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किरण १]
ग़दरसे पूर्वकी लिखी हुई ५३ वर्षकी 'जंत्रीवास'
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रहे पुत्र उत्पब हुआ, जिसका नाम 'नथामिह' रक्खा गया। बाबा थे, जो बा. दूलहरायजीके छोटे भाई ना। (यह नाम बादको 'नत्थूमल' नामसे व्यवहारमें पाया तथा वातावरसिंहजीके लघुपुत्र और बाबा कन्हैयालालजीके प्रमिद्धिको प्राप्त हुमा और ये ही जा० नत्थूमनजी इन लघुभ्राता थे ।। पंक्तियोंके लेखक (जुगलकिशोर मुख्तार) के पूज्य पिता है') १८ फर्वरी १८४८, शुक्रवार---दिन शादी राजाराम,
२७ मई १८४६, बुध--कचहरी तहसील मरपावा बारात सहारनपुर गई। का नीलाम ४५०) रु. में हुश्रा, मगर मुल्तवी रहा। १६ अप्रैल १८४८ रविवार-(चैत सुदि १३
२६ मई १८४६, शुक्रवार-प्राजकी तारीम्वमें संवन १६०५ को) श्रीमहाराजजीकी पूजाके उच्छाद हए, नीलाम (मकान) कचहरी तहसील सरसावाका ४५०) रु. ।
सैकड़ों भादमी बिरादरीके प्रमा हुए। में बनाम शामवाल के खतम हुआ।
१६ अप्रैल १८४८, बुध-परसावामें श्रीमहाराजजी .। (नोट हाशिया) मकान तहमीन परमावामें चौथाई।
शिखरमन्द मन्दिरमें विराजमान हुए। हिस्सा ना सन्तलाल(महारनपर) चौथामा
१८ जून १८४८, मंगल-फतचन्दन मकरमें मेहरब नली (या रमजान अली), चौथाई हिस्सा दाँधी
प्रोहदे वकालतपर भाकर मुकदमात रजू किये। राम और चौथाई हिस्मा शामलालका मुकर्रर हुश्रा और
१५ जुलाई १८४८ मंगल-साहब कलक्टर बहादुर बैनामा (हर एकका) अलग अलग लिखा गया।
मिस्टर दलूविम (?) माडव मसूरी पहाइमे ग़ार (गड)
में गिरकर मरगये, फतह चंद उस जगह मौजूद था। ___३ सितम्बर १८४६, गुरुवार--कालेराय साहब (जैन) डिप्टी कलक्टर वास्ते इन्तजाम मल्क जदीद जमना
३ दिसम्बर १८४८, रविवार-बरखुर्दार शंगमलाल' पारके सुखतानपुर (जि. महारनपुर) से तशरीफ़ लाये।
की हवेली पूर्वस्वीका मगून (मुहतं) हा और वाया
उत्तरकी तरफस शुरू किया गया। १ नवम्बर १८४६, रविवार--सरकी मजरी में कचहरी तहसील सरसावास बर्खास्त होकर कम्बे नकुड में
२६ जनवरी १८४६, मोमवार-सुलतानपुर गई और वहां कचहरी तहसील की (विल्डिग बनी)।
(जि. सहारनपुर) में पूजाजी हुई और पहले उच्छायो १ जनवरी १८४७ शुक्रवार-(नंट हाशिया)
(उत्पम) में पन्द्रह हजारके करीब प्रादमियों का हजूम हुआ। इस सालमें ऐमा कागज स्टाम्प आया चिममें कि एक
२ फर्वर्ग १८४६, शुक्रवार-सुलतानपुरमें (पिछले) तरफ सुर्घ मुहर और उसमें कीमत लिखी हां।।
उच्छाम्रो होकर महाराजजी मन्दिरमें स्थापित हुए। २६ जनवरी, १८४७, मंगल-नकुड़में ला.
१८ फरवरी १८४६, रविवार-अजाज धर्मदामके शीलचंदजीने पूजाजी कराई, जिममें पांच हजार के करीब
दो घदी रात बाकी रह पुत्र पैदा हुआ, जिसका नाम आदमी जमा हुए।
शङ्करलाल रखा गया। ३० जनवरी १८४७ शनिवार-नकुड में शिखर- २० जनवरी १८५., रविवार--राजा खुशहालसिंह वन्द मन्दिा में महाराजकी स्थापना हुई।
के पुत्र राजा हरबंस सिंह लंदौरे वालेका देहान्त हुआ। १ फवरी १८४७, सोमवार-कचहरी मन्सफी २५ जनवर ५८५०, शक्रवार-राजा दलीपसिंह सरसावाये बर्खास्त होकर नकुडमें (पहलीबार) हुई। बाली लाहौर मय घरके पादमियों के सहारनपुर पाए और
११ अक्तूबर १८४७, सोमवार-कदरू बहलबान लाहौरका स्थान छोड दिया। डेढ़ इ. माहवार तनख्वाह पर नौकर रखा गया।
५ जनवरी १८५१, रविवार--(नोट हाशिया) इस १६ फर्वरी १८४८, बुध-दिन जोनार (वही दावत) माल पर्दीकी मौसममें बहुत बीमरी फैली, सैंकडों प्रादमी शादो अजीज राजाराम ।) यह ना राजाराम भी अपने एक २ य६ बाबा फतहचंदनीक, पत्र थे और इनके दो पुत्र मित्तर१ श्रापके तीन पुत्रों में बड़े चौ. हींगनलाल और छोटे बा० सेन तथा किन्तचंद हुए, जिनकी मन्नति मौजूद है।
रामप्रसाद अोवरसियर थे--दोनोंके पुत्रादिक मौजूद हैं। ३ इन चचा शङ्करलाल के पुत्र चमनलाल थे।