Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 12
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

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Page 212
________________ अनुयोगद्वार-२७० २११ वह उत्सेधांगुल संक्षेप से तीन प्रकार का है । सूच्यंगुल, प्रतरांगुल और घनांगुल । एक अंगुल लम्बी तथा एक प्रदेश चौड़ी आकाशप्रदेशों की श्रेणी को सूच्यंगुल कहते हैं । सूची से सूची को गुणित करने पर प्रतरांगुल निष्पन्न होता है, सूच्युगल से गुणित प्रतरांगुल घनांगुल कहलाता है । भगवन् ! इन सूच्यंगुल, प्रतरांगुल और घनांगुल में कौन किससे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक है ? इनमें सर्वस्तोक सूच्यंगुल है, उससे प्रतरांगुल असंख्यातगुणा और प्रतरांगुल से घनांगुल असंख्यातगुणा है । प्रमाणांगुल क्या है ? भरतक्षेत्र पर शासन करने वाले चक्रवर्ती के अष्ट स्वर्णप्रमाण, छह तल वाले, बारह कोटियों और आठ कर्णिकाओं से युक्त अधिकरण संस्थान काकणीरत्न की एक-एक कोटि उत्सेधांगुल प्रमाण विष्कंभ वाली है, उसकी वह एक कोटि श्रमण भगवान् महावीर के अर्धांगुल प्रमाण है । उस अर्धांगुल से हजार गुणा एक प्रमाणांगुल है । इस अंगुल से छह अंगुल का एक पाद, दो पाद अथवा बारह अंगुल की एक वितस्ति, दो वितस्तियों की रलि, दो रनि की एक कुक्षि, दो कुक्षियों का एक धनुष, दो हजार धनुष का एक गव्यूत और चार गव्यूत का एक योजन होता है । प्रमाणांगुल से कौनसा प्रयोजन सिद्ध होता है ? इस से पृथ्वियों की, कांडों की, पातालकलशों की, भवनों की, भवनों के प्रस्तरों की, नरकावासों की, नरकपंक्तियों की, नरक के प्रस्तरों की, कल्पों की, विमानों की, विमानपंक्तियों की, विमानप्रस्तरों की, टंकों की, कूटों की, पर्वतों की, शिखर वाले पर्वतों की, प्राग्भारों की, विजयों की, वक्षारों की, क्षेत्रों की, वर्षधर पर्वतों की, समुद्रों की, वेलाओं की, वेदिकाओं की, द्वारों की, तोरणों की, द्वीपों की तथा समुद्रों की लंबाई, चौड़ाई, ऊंचाई, गहराई और परिधि नापी जाती है । वह (प्रमाणांगुल) संक्षेप में तीन प्रकार का कहा गया है-श्रेण्यंगुल, प्रतरांगुल, घनांगुल। (प्रमाणांगुल से निष्पन्न) असंख्यात कोडाकोडी योजनों की एक श्रेणी होती है । श्रेणी को श्रेणी से गुणित करने पर प्रतरांगुल और प्रतरांगुल को श्रेणी के साथ गुणा करने से (एक) लोक होता है । संख्यात राशि से गुणित लोक 'संख्यातलोक', असंख्यात राशि से गुणित लोक 'असंख्यातलोक' और अनन्त राशि से गुणित लोक 'अनन्तलोक' कहलाता है । इन श्रेण्यंगुल, प्रतरांगुल और घनांगुल में कौन किससे अल्प, अधिक, तुल्य अथवा विशेषाधिक है ? श्रेण्यंगुल सर्वस्तोक है, उससे प्रतरांगुल असंख्यात गुणा है और प्रतरांगुल से घनांगुल असंख्यात गुणा है । [२७१] कालप्रमाण क्या है ? दो प्रकार का है-प्रदेशनिष्पन्न, विभागनिष्पन्न । [२७२] प्रदेशनिष्पन्न कालप्रमाण क्या है ? एक समय की स्थितिवाला, दो समय की स्थिति वाला, तीन समय की स्थिति वाला, यावत् दस समय की स्थितिवाला, संख्यात समय की स्थितिवाला, असंख्यात समय की स्थितिवाला (परमाणु या स्कन्ध) प्रदेशनिष्पन्न कालप्रमाण है । इस प्रकार से प्रदेशनिष्पन्न कालप्रमाण का स्वरूप जानना । [२७३-२७४] विभागनिष्पन्न कालप्रमाण क्या है ? समय, आवलिका, मुहूर्त, दिवस, अहोरात्र, पक्ष, मास, संवत्सर, युग, पल्योपम, सागर, अवसर्पिणी (उत्सर्पिणी) और (पुद्गल) परावर्तन रूप काल को विभागनिष्पन्न कालप्रमाण कहते हैं । [२७५] समय किसे कहते हैं ? समय की प्ररूपणा करूंगा । जैसे कोई एक तरुण,

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