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अनेकान्त
गौतम-असत्याचरण का ।
प्राप्त करने से पूर्व शिकार खेलते समय एक गर्भवती मृगी श्रानन्द-प्रभो! आप ही प्रायश्चित करें। आप ही को अपने बाण से मारा था और उस हिंमा-कृत्य पर गर्वित से प्रसत्याचरण हुना है।
हुआ था, मैंने कैसा लक्ष्य साधा है कि एक बाण से हिरणी प्रानन्द की इस दृढ़ता पूर्ण वार्ता को सुन कर गौतम
और उसके गर्भस्थ बच्चे बींध गए । उम अकृत्य की अतिशय स्वामी सम्भ्रान्त हुए। वहां से चल कर महावीर प्रभु के पास
शलाघा से यह निकाचित (नहीं टूटने वाजा) कर्मबन्ध हुआ माए और वह सारा वार्तालाप उन्हें कह सुनाया। भगवान् महावीर ने कहा-गौतम तुम्हारे से ही प्रत्याचरण हुआ है।
चौर वह तुझे अनिवार्य रूप से भोगना ही पड़ेगा। तू प्रानन्द के पास जा और उनसे क्षमा याचना कर ।
___ वृद्धावस्था में वही श्रेणिक राजा राज्यलोलुप पुत्र गौतम स्वामी तत्काल श्रानन्द के घर पाये और कहा- कोणिक के द्वारा कारावास में डाला गया माता चेलना के प्रानन्द ! भगवान महावीर ने तूझे ही सत्य कहा है। मैं द्वारा कोणिक दुत्कारा गया तो उसे अपने कृत्य पर पश्चावृथा विवाद के लिए नरे से क्षमा चाहता हूँ।
साप हुया और वह पिता को मुक्त करने के लिए कारावास ___ 'हिरण्यमयेन पारेण सत्यम्यापिहितं मुग्खम्' स्वर्ण पात्र
की ओर गया । श्रेणिक ने समझा, यह दुष्ट पुत्र मेरी से सत्य का मुख ढका रहता है। किन्तु भगवान श्री महा- और भी विडम्बना करना चाहता होगा । अच्छा वीर इस उत्रि के विरोधी थे। वे सत्य को प्रात्मा का मह- है, मैं अपने आप मर जाऊं । राजा के हाथ में विष मुद्रिका भावी गुण मानते थे, अतः वस्तु सत्य हमारी अपेक्षा में चाहे थी और वह उस माध्यम से प्रात्म हत्या कर मर गया वह कितना भी कटु क्यों न हो, वे मृदु ही समझते थे और और नरकगामी हुश्रा। उसके उद्घाटन में कभी सकुचाते नहीं थे। एक बार भग- साधक का प्रात्म-बल असीम होता है, किन्तु शरीर वान श्री महावीर बृहत्-श्रमण समुदाय के साथ राजगृह कभी कभी उसे तिरोहित कर स्वयं उसपर छा जाता है। नगर में पधारे । राजा श्रेणिक राज-परिवार और सेना साधक जब अपनी अभिलषित मंजिल पर पहुंच जाता है, के साथ बड़े ठाठ से बन्दन करने के लिए आया । विशाल श्रात्म-पक्ष गौण हो जाता है । साधक से मिद्ध बन जाता परिषद में धर्मोपदेश हुधा । वंशना के अन्तर श्रेणिक राजा है। शरीर व्यतिरिक्त श्रात्मा का उस समय स्पष्ट श्राभास ने खड़े होकर विनम्रभाव से भगवान से पूछा-भगवन् ! होने लगता है। भगवान महावीर को अपनी साधनाकाल
आपके प्रति मेरी अगाध श्रद्धा है। अतः बताएं, मैं यहां से में अनेक भंयकरतम उपसर्ग झेलने पड़े थे। उनमें वे काल धर्म को प्राप्त होकर किम यानि को प्राप्त करूगा अम्लान रहे किन्तु जब उन्होंने कैवल्य प्राप्त कर लिया सारी परिषद् जानने को उत्सुक हो उठी थी। श्रेणिक के था। और जनता को प्रात्म-कल्याण का प्रादर्श मार्ग मन में अपूर्व उत्साह था और निश्चय था, भगवान मेरे बतलाया। उन्होंने अहिया की पूर्ण प्रतिष्ठा को प्राप्त किया, लिए विशिष्ट गति का ही निरूपण करेंगे।
जिससे उनके समक्ष जाति विरोधी जीवों का और भाव भगवान ने उत्तर दिया श्रेणिक ? यहां से श्रायुप्य मिट गया उनकी अहिंसा के दिव्य आलोक में हिंमा रूप पूर्ण कर तू पहले नरक में पैदा होगा।
तिमिर विलीन हो गया और जनता में सुख शान्ति का श्रेणिक स्तब्ध रह गया। सारी परिषद् विस्मित हो मामाज्य हो गया। इसी कारण जनता अाज भी अपने उठी। भगवान ने कहा-श्रेणिक ! इरो मत ! विराट् सुखों की उपकारी का भक्ति पूर्वक स्मरण करती है।
ओर जाते हुए तुम्हाग यह नरकावाम बहुत ही लघु है । उस भगवान श्री महावीर का जीवन अहिंसा व सत्यमय नरक योनि को पार कर तू फिर मनुष्य योनि प्राप्त करेगा और था। उनका श्रात्म-बल अचुण्ण था । अतः शरीर बल भी मेरे ही जैसा भावी चौबीमी का प्रथम तीर्थकर होगा। उसके अधीन ही रहता था। उनके जन्म दिवस के उपलक्ष श्रेणिक-भगवान ! किस कर्मों के परिणाम म्वरूप
में करौडों व्यक्ति जहां धन्दा का अर्घ्य समर्पित करें, वहां मुझे यह नरक का भोग मिला ? भगवान-तूने पाहत-धर्म
अहिंसा, सत्य व प्रात्म-बल की पुनीत प्रेरणा भी अपने में १ यह कथा श्वेताम्बर परम्परा सम्मत है।
संजोये।