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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
[७८] -यह अवधिज्ञान भवप्रत्ययिक और गुणप्रत्ययिक दो प्रकार से है । और उसके भी द्रव्य, क्षेत्र, काल और भावरूप से बहुत-से विकल्प हैं ।।
[७९] नारक, देव एवं तीर्थंकर अवधिज्ञान से युक्त ही होते हैं और वे सब दिशाओं तथा विदिशाओं में देखते हैं । मनुष्य एवं तिर्यंच ही देश से देखते हैं ।
[८०] यहाँ प्रत्यक्ष अवधिज्ञान का वर्णन सम्पूर्ण ।
[८१] भंते ! मनःपर्यवज्ञान का स्वरूप क्या है ? यह ज्ञान मनुष्यों को उत्पन्न होता है या अमनुष्यों को ? हे गौतम ! मनःपर्यवज्ञान मनुष्यों को ही उत्पन्न होता है, अमनुष्यों को नहीं । यदि मनुष्यों को उत्पन्न होता है तो क्या संमूर्छिम को या गर्भव्युत्क्रान्तिक को ? गौतम ! वह गर्भव्युत्क्रान्तिक मनुष्यों को ही उत्पन्न होता है । यदि गर्भज मनुष्यों को मनःपर्यवज्ञान होता है तो क्या कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों की होता है, अकर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों को होता है अथवा अन्तरद्वीपज गर्भज मनुष्यों को होता है ? गौतम ! कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों को ही होता है । यदि कर्मभूमिज मनुष्यों को मनःपर्यवज्ञान उत्पन्न होता है तो क्या संख्यात वर्ष की अथवा असंख्यात वर्ष की आयु प्राप्त कर्मभूमिज मनुष्यों को होता है ? गौतम ! संख्यात वर्ष की आयु वाले गर्भज मनुष्यों को ही उत्पन्न होता है । यदि संख्यातवर्ष की आयुवाले कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों को होता है तो क्या पर्याप्त० को या अपर्याप्तसंख्यात वर्ष की आयुवाले को होता है ? गौतम ! पर्याप्त संख्यात वर्ष को आयुवाले कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों को ही होता है ।
यदि मनःपर्यवज्ञान पर्याप्त, संख्यात वर्ष की आयु वाले, कर्मभूमिज, गर्भज, मनुष्यों को होता है तो क्या वह सम्यकदृष्टि० या मिथ्यादृष्टि० अथवा मिश्रदृष्टि पर्याप्त संख्येय वर्ष की आयु वाले कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों को उत्पन्न होता है ? सम्यग्दृष्टि पर्याप्त संख्यात वर्ष की आयु वाले कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों को ही होता है । प्रश्न-यदि सम्यग्दृष्टि पर्याप्त, संख्यातवर्ष की आयु वाले कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों को होता है, तो क्या संयत० को होता है, अथवा असंयत० को या संयतासंयत-सम्यग्दृष्टि पर्याप्त संख्यात वर्ष की आयु वाले कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों को होता है ? गौतम ! संयत सम्यग्दृष्टि पर्याप्त संख्यात वर्ष की आयुवाले कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों को ही उत्पन्न होता है । यदि संयत सम्यग्दृष्टि पर्याप्त संख्यात वर्ष की आयु वाले कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों को उत्पन्न होता है तो क्या प्रमत्त संयत० को होता है या अप्रमत्त संयत सम्यग्दृष्टि पर्याप्त संख्यातवर्ष-आयुष्क को ? गौतम ! अप्रमत्त संयत सम्यग्दृष्टि पर्याप्तक संख्यातवर्ष की आयुवाले कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों को ही होता है । -यदि अप्रमत्तसंयत सम्यग्दृष्टि पर्याप्त संख्यात वर्ष की आयु वाले, कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों को मनःपर्यवज्ञान उत्पन्न होता है तो क्या ऋद्धिप्राप्त० को होता है अथवा लब्धिरहित अप्रमत्त संयत सम्यग्दृष्टि पर्याप्त संख्यात वर्ष की आयु वाले को होता है ? गौतम ! ऋद्धिप्राप्त अप्रमाद सम्यग्दृष्टि पर्याप्त संख्यात की वर्ष आयुवाले कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों को ही मनःपर्यवज्ञान की प्राप्ति होती है ।
[८२] मनःपर्यवज्ञान दो प्रकार से उत्पन्न होता है । ऋजुमति, विपुलमति । यह संक्षेप से चार प्रकार से है । द्रव्य से, क्षेत्र से, काल से, भाव से । द्रव्य से-ऋजुमति अनन्त अनन्तप्रदेशिक स्कन्धों को जानता व देखता है, और विपुलमति उन्हीं स्कन्धों को कुछ अधिक