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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
प्राणों को कष्ट में डाल कर स्वार्थ सिद्ध करने वाला' कहे । और नदियों के तीर्थ बहुत सम हैं, इस प्रकार बोले । तथा ये नदियाँ जल से पूर्ण भरी हुई हैं; शरीर से तैरने योग्य हैं, इस प्रकार न कहे । तथा ये नौकाओं द्वारा पार की जा सकती हैं, एवं प्राणी इनका जल पी सकते हैं, ऐसा भी न बोले । (प्रयोजनवश कहना पड़े तो) प्रायः जल से भरी हुई हैं; अगाध हैं, ये बहुत विस्तृत जल वाली हैं,-प्रज्ञावान् भिक्षु इस प्रकार कहे ।
३३३-३३५] इसी प्रकार सावध व्यापार दूसरे के लिए किया गया हो, किया जा रहा हो अथवा किया जाएगा ऐसा जान कर सावध वचन मुनि न बोले । कोई सावद्यकार्य हो रहा हो तो उसे देखकर बहुत अच्छा किया, यह भोजन बहत अच्छा पकाया है; अच्छा काटा है; अच्छा हुआ इस कृपण का धन हरण हुआ, (अच्छा हुआ, वह दुष्ट) मर गया, बहुत अच्छा निष्पन्न हुआ है; (यह कन्या) अतीव सुन्दर है; इस प्रकार के सावध वचनों का मुनि प्रयोग न करे । (प्रयोजनवश कभी बोलना पड़े तो) 'यह प्रयत्न से पकाया गया है', 'प्रयत्न से काटा गया है' प्रयत्नपूर्वक लालन-पालन किया गया है, तथा यह प्रहार गाढ है, ऐसा (निर्दोष वचन) बोले ।
[३३६] यह वस्तु सर्वोत्कृष्ट, बहुमूल्य, अतुल है, इसके समान दूसरी कोई वस्तु नहीं है, यह वस्तु अवर्णनीय या अप्रीतिकर है; इत्यादि व्यापारविषयक वचन न कहे |
[३३७] कोई गृहस्थ किसी को संदेश कहने को कहे तब 'मैं तुम्हारी सब बातें उससे अवश्य कह दूंगा' (अथवा किसी को सन्देश कहलाते हुए) 'यह सब उससे कह देना'; इस प्रकार न बोले; किन्तु पूर्वापर विचार करके बोले ।
[३३८] अच्छा किया यह खरीद लिया अथवा बेच दिया, यह पदार्थ खराब है, खरीदने योग्य नहीं है अथवा अच्छा है, खरीदने योग्य है; इस माल को ले लो अथवा बेच डालो (इस प्रकार) व्यवसाय-सम्बन्धी (वचन), साधु न कहे ।।
[३३९] कदाचित् कोई अल्पमूल्य अथवा बहुमूल्य माल खरीदने या बेचने के विषय में (पूछे तो) व्यावसायिक प्रयोजन का प्रसंग उपस्थित होने पर साधु या साध्वी निरवद्य वचन बोले ।
[३४०] इसी प्रकार धीर और प्रज्ञावान् साधु असंयमी को यहाँ बैठ, इधर आ, यह कार्य कर, सो जा, खड़ा हो जा या चला जा, इस प्रकार न कहे ।
[३४१-३४२] ये बहुत से असाधु लोक में साधु कहलाते हैं; किन्तु निर्ग्रन्थ साधु असाधु को–'यह साधु है', इस प्रकार न कहे, साधु को ही-'यह साधु है;' ऐसा कहे । ज्ञान और दर्शन से सम्पन्न तथा संयम और तप में रत-ऐसे सद्गुणों से समायुक्त संयमी को ही साधु कहे ।.
[३४३] देवों, मनुष्यों अथवा तिर्यञ्चों का परस्पर संग्राम होने पर अमुक की विजय हो, अथवा न हो, इस प्रकार न कहे ।
[३४४] वायु, वृष्टि, सर्दी, गर्मी, क्षेम, सुभिक्ष अथवा शिव, ये कब होंगे ? अथवा ये न हों इस प्रकार न कहे ।
[३४५] मेघ को, आकाश को अथवा मानव को–'यह देव है, यह देव है', इस प्रकार की भाषा न बोले । किन्तु यह मेघ' उमड़ रहा है, यह मेघमाला बस्स पड़ी है, इस प्रकार बोले ।