इस प्रादेश के पश्चात महारानी विशला प्रकार की चर्चा होने लगती । प्रजा के प्रतिनिधि उनसे ने कहा "राजकुमार मां बाप की इस एक मात्र इच्छा को विवाह के प्रश्न को लेकर मिलते और विवाह के पश्चात राज्य पूर्ण करना पुत्र का कर्तव्य होता है । मैं और म्वयं महाकार्य सम्हालने की प्रार्थना करते । लेकिन मावीर का सय राज तुम्हारे जन्म से ही उस दिन की श्राशा लगाये बैठे को एक ही उभर होता कि अभी उन्हें इस प्रश्न पर विचार हैं जिस दिन तुम अपनी वधू के साथ राज महल में प्रवेश करने का समय ही नहीं मिला है। जनपद सभात्रों में करोगे । इस सुनसान महल में फिर से प्राकर्षण कर दोगे विवाह करने का अनुरोध के प्रस्ताव पास होने और उन्हें और तुम जानते हो कि महाराज की शकि दिन प्रति दिन महावीर की सेवा में भेजा जाता । उनके विचारों में परि- घट रही है। इस लिये वे शापन का पारा भार तुम्हें सौंपने वर्तन करने के लिये अनेक प्रकार के प्रायोजन किये जाते। लिये प्रामुर हो रहे हैं। नाच गान होने। वन विहार के आयोजन होते तथा प्रधान मंत्री ने अपने प्रायन से खड़े होकर एवं तीन सुन्दर से सुन्दर चित्र उनकी सेवा में भेजे जाते लेकिन बार पादर अभिवादन करने के पश्चात् निवेदन किया किसी को भी सफलता नहीं मिलती। अन्त में एक दिन "गजकुमार । सारी प्रजा श्रापको युवराज के रूप में देखना महाराज सिद्धार्थ ने महारानी त्रिशला के प्राग्रह से महावीर चाहती है और उसकी हार्दिक इच्छा है कि पाप पूर्ण रूप से