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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
समान जानना ।
ज्योतिष्क देवों के कितने औदारिकशरीर हैं ? नारकों के औदारिकशरीरों के समान जानना । ज्योतिष्क देवों के वैक्रियशरीर दो प्रकार के हैं-बद्ध और मुक्त । जो बद्ध हैं यावत् उनकी श्रेणी की विष्कंभसूची दो सौ छप्पन प्रतरांगुल के वर्गमूल रूप अंशं प्रमाण समझना चाहिये । मुक्तवैक्रियशरीरों का प्रमाण सामान्य मुक्तऔदारिकशरीरों जितना जानना । ज्योतिष्कदेवों के आहारकशरीरों का प्रमाण नारकों के आहारकशरीरों के बराबर है । ज्योतिष्कदेवों के तैजस और कार्मण शरीरों का प्रमाण इनके वैक्रियशरीरों के बराबर है ।।
भगवन् ! वैमानिक देवों के कितने औदारिकशरीर हैं ? नैरयिकों के औदारिकशरीरों के समान जानना । वैमानिक देवों के वैक्रिय शरीर दो प्रकार के हैं-बद्ध और मुक्त । बद्धवैक्रियशरीर असंख्यात हैं । उनका काल की अपेक्षा असंख्यात उत्सर्पिणी-अवसर्पिणी कालों में अपहरण होता है और क्षेत्रतः प्रतर के असंख्यातवें भाग में रही हई असंख्यात श्रेणियों जितने हैं । उन श्रेणियों की विष्कंभसूची अंगुल के तृतीय वर्गमूल से गुणित द्वितीय वर्गमूल प्रमाण है अथवा अंगुल के तृतीय वर्गमूल के घनप्रमाण श्रेणियां हैं । मुक्तवैक्रियशरीर औधिक औदारिकशरीर के तुल्य जानना । वैमानिक देवों के आहारकशरीरों का प्रमाण नारकों के आहारकशरीरों के बरावर जानना । इनके तैजस-कार्मण शरीरों का प्रमाण इन्हीं के वैक्रियशरीरों जितना जानना ।
[३००] भावप्रमाण क्या है ? तीन प्रकार का है । गुणप्रमाण, नयप्रमाण और संख्याप्रमाण ।
[३०१] गुणप्रमाण क्या है ? दो प्रकार का है-जीवगुणप्रमाण और अजीवगुणप्रमाण । अजीवगुणप्रमाण पांच प्रकार का है-वर्णगुणप्रमाण, गंधगुणप्रमाण, रसगुणप्रमाण, स्पर्शगुणप्रमाण और संस्थानगुणप्रमाण ।
भगवन् ! वर्णगुणप्रमाण क्या है ? पांच प्रकार का है । कृष्णवर्णगुणप्रमाण यावत् शुक्लवर्णगुणप्रमाण । गंधगुणप्रमाण दो प्रकार का है । सुरभिगंधगुणप्रमाण, दुरिभगंधगुणप्रमाण । रसगुणप्रमाण पांच प्रकार का है । यथा-तिक्तरसगुणप्रमाण यावत् मधुररसगुणप्रमाण । स्पर्शगुणप्रमाण आठ प्रकार का है । कर्कशस्पर्शगुणप्रमाण यावत् रूक्षस्पर्शगुणप्रमाण । संस्थानगुणप्रमाण पांच प्रकार का है । परिमंडलसंस्थानगुणप्रमाण यावत् आयतसंस्थानगुणप्रमाण ।
जीवगुणप्रमाण क्या है ? तीन प्रकार का है । ज्ञानगुणप्रमाण, दर्शनगुणप्रमाण और चारित्रगुणप्रमाण । ज्ञानगुणप्रमाण चार प्रकार का है-प्रत्यक्ष, अनुमान, उपमान और आगम । प्रत्यक्ष के दो भेद हैं । इन्द्रियप्रत्यक्ष और नोइन्द्रियप्रत्यक्ष । इन्द्रियप्रत्यक्ष पांच प्रकार का है । श्रोत्रेन्द्रियप्रत्यक्ष, चक्षुरिन्द्रियप्रत्यक्ष, घ्राणेन्द्रियप्रत्यक्ष, जिह्वेन्द्रियप्रत्यक्ष, स्पर्शनेन्द्रियप्रत्यक्ष । नोइन्द्रियप्रत्यक्ष तीन प्रकार का है-अवधिज्ञानप्रत्यक्ष, मनःपर्यवज्ञानप्रत्यक्ष, केवलज्ञानप्रत्यक्ष ।
___ अनुमान क्या है ? तीन प्रकार का है-पूर्ववत्, शेषवत् और दृष्टसाधर्म्यवत् । पूर्ववत्अनुमान किसे कहते हैं ? पूर्व में देखे गये लक्षण से जो निश्चय किया जाये उसे पूर्ववत् कहते हैं । यथा
[३०२-३०५] माता बाल्यकाल से गुम. हुए और युवा होकर वापस आये हुए पुत्र को किसी पूर्वनिश्चित चिह्न से पहचानती है कि यह मेरा ही पुत्र है । जैसे-देह में हुए क्षत, व्रण, लांछन, डाम आदि से बने चिह्नविशेष, मष, तिल आदि से जो अनुमान किया जाता है, वह