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________________ २२४ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद समान जानना । ज्योतिष्क देवों के कितने औदारिकशरीर हैं ? नारकों के औदारिकशरीरों के समान जानना । ज्योतिष्क देवों के वैक्रियशरीर दो प्रकार के हैं-बद्ध और मुक्त । जो बद्ध हैं यावत् उनकी श्रेणी की विष्कंभसूची दो सौ छप्पन प्रतरांगुल के वर्गमूल रूप अंशं प्रमाण समझना चाहिये । मुक्तवैक्रियशरीरों का प्रमाण सामान्य मुक्तऔदारिकशरीरों जितना जानना । ज्योतिष्कदेवों के आहारकशरीरों का प्रमाण नारकों के आहारकशरीरों के बराबर है । ज्योतिष्कदेवों के तैजस और कार्मण शरीरों का प्रमाण इनके वैक्रियशरीरों के बराबर है ।। भगवन् ! वैमानिक देवों के कितने औदारिकशरीर हैं ? नैरयिकों के औदारिकशरीरों के समान जानना । वैमानिक देवों के वैक्रिय शरीर दो प्रकार के हैं-बद्ध और मुक्त । बद्धवैक्रियशरीर असंख्यात हैं । उनका काल की अपेक्षा असंख्यात उत्सर्पिणी-अवसर्पिणी कालों में अपहरण होता है और क्षेत्रतः प्रतर के असंख्यातवें भाग में रही हई असंख्यात श्रेणियों जितने हैं । उन श्रेणियों की विष्कंभसूची अंगुल के तृतीय वर्गमूल से गुणित द्वितीय वर्गमूल प्रमाण है अथवा अंगुल के तृतीय वर्गमूल के घनप्रमाण श्रेणियां हैं । मुक्तवैक्रियशरीर औधिक औदारिकशरीर के तुल्य जानना । वैमानिक देवों के आहारकशरीरों का प्रमाण नारकों के आहारकशरीरों के बरावर जानना । इनके तैजस-कार्मण शरीरों का प्रमाण इन्हीं के वैक्रियशरीरों जितना जानना । [३००] भावप्रमाण क्या है ? तीन प्रकार का है । गुणप्रमाण, नयप्रमाण और संख्याप्रमाण । [३०१] गुणप्रमाण क्या है ? दो प्रकार का है-जीवगुणप्रमाण और अजीवगुणप्रमाण । अजीवगुणप्रमाण पांच प्रकार का है-वर्णगुणप्रमाण, गंधगुणप्रमाण, रसगुणप्रमाण, स्पर्शगुणप्रमाण और संस्थानगुणप्रमाण । भगवन् ! वर्णगुणप्रमाण क्या है ? पांच प्रकार का है । कृष्णवर्णगुणप्रमाण यावत् शुक्लवर्णगुणप्रमाण । गंधगुणप्रमाण दो प्रकार का है । सुरभिगंधगुणप्रमाण, दुरिभगंधगुणप्रमाण । रसगुणप्रमाण पांच प्रकार का है । यथा-तिक्तरसगुणप्रमाण यावत् मधुररसगुणप्रमाण । स्पर्शगुणप्रमाण आठ प्रकार का है । कर्कशस्पर्शगुणप्रमाण यावत् रूक्षस्पर्शगुणप्रमाण । संस्थानगुणप्रमाण पांच प्रकार का है । परिमंडलसंस्थानगुणप्रमाण यावत् आयतसंस्थानगुणप्रमाण । जीवगुणप्रमाण क्या है ? तीन प्रकार का है । ज्ञानगुणप्रमाण, दर्शनगुणप्रमाण और चारित्रगुणप्रमाण । ज्ञानगुणप्रमाण चार प्रकार का है-प्रत्यक्ष, अनुमान, उपमान और आगम । प्रत्यक्ष के दो भेद हैं । इन्द्रियप्रत्यक्ष और नोइन्द्रियप्रत्यक्ष । इन्द्रियप्रत्यक्ष पांच प्रकार का है । श्रोत्रेन्द्रियप्रत्यक्ष, चक्षुरिन्द्रियप्रत्यक्ष, घ्राणेन्द्रियप्रत्यक्ष, जिह्वेन्द्रियप्रत्यक्ष, स्पर्शनेन्द्रियप्रत्यक्ष । नोइन्द्रियप्रत्यक्ष तीन प्रकार का है-अवधिज्ञानप्रत्यक्ष, मनःपर्यवज्ञानप्रत्यक्ष, केवलज्ञानप्रत्यक्ष । ___ अनुमान क्या है ? तीन प्रकार का है-पूर्ववत्, शेषवत् और दृष्टसाधर्म्यवत् । पूर्ववत्अनुमान किसे कहते हैं ? पूर्व में देखे गये लक्षण से जो निश्चय किया जाये उसे पूर्ववत् कहते हैं । यथा [३०२-३०५] माता बाल्यकाल से गुम. हुए और युवा होकर वापस आये हुए पुत्र को किसी पूर्वनिश्चित चिह्न से पहचानती है कि यह मेरा ही पुत्र है । जैसे-देह में हुए क्षत, व्रण, लांछन, डाम आदि से बने चिह्नविशेष, मष, तिल आदि से जो अनुमान किया जाता है, वह
SR No.009790
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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