Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 12
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

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Page 237
________________ २३६ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद अक्षीण, आय, क्षपणा । अध्ययन के चार प्रकार हैं, यथा-नाम-अध्ययन, स्थापना-अध्ययन, द्रव्य-अध्ययन, भाव-अध्ययन । नाम और स्थापना अध्ययन का स्वरूप पूर्ववत् जानना । द्रव्य-अध्ययन का क्या स्वरूप है ? द्रव्य-अध्ययन के दो प्रकार हैं, आगम से और नोआगम जिसने 'अध्ययन' इस पद को सीख लिया है, स्थिर कर लिया है, जित, मित और परिजित कर लिया है यावत् जितने भी उपयोग से शून्य हैं, वे आगम से द्रव्य-अध्ययन हैं। नैगमनय जैसा ही व्यवहारनय का मत है, संग्रहनय के मत से एक या अनेक आत्माएँ एक आगमद्रव्य-अध्ययन हैं, इत्यादि समग्र वर्णन आगमद्रव्य-आवश्यक जैसा ही जानना । नोआगमद्रव्य-अध्ययन तीन प्रकार का है । ज्ञायकशरीद्रव्य-अध्ययन, भव्यशरीरद्रव्य-अध्ययन, ज्ञायकशरीरभव्यशरीव्यतिरिक्तद्रव्य-अध्ययन । अध्ययन पद के अर्थाधिकार के ज्ञायक के व्यपगतचैतन्य, च्युत, च्यावित त्यक्तदेह यावत् अहो इस शरीर रूप पुद्गलसंघात ने 'अध्ययन' इस पद का व्याख्यान किया था, यावत् उपदर्शित किया था, (वैसा यह शरीर ज्ञायकशरीरद्रव्यअध्ययन है ।) एतद्विषयक कोई दृष्टान्त है ? जैसे घड़े में से घी या मधु के निकाल लिये जाने के बाद भी कहा जाता है यह घी का घड़ा था, यह मधुकुंभ था । जन्मकाल प्राप्त होने पर जो जीव योनिस्थान से बाहर निकला और इसी प्राप्त शरीरसमुदाय के द्वारा जिनोपदिष्ट भावानुसार 'अध्ययन' इस पद को सीखेगा, लेकिन अभी-वर्तमान में नहीं सीख रहा है ऐसा उस जीव का शरीर भव्यशरीरद्रव्याध्ययन कहा जाता है । इसका कोई दृष्टान्त है ? जैसे किसी घड़े में अभी मधु या घी नहीं भरा गया है, तो भी उसको यह घृतकुंभ होगा, मधुकुंभ होगा कहना । पत्र या पुस्तक में लिखे हुए अध्ययन को ज्ञायकशरीरभव्यशरीर-व्यतिरिक्तद्रव्याध्ययन कहते हैं । भाव-अध्ययन क्या है ? दो प्रकार हैं-आगमभाव-अध्ययन, नोआगमभाव-अध्ययन। जो अध्ययन के अर्थ का ज्ञायक होने के साथ उसमें उपयोगयुक्त भी हो, उसे आगमभावअध्ययन कहते हैं । आयुष्मन् ! नोआगमभाव-अध्ययन का स्वरूप इस प्रकार है [३२६] अध्यात्म में आने, उपार्जित कर्मों का क्षय करने और नवीन कर्मों का बंध नहीं होने देने का कारण होने से (मुमुक्षु अध्ययन की अभिलाषा करते हैं । [३२७] यह नोआगमभाव-अध्ययन का स्वरूप है । अक्षीण का क्या स्वरूप है ? अक्षीण के चार प्रकार हैं । यथा-नाम-अक्षीण, स्थापनाअक्षीण, द्रव्य-अक्षीण और भाव-अक्षीण । नाम और स्थापना अक्षीण का स्वरूप पूर्ववत् जानना । द्रव्य-अक्षीण क्या है ? दो प्रकार हैं । यथा-आगम से, नोआगम से । जिसने अक्षीण इस पद को सीख लिया है, स्थिर, जित, मित, परिजित किया है इत्यादि जैसा द्रव्य-अध्ययन में कहा वैसा ही यहाँ समझना । नोआगमद्रव्य-अक्षीण के तीन प्रकार हैं । यथा-ज्ञायकशरीद्रव्यअक्षीण, भव्यशरीरद्रव्य-अक्षीण, ज्ञायकशरीरभव्यशरीरव्यतिरिक्तद्रव्य-अक्षीण । अक्षीण पद के अर्थाधिकार के ज्ञाता का व्यपगत च्युत, च्यवित, त्यक्तदेह आदि जैसा द्रव्य-अध्ययन के संदर्भ में वर्णन है, वैसे यहाँ भी करना । समय पूर्ण होने पर जो जीव योनि से निकलकर उत्पन्न हुआ आदि पूर्वोक्त भव्यशरीरद्रव्य-अध्ययन के जैसा इस भव्यशरीरद्रव्य-अक्षीण का

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