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अनुयोगद्वार-३१७
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राशि प्रमाण में से एक कम करने से उत्कृष्ट युक्तासंख्यात होता है ।
जघन्य असंख्यातासंख्यात का क्या प्रमाण है ? जघन्य युक्तासंख्यात के साथ आवलिका की राशि का परस्पर अभ्यास करने से प्राप्त परिपूर्ण संख्या जघन्य असंख्यातासंख्यात है । अथवा उत्कृष्ट युक्तसंख्यात में एक का प्रक्षेप करने से जघन्य असंख्यातासंख्यात होता है । तत्पश्चात् मध्यम स्थान होते हैं और वे स्थान उत्कृष्ट असंख्यातासंख्यात प्राप्त होने से पूर्व तक जानना । जघन्य असंख्यातासंख्यात मात्र राशि का उसी जघन्य असंख्यातासंख्यात राशि से अन्योन्य अभ्यास-गुणा करने से प्राप्त संख्या में से एक न्यून करने पर प्राप्त संख्या उत्कृष्ट असंख्यातासंख्यात है । अथवा एक न्यून जघन्य परीतानन्त उत्कृष्ट असंख्यातासंख्यात का प्रमाण है।
जघन्य परीतानन्त का कितना प्रमाण है ? जघन्य असंख्यातासंख्यात राशि को उसी जघन्य असंख्यातासंख्यात राशि से परस्पर अभ्यास रूप में गुणित करने से प्राप्त परिपूर्ण संख्या जघन्य परीतानन्त का प्रमाण है । अथवा उत्कृष्ट असंख्यातासंख्यात में एक रूप का प्रक्षेप करने से भी जघन्य परीतानन्त का प्रमाण होता है । तत्पश्चात् अजधन्य-अनुत्कृष्ट परीतानन्त के स्थान होते हैं और वे भी उत्कृष्ट परीतानन्त का स्थान प्राप्त न होने के पूर्व तक होते हैं । जघन्य परीतानन्त की राशि को उसी जघन्य परीतानन्त राशि से परस्पर अभ्यास रूप गुणित करके उसमें से एक रूप (अंक) न्यून करने से उत्कृष्ट परीतानन्त का प्रमाण होता है । अथवा जघन्य युक्तानन्त की संख्या में से एक न्यून करने से भी उत्कृष्ट परीतानन्त की संख्या बनती है ।
__ जघन्य युक्तानन्त कितने प्रमाण में होता है ? जघन्य परीतानन्त मात्र राशि का उसी राशि से अभ्यास करने से प्रतिपूर्ण संख्या जघन्य युक्तानन्त है । अर्थात् जघन्य परीतानन्त जितनी सर्षप संख्या का परस्पर अभ्यास रूप गुणा करने से प्राप्त परिपूर्ण संख्या जघन्य युक्तानन्त है । अथवा उत्कृष्ट परतानन्त में एक रूप (अंक) प्रक्षिप्त करने से जघन्य युक्तानन्त होता है । अभवसिद्धिक (अभव्य) जीव भी इतने ही (जघन्य युक्तानन्त जितने) होते हैं । उसके पश्चात् अजघन्योत्कृष्ट (मध्यम) युक्तानन्त के स्थान हैं और वे उत्कृष्ट युक्तानन्त के स्थान के पूर्व तक हैं । जघन्य युक्तानन्त राशि के साथ अभवसिद्धिक राशि का परस्पर अभ्यास रूप गुणाकार करके प्राप्त संख्या में से एक रूप को न्यून करने पर प्राप्त राशि उत्कृष्ट युक्तानन्त की संख्या है । अथवा एक रूप न्यून जघन्य अनन्तानन्त उत्कृष्ट युक्तानन्त है । जघन्य युक्तानन्त के साथ अभवसिद्धिक जीवों को परस्पर अब्यास रूप से गुणित करने पर प्राप्त पूर्ण संख्या जघन्य अनन्तानन्त का प्रमाण है । अथवा उत्कृष्ट युक्तानन्त में एक रूप का प्रक्षेप करने से जघन्य अनन्तानन्त होता है । तत्पश्चात् सभी स्थान अजघन्योत्कृष्ट अनन्तानन्त के होते हैं ।
भावसंख्या क्या है ? इस लोक में जो जीव शंखगतिनाम-गोत्र कर्मादिकों का वेदन कर रहे हैं वे भावशंख है । यही भाव संख्या है, यही भावप्रमाण का वर्ण' है ।
[३१८] वक्तव्यता क्या है ? तीन प्रकार की है, यथा-स्वसमयवक्तव्यता, परमसमयवक्तव्यता और स्वसमय-परसमयवक्तव्यता । अविरोधी रूप से स्वसिद्धान्त के कथन, प्रज्ञापन,