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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
तिर्यंचों के तीन अवगाहना स्थानों के बराबर समझ लेना । गर्भव्युत्क्रान्त खेचरपंचेन्द्रिय - तिर्यंचयोनिक की शरीरावगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण और उत्कृष्ट धनुषपृथक्त्व प्रमाण है । अपर्याप्त गर्भव्युत्क्रान्त खेचरपंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिकों की अवगाहना जघन्य और उत्कृष्ट अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण है । पर्याप्त गर्भज खेचरपंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिकों की शरीरावगाहना जघन्य अंगुल का असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट धनुषपृथक्त्व है । उक्त समग्र कथन की संग्राहक गाथाएं इस प्रार हैं
[२६८-२६९] संमूर्छिम जलचरतिर्यंचपंचेन्द्रिय जीवों की उत्कृष्ट अवगाहना १००० योजन, चतुष्पदस्थलचर की गव्यूतिपृथक्त्व, उरपरिर्पस्थलचर की योजनपृथक्त्व, भुजपरिसर्पस्थलचर की एवं खेचरतिर्यंचपंचेन्द्रिय की धनुषपृथक्त्व प्रमाण है । गर्भज तिर्यंच पंचेन्द्रिय जीवों में से जलचरों की १००० योजन, चतुष्पदस्थलचरों की छह गव्यूति उरपरिसर्पस्थलचरों की १००० योजन, भुजपरिसर्पस्थलचरों की गव्यूतिपृथक्त्व और पक्षियों की धनुषपृथक्त्व प्रमाण उत्कृष्ट शरीरावगाहना जानना ।
[२७०] मनुष्यों की शरीरावगाहना कितनी है ? गौतम ! जघन्य अंगुल का असंख्यातवां भाग और उत्कृष्ट तीन गव्यूति है । संमूर्छिम मनुष्यों की जघन्य और उत्कृष्ट अवगाहना अंगुल के असंख्यातवे भाग प्रमाण है । गर्भज मनुष्यों की जघन्य अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट तीन गव्यूति प्रमाण है । अपर्याप्त गर्भव्युत्क्रान्त मनुष्यों की अवगाहना जघन्य और उत्कृष्ट अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण है । पर्याप्त गर्भव्युत्क्रान्तिक मनुष्यों की अवगाहना जघन्य अंगुल का असंख्यातवां भाग और उत्कृष्ट तीन गव्यूति प्रमाण है ।
वाणव्यंतरों की भवधारणीय एवं उत्तर वैक्रियशरीर की अवगाहना असुरकुमारों के समान जानना । इसी प्रकार ज्योतिष्क भी समझ लेना ।।
सौधर्मकल्प के देवों की शरीरावगाहना कितनी है ? गौतम ! दो प्रकार की हैभवधारणीय और उत्तरवैक्रिय । इनमें से भवधारणीय शरीर की जघन्य अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग की और उत्कृष्ट सात रनि है । उत्तरवैक्रिय शरीर की जघन्य अंगुल के संख्यातवें भाग और उत्कृष्ट एक लाख योजन प्रमाण है । इसी तरह इशान कल्प में भी जानना । सनत्कुमारकल्प में भवधारणीय जघन्य अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट छह रनि प्रमाण है, उत्तरवैक्रिय सौधर्मकल्प के बराबर है । सनत्कुमारकल्प जितनी अवगाहना माहेन्द्रकल्प में जानना । ब्रह्मलोक और लांतक में भवधारणीय शरीर की जघन्य अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट पांच रनि प्रमाण है तथा उत्तरवैक्रिय का प्रमाण सौधर्मकल्पवत् है । महाशुक्र और सहस्रार कल्पों में भवधारणीय अवगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट चार रत्नि प्रमाण है तथा उत्तरवैक्रिय सौधर्मकल्प के समान है । आनत, प्राणत, आरण और अच्युत में भवधारणीय अवगाहना जघन्य अंगुल का असंख्यातवां भाग और उत्कृष्ट तीन रत्नि की है । उत्तरवैक्रिय सौधर्मकल्प के समान है ।
ग्रैवेयकदेवों की शरीरावगाहना कितनी है ? गौतम ! ग्रैवेयकदेवों की एकमात्र भवधारणीय शरीर ही होता है । उस की जघन्य अवगाहना अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट दो हाथ है । अनुत्तरविमानवासी देवों के एकमात्र भवधारणीय शरीर ही है । उसकी अवगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग और उत्कृष्ट एक हाथ है ।