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भनेकान्त
[वर्ष ८
साहबके पेट में नाभिक नीचे दर्द शुरू हुआ।
स्त्री, दोनों गोते, पुत्र मुंशी और उसकी पुत्री सब इस २ जून १८४४ रविवार--एक घडी दिन बाकी अक्तूबर महीने में मर गये। रहनेपर पूज्य पिताजी दूलहराय माहव अमरलोकमें तश- ३ नवम्बर १८४५, सोमवार--साहबान सदरका रीफ ले गये (उनका स्वर्गवास होगया)।
हुक्म मरसावामें मुन्सफीकी कचहरी नियत करनेका पाया। २० जून १८४४, गुरुवार-श्रोहदा वकालत चिख- ५नवम्बर ५८४५, बुध-अमलामुन्सफ्रीकासरसावा कानाकी मन माहब जज .. 'माहबके हजूरमं फतहचंद भागया। (पुत्र ला. दूनहराय) के नाम होगई।
४ दिसम्बर १६४५, गुरुवार-बमूजिव सरकुलर २० अगस्त १८५४ मंगल--(नोट हाशिया) द्वितीय नं. १८५५ मवर्ख: २५ नवम्बर सन् १९४५ और रोबकार भावन और भादोंके महीनों में जाडेसे बुखारकी बीमारी इम हार्वे पाहब जज मवर्खः ४ दिसम्बर सन १६४५ मन्सफी
टाटा और सैकड़ों के नाजिरोंसे एक हजार रु. की जमानत लेनेका हुक्म हुआ। प्रादमी मर गय ।
३० दिसम्बर १८४५, मंगलवार-आजकी तारीख ३० सितम्बर १८४४, सोमवार-जनाब ला०
के गजट सदरमें हुक्म है कि--"जिस मुकदमेमें मुन्सिफ महामिह माहब (साकिन सहारनपुर ) अमरलोकको कूच चाहें कि सालिस मुकर्रर होकर तसफिया फरीकेनका होजाय कर गये।
और फरीकेन पंचायतसे इनकार करते हो तो मुन्सिफ अक्तूबर १८४४, मंमल--धरके योग ना. साहबको अख्तियार है कि खुद हस्वराय अपने विला मुहरसिंहकी उग्रवाहीमें सहारनपुरको रवाना हुए। दस्तखत फरीकेन ऊपर इकरारनामेके पंचायत मुकर्रर करके
२३ दिसम्बर १८४४, सोमवार--तामीर छत्री तसफिया मुकदमेका करादें।" (म्मारक) जनाब दूलहराय साहब शुरूहुई [मंगसिर २६ (यह हुक्म इसी तरह हिन्दी भाषामें दर्ज जंत्री. (सुदि १४) संवत् ११.१],
और इममे ऐपा मालूम होता है कि अदालतोंमें हिन्दी १८ फवरी १८४४, मंगलवार-ला. बहादुरसिंह जारी हो जानेसे वह गजट सरकारी में भी इसी रूपसे दर्ज मौदागरमल पिसरान बा. दीनदयालने मन्दिरजीमें होकर पाया है।) उच्छाओ (उत्सव) श्रीमहाराजक कराये और करीब दसहजार १५ जनवरी १८४६, गुरुवार--(नोट हाशिया) भादमी विरादरीके जमा हुए।
इस साल अंग्रेजों और राजा दलीपसिंह बाहर वालंके २२ फवेरी १८४५, शनिवार--बा. बहादुरसिंहने दरम्यान भारी संग्राम हुआ, लाखों भादमी दोनों तरफके मन्दिरजीमें श्री भगवानको स्थापन कराया और (पाए हए) मारे गये। अन्त में विजय अंग्रेज साहबान सममी गई विरादरीके भादमी रवाना होगये।
और राजा पटियाला अंग्रेजोंक माथ रहा। सरदार जीतसिंह ३ अक्तूबर १८४५, शुक्रवार-दारोगा धौंकलसिंह लाडवावाला मौजा नसरुल्लापुरमे भागकर बाहौरकी तरफ (महारनपुर ) का देहान्त हुमा-पहारनपुर वाले ला. पहुँचा. उसका देश व सामान अंग्रेजों के अधिकार में पाया। सन्तलालके पिताका देहान्त हुआ।
८ फर्वरी १८४६, रविवार-कौलवी मुहम्मदफजल नाट हाशिया माह सितम्बर १८४५-नस महीने अर्ज म तहसीलदारी सरमावाके पोहदेपर तशरीफ लाये में जे की बीमारीसे सैंकड़ों बादमी सहारनपुर और जगाधरी और तनख्वाह तहसील सहारनपुरकी २१०). पाएँगे। में मर गये और बाडेका बुखार बहुत जोरोंपर है।
१८ मार्च १८४६, बुध--आज तारीखके गजटमें नोट हाशिया माह अक्तूबर १८४५--सरदारमती हुक्म है कि राजीनामा मुहमाइबाह ( प्रतिवादी) के समक्ष (सैयद साकिन सरसावा)के मर जाने के बादसे (जिमकी तसदीक हुए बिना मंजूर न हो। मृत्युका उल्लेख जंत्रीमें ५ अक्तूबर को हुभा है) उसके मई १८४६, शुक्रवार--वैशाख सुदि छठ सं० घरके भादमियों पर प्रास्मानी माफत आन पड़ी-इसकी १९०३ को अजीज धर्मदासके घरमें बह छही रात बाकी