Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 12
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

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Page 229
________________ २२८ आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद के मत से प्रस्थक भी प्रस्थक है और मेय वस्तु भी प्रस्थक है । तीनों शब्द नयों के मतानुसार प्रस्थक के अर्थाधिकार का ज्ञाता अथवा प्रस्थककर्त्ता का वह उपयोग जिससे प्रस्थक, होता है उसमें वर्त्तमान कर्त्ता प्रस्थक है । निष्पन्न वह वसति - दृष्टान्त क्या है ? वसति के दृष्टान्त द्वारा नयों का स्वरूप इस प्रकार जानना - जैसे किसी पुरुष ने किसी अन्य पुरुष से पूछा- आप कहाँ रहते हैं ? तब उसने अविशुद्ध नैगमनय के मतानुसार उत्तर दिया- मैं लोक में रहता हूँ । प्रश्नकर्ता ने पुनः पूछालोक के तो तीन भेद हैं । तो क्या आप इन सब में रहते हैं ? तब - विशुद्ध नैगमनय के अभिप्रायानुसार उसने कहा- मैं तिर्यग्लोक में रहता हूँ । इस पर पुनः प्रश्न तिर्यग्लोक में जम्बूद्वीप आदि स्वयंभूरमणसमुद्र पर्यन्त असंख्यात द्वीप समुद्र हैं, तो क्या आप उन सभी में रहते हैं ? प्रत्युत्तर में विशुद्धतर नैगमनय के अभिप्रायानुसार उसने कहा- मैं जम्बूद्वीप में रहता हूँ । तब प्रश्नकर्ता ने प्रश्न किया - जम्बूद्वीप में दस क्षेत्र हैं । तो क्या आप इन दसों क्षेत्रों मे रहते हैं ? उत्तर में विशुद्धतर नैगमनय के अभिप्रायानुसार उसने कहा - भरतक्षेत्र में रहता हूँ । प्रश्नकर्ता ने पुनः पूछा- भरतक्षेत्र के दो विभाग हैं तो क्या आप उन दोनों विभागों में रहते हैं ? विशुद्धतर नैगमनय की दृष्टि से उसने उत्तर दिया- दक्षिणार्धभरत में रहता हूँ । दक्षिणार्धभरत में तो अनेक ग्राम, नगर, खेड, कर्वट, मडंब, द्रोणमुख, पट्टन, आकर, संवाह, सन्निवेश हैं, तो क्या आप उन सबमें रहते हैं ? इसका विशुद्धतर नैगमनयानुसार उसने उत्तर दिया- मैं पाटलिपुत्र में रहता हूँ । पाटलिपुत्र में अनेक घर हैं, तो आप उन सभी में निवास करते हैं ? तब विशुद्धतर नैगमनय की दृष्टि से उसने उत्तर दिया- देवदत्त के घर में बसता हूँ । देवदत्त के घर में अनेक प्रकोष्ठ हैं, तो क्या आप उन सबमें रहते हैं ? उत्तर में उसने विशुद्धतर नैगमन के अनुसार कहा - गर्भगृह में रहता हूँ । इस प्रकार विशुद्ध नैगमनय के मत से वसते हुए को वसता हुआ माना जाता है । व्यवहारनय का मंतव्य भी इसी प्रकार का है । संग्रहनय मतानुसार शैया पर आरूढ़ हो तभी वह वसता हुआ कहा जा सकता है । ऋजुसूत्रनय के मत से जिन आकाशप्रदेशों में अवगाढ़ - अवगाहनयुक्त - विद्यमान है, उनमें ही बसता हुआ माना जाता है । तीनों शब्दनयों के अभिप्राय से आत्मभाव में ही निवास होता है । I प्रदेशदृष्टान्त द्वारा नयों के स्वरूप का प्रतिपादन किस प्रकार है ? नैगमनय के मत सेछह द्रव्यों के प्रदेश होते हैं । धर्मास्तिकाय का प्रदेश, अधर्मास्तिकाय का प्रदेश, आकाशास्तिकाय का प्रदेश, जीवास्तिकाय का प्रदेश, स्कन्ध का प्रदेश और देश का प्रदेश । ऐसा कथन करने वा नैगमन से संग्रहनय ने कहा- जो तुम कहते हो कि छहों के प्रदेश हैं, वह उचित नहीं 1 है । क्योंकि जो देश का प्रदेश है, वह उसी द्रव्य का है । इसके लिये कोई दृष्टान्त है ? हाँ दृष्टान्त है । जैसे मेरे दास ने गधा खरीदा और दास मेरा है तो गधा भी मेरा है । इसलिये ऐसा मत कहो कि छहों के प्रदेश हैं, यह कहो कि पांच के प्रदेश हैं । यथा-धर्मास्तिकाय का प्रदेश, अधर्मास्तिकाय का प्रदेश, आकाशास्तिकाय का प्रदेश, जीवास्तिकाय का प्रदेश और स्कन्ध का प्रदेश । इस प्रकार कहने वाले संग्रहनय से व्यवहारनय ने कहा- तुम कहते हो कि पांचों के प्रदेश हैं, वह सिद्ध नहीं होता है । क्यों ? प्रत्युत्तर में व्यवहारनयवादी ने कहा- जैसे पांच गोष्ठिक पुरुषों का कोई द्रव्य सामान्य होता है । यथा - हिरण्य, स्वर्ण आदि तो तुम्हारा कहना युक्त था कि पांचों के प्रदेश हैं । इसलिये ऐसा मत कहो कि पांचों के प्रदेश

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