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अनुयोगद्वार - २६६
यह अर्थ समर्थ नहीं है । क्या व्यावहारिक परमाणु पुष्करसंवर्तक नामक महामेघ के मध्य में से होकर निकल सकता है ? हाँ, निकल सकता है । तो क्या वह वहाँ पानी से गीला हो जाता है ? नहीं, यह अर्थ समर्थ नहीं है ।
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क्या वह व्यावहारिक परमाणउ गंगा महानदी के प्रतिस्रोत में शीघ्रता से गति कर सकता है ? हाँ, कर सकता है । तो क्या वह उसमें प्रतिस्खलना प्राप्त करता है ? यह अर्थ समर्थ नहीं है । क्या वह व्यावहारिक परमाणु उदकावर्त और जलबिन्दु में अवगाहन कर सकता है ? हाँ, कर सकता है । तो क्या वह सड़ जाता है ? यह यथार्थ नहीं है ।
[२६७] अत्यन्त तीक्ष्ण शस्त्र से भी कोई जिसका छेदन-भेदन करने में समर्थ नहीं है, उसको ज्ञानसिद्ध केवली भगवान् परमाणु कहते हैं । वह सर्व प्रमाणों का आदि प्रमाण है ।
उस अनन्तान्त व्यावहारिक परमाणुओं के समुदयसमितिसमागम से एक उत्श्ल - क्ष्ण्लक्ष्णिका, श्लक्ष्णश्लक्ष्णिका, ऊर्ध्वरेणु, त्रसरेणु और रथरेणु उत्प्न होता है । आठ उत्श्लक्ष्णश्लक्ष्णका की एक श्लक्ष्णश्लक्ष्णिका होती है । आठ श्लक्ष्णश्लक्ष्णिका का एक ऊर्ध्वरेणु । आठ ऊर्ध्वरेणुओं का एक त्रसरेणु, आठ त्रसरेणुओं का एक रथरेणु, आठ रथरेणुओं का एक देवकुरु - उत्तरकुरु के मनुष्यों का बालाग्र, आठ देवकुरु- उत्तरकुरु के मनुष्यों के बालाग्रों का एक हरिवर्ष- रम्यक्वर्ष के मनुष्यों का बालाग्र होता है । आठ हरिवर्ष - रम्यक्व के मनुष्यों के बालाग्रों के बराबर हैमवत और हैरण्यवत क्षेत्र के मनुष्यों का एक बालाग्र होता है । हैमवत और हैरण्यवत क्षेत्र के मनुष्यों के आठ बालाग्रों के बराबर पूर्व महाविदेह और अपर महाविदेह के मनुष्यों का एक बालाग्र होता है । आठ पूर्वविदेह - अपरविदेह के मनुष्यों के बालाग्रों के बराबर भरत- एरावत क्षेत्र के मनुष्यों का एक बालाग्र होता है । भरत और एरावत क्षेत्र के मनुष्यों के आठ बालाग्रों की एक लिक्षा होती है । आठ लिक्षाओं की एक जूँ, आठ जुओं का एक यवमध्य और आठ यवमध्यों का एक उत्सेधांगुल होता है । इस अंगुलप्रमाण से छह अंगुल का एक पाद होता है । बारह अंगुल की एक वितस्ति, चौबीस अंगुल की एक रनि, अड़तालीस अंगुल की एक कुक्षि और छियानवे अंगुल का एक दंड, धनुष, युग, नालिका, अक्ष अथवा मूसल होता है । इस धनुषप्रमाण से दो हजार धनुष का एक गव्यूत और चार गव्यूत का एक योजन होता है । इस उत्सेधांगुल से क्यो प्रयोजन है ? इस से नारकों, तिर्यंचो, मनुष्यों और देवों के शरीर की अवगाहना मापी जाती है ।
नारकों के शरीर की कितनी अवगाहना है ? गौतम ! दो प्रकार से है -- भवधारणीय और उत्तरवैक्रिय । उनमें से भवधारणीय की अवगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भागप्रमाण और उत्कृष्ट पांच सौ धनुषप्रमाण है । उत्तरवैक्रिय शरीर की अवगाहना जघन्य अंगुल के संख्यातवें भाग एवं उत्कृष्ट १००० धनुषप्रमाण है । रत्नप्रभापृथ्वी के नारकों की शरीरावगाहना दो प्रकार की है - भवधारणीय और उत्तरवैक्रिय । भवधारणीय शरीरावगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट सात धनुष, तीन रत्नि तथा छह अंगुलप्रमाण है । उत्तरवैक्रिय शरीरावगाहना जघन्य अंगुल के संख्यातवें भागप्रमाण और उत्कृष्ट पन्द्रह धनुष, अढ़ाई रत्नि है। शर्कराप्रभापृथ्वी के नारकों की शरीरावगाहना कितनी है ? गौतम ! उनकी अवगाहना दो प्रकार से है । भवधारणीय और उत्तरवैक्रिय । भवधारणीय अवगाहना तो जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग की और उत्कृष्ट पन्द्रह धनुष दो रत्नि और बारह अंगुल प्रमाण है ।