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अनुयोगद्वार-३१०
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हैं, किन्तु कहो-प्रदेश पांच प्रकार का है, जैसे-धर्मास्तिकाय का प्रदेश, अधर्मास्तिकाय का प्रदेश, आकाशास्तिकाय का प्रदेश, जीवास्तिकाय का प्रदेश और स्कन्ध का प्रदेश । व्यवहारनय के ऐसा कहने पर ऋजुसूत्रनय ने कहा तुम भी जो कहते हो कि पांच प्रकार के प्रदेश हैं, वह नहीं बनता है । क्योकि यदि पांच प्रकार के प्रदेश हैं यह कहो तो एक-एक प्रदेश पांच-पांच प्रकार का हो जाने से तुम्हारे मत से पच्चीस प्रकार का प्रदेश होगा । यह कहो कि प्रदेश भजनीय है-स्यात् धर्मास्तिकाय का प्रदेश, स्यात् अधर्मास्तिकाय का प्रदेश, स्यात् आकाशास्तिकाय का प्रदेश, स्यात् जीव का प्रदेश, स्यात् स्कन्ध का प्रदेश है ।
__इस प्रकार कहने वाले ऋजुसूत्रनय से संप्रति शब्दनय ने कहा-तुम कहते हो कि प्रदेश भजनीय है, यह कहना योग्य नहीं है । क्योकि प्रदेश भजनीय है, ऐसा मानने से तो धर्मास्तिकाय का प्रदेश अधर्मास्तिकाय का भी, आकाशास्तिकाय का भी, जीवास्तिकाय का भी और स्कन्ध का भी प्रदेश हो सकता है । इसी प्रकार अधर्मास्तिकाय का प्रदेश धर्मास्तिकाय का प्रदेश, आकाशास्तिकाय का प्रदेश, जीवास्तिकाय का प्रदेश एवं स्कन्ध का प्रदेश हो सकता है । यावत् स्कन्ध का प्रदेश भी धर्मास्तिकाय का प्रदेश, अधर्मास्तिकाय का प्रदेश, आकाशास्तिकाय का प्रदेश अथवा जीवास्तिकाय का प्रदेश हो सकता है । इस प्रकार तुम्हारे मत से अनवस्था हो जायेगी । ऐसा कहो-धर्मरूप जो प्रदेश है, वही प्रदेश धर्म है-है, जो अधर्मास्तिकाय का प्रदेश है, वही प्रदेश अधर्मास्तिकायात्मक है, जो आकाशास्तिकाय का प्रदेश है, वही प्रदेश आकाशात्मक है, एक जीवास्तिकाय का जो प्रदेश है, वही प्रदेश नोजीव है, इसी प्रकार जो स्कन्ध का प्रदेश है, वही प्रदेश नोस्कन्धात्मक है । इस प्रकार कहते हुए शब्दनय से समभिरूढनय ने कहा-तुम कहते हो कि धर्मास्तिकाय का जो प्रदेश है, वही प्रदेश धर्मास्तिकाय रूप है, यावत् स्कन्ध का जो प्रदेश, वही प्रदेश नोस्कन्धात्मक है, किन्तु तुम्हारा यह कथन युक्तिसंगत नहीं है । क्योंकि यहाँ तत्पुरुष और कर्मधारय यह दो समास होते हैं। इसलिए संदेह होता है कि उक्त दोनों समासों में से तुम किस समास की दृष्टि से 'धर्मप्रदेश' आदि कह रहे हो ? यदि तत्पुरुषसमासदृष्टि से कहते हो तो ऐसा मत कहो और यदि कर्मधारय समास की अपेक्षा कहते हो तब विशेषतया कहना चाहिये-धर्म और उसका जो प्रदेश वही प्रदेश धर्मास्तिकाय है । इसी प्रकार अधर्म और उसका जो प्रदेश वही प्रदेश अधर्मास्तिकाय रूप है, यावत् स्कन्ध और उसका जो प्रदेश है, वही प्रदेश नोस्कन्धात्मक है । ऐसा कथन करने पर समभिरूढनय से एवंभूतनय ने कहा-जो कुछ भी तुम कहते हो वह समीचीन नहीं, मेरे मत से वे सब कृत्स्न हैं, प्रतिपूर्ण और निखशेष हैं, एक ग्रहणगृहीत हैं-अतः देश भी अवस्तु रूप है एवं प्रदेश भी अवस्तु रूप हैं ।
[३११] संख्याप्रमाण क्या है ? आठ प्रकार का है । यथा-नामसंख्या, स्थापनासंख्या, द्रव्यसंख्या, औपम्यसंख्या, परिमाणसंख्या, ज्ञानसंख्या, गणनासंख्या, भावसंख्या । नामसंख्या क्या है ? जिस जीव का अथवा अजीव का अथवा जीवों का अथवा अजीवों का अथवा तदुभव का अथवा तदुभयों का संख्या ऐसा नामकरण कर लिया जाता है, उसे नामसंख्या कहते हैं । जिस काष्ठकर्म में, पुस्तकर्म में या चित्रकर्म में या लेप्यकर्म में अथवा ग्रन्थिकर्म में अथवा वेढित में अथवा पूरित में अथवा संघातिम में अथवा अक्ष में अथवा वराटक में अथवा एक या अनेक में सद्भूतस्थापना या असद्भूतस्थापना द्वारा ‘संख्या' इस प्रकार का