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________________ अनुयोगद्वार - २९९ २२३ असंख्यात श्रेणियों के वर्गमूल रूप है । द्वीन्द्रियों के बद्ध औदारिकशरीरों द्वारा प्रतर अपहृत किया जाए तो काल की अपेक्षा असंख्यात उत्सर्पिणी अवसर्पिणी कालों में अपहृत होता है तथा क्षेत्रतः अंगुल मात्र प्रतर और आवलिका के असंख्यातवें भाग - प्रतिभाग ( प्रमाणांश) से अपहृत होता है । औधिक मुक्त औदारिकशरीरों के समान मुक्त औदारिकशरीरों भी जानना । द्वीन्द्रियों के बद्धवैक्रिय - आहारकशरीर नहीं होते हैं और मुक्त के विषय में औधिक के समान जानना । द्वीन्द्रियों के शरीरों के समान त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय जीवों में भी कहना । पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिक जीवों के भी औदारिकशरीर इसी प्रकार जानना । पंचेन्द्रियतिर्यंचयोनिक जीवों के वैक्रियशरीर कितने हैं ? गौतम ! वे दो प्रकार के हैंबद्ध और मुक्त | बद्धवैक्रियशरीर असंख्यात हैं' जिनका कालतः असंख्यात उत्सर्पिणी-अवसर्पिणी कालों से अपहरण होता है और क्षेत्रतः यावत् विष्कम्भसूची अंगुल के प्रथम वर्गमूल के असंख्यातवें भाग में वर्त्तमान श्रेणियों जितनी है । मुक्तवैक्रियशरीरों का प्रमाण सामान्य दारिकशरीरों के प्रमाण तता इनके आहारकशरीरों का प्रमाण द्वीन्द्रियों के आहारकशरीरों के बराबर है । तैजस-कार्मण शरीरों का परिमाण औदारिकशरीरों के प्रमाणवत् है । भदन्त ! मनुष्यों के औदारिकशरीर कितने हैं ? गौतम ! वे दो प्रकार के हैं - बद्ध और मुक्त । बद्ध तो स्यात् संख्यात और स्यात् असंख्यात होते हैं । जघन्य पद में संख्यात कोटाकोट होत हैं अर्थात् उनतीस अंकप्रमाण होते हैं । ये उनतीस अंक तीन यमल पद के ऊपर तथा चार यमल पद से नीचे हैं, अथवा पंचमवर्ग से गुणित छठे वर्गप्रमाण होते हैं, अथवा छियानवे छेदनकदायी राशि जितनी संख्या प्रमाण हैं । उत्कृष्ट पद में वे शरीर असंख्यात हैं । जो कालतः असंख्यात उत्सर्पिणियों अवसर्पिणियों द्वारा अपहृत होते हैं और क्षेत्र की अपेक्षा एक रूप प्रक्षिप्त किये जाने पर मनुष्यों से श्रेणी अपहृत होती है । कालतः असंख्यात उत्सर्पिणी-अवसर्पिणी कालों से अपहार होता है और श्रेत्रतः तीसरे मूलवर्ग से गुणित अंगुल के प्रथम वर्गमूल प्रमाण होते हैं । उनके मुक्तऔदारिकशरीर औधिक मुक्त औदारिकशरीरों के समान जानना । मनुष्यों के वैक्रियशरीर दो प्रकार के हैं-बद्ध और मुक्त | बद्ध संख्यात हैं समय-समय में अपहृत किये जाने पर संख्यात काल में अपहृत होते हैं किन्तु अपहृत नहीं किये गये हैं । मुक्तवैक्रियशरीर मुक्त औधिक औदारिकशरीरों के बराबर जानना । मनुष्यों के आहारकशरीर दो प्रकार के हैं, यथा-बद्ध और मुक्त । बद्ध तो कदाचित् होते हैं और कदाचित् नहीं भी होते हैं । जब होते हैं तब जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट सहस्रपृथक्त्व होते हैं । मुक्त आहारकशरीर औधिक मुक्त औदारिकशरीरों के बराबर जानना । मनुष्यों के तैजसकार्मण शरीर का प्रमाण इन्हीं के औदारिक शरीरों के समान जानना । वाणव्यंतर देवों के औदारिकशरीरों का प्रमाण नारकों के औदारिकशरीरों जैसा जानना । वाणव्यंतर देवों के वैक्रियशरीर दो प्रकार के हैं-बद्ध और मुक्त । से बद्धवैक्रिय शरीर सामान्य रूप से असंख्यात हैं जो काल की अपेक्षा असंख्यात उत्सर्पिणी- अवसर्पिणी कालों में अपहृत होते हैं । क्षेत्रतः प्रतर के असंख्यातवें भाग में रही हुई असंख्यात श्रेणियों जितने हैं । उन श्रेणियों की विष्कंभसूची प्रतर के संख्येययोजनशतवर्ग प्रतिभाग रूप हैं । मुक्तवैक्रियशरीरों का प्रमाण औधिक औदारिकशरीरों की तरह जानना । आहारकशरीरों का परिमाण असुरकुमारों के आहारकशरीरों के प्रमाण जितना जानना । वाणव्यंतरों के तैजस-कार्मण शरीर इनके वैक्रियशरीर
SR No.009790
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size9 MB
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