Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 12
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

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Page 226
________________ अनुयोगद्वार-३०५ २२५ पूर्ववत्-अनुमान है । शेषवत्-अनुमान किसे कहते हैं ? पांच प्रकार का है । कार्येण, कारणेन, गुणेण, अवयवेन और आश्रयेण । कार्य से उत्पन्न होने वाले शेषवत्-अनुमान क्या है ? शंख के शब्द को सुनकर शंख का अनुमान करना, भेरी के शब्द से भेरी का, बैल के रंभाने से बैल का, केकारख सुनकर मोर का, हिनहिनाना सुनकर घोड़े का, गुलगुलाहट सुनकर हाथी का और घनघनाहट सुनकर रथ का अनुमान करना । यह कार्यलिंग से उत्पन्न शेषवत्-अनुमान है । कारणरूप लिंग से उत्पन्न शेषवत्-अनुमान इस प्रकार है-तंतु पट के कारण हैं, किन्तु पट तंतु का कारण नहीं है, वीरणा-तृण कट के कारण हैं, लेकिन कट वीरणा का कारण नहीं है, मिट्टी का पिंड घड़े का कारण है किन्तु घड़ा मिट्टी का कारण नहीं है । निकष-कसौटी से स्वर्ण का, गंध से पुष्प का, रस से नमक का, आस्वाद से मदिरा का, स्पर्श से वस्त्र का अनुमान करना गुणनिष्पन्न शेषवत्-अनुमान है । सींग से महिष का, शिखा से कुक्कुट का, दांत से हाथी का, दाढ से वराह का, पिच्छ से मयूर का, खुर से घोड़े का, नखों से व्याघ्र का, बालों के गुच्छे से चमरी गाय का, द्विपद से मनुष्य का, चतुष्पद से गाय आदि का, बहु पदों से गोमिका आदि का, केसरसटा से सिंह का, ककुद से वृषभ का, चूड़ी सहित बाहु से महिला का अनुमान करना । बद्धपरिकरता से योद्धा का, वेष से महिला का, एक दाने के पकने से द्रोण-पाक का और एक गाथा से कवि का ज्ञान होना । यह अवयवलिंगजन्य शेषवत्-अनुमान है । धूम से अग्नि का, बकपंक्ति से पानी का, अभ्रविकार से वृष्टि का और शील सदाचार से कुलपुत्र का तथा शरीर की चेष्टाओं से, भाषण करने से और नेत्र तथा मुख के विकार से अन्तर्गत मन का ज्ञान होना । यह आश्रयजन्य शेषवत्-अनुमान है । दृष्टसाधर्म्यवत्-अनुमान क्या है ? दो प्रकार का है । सामान्यदृष्ट, विशेषदष्ट । सामान्यदृष्ट अनुमान का स्वरूप इस प्रकार जानना-जैसा एक पुरुष होता है, वैसे ही अनेक पुरुष होते हैं । जैसे अनेक पुरुष होते हैं, वैसा ही एक पुरुष होता है । जैसा एक कार्षापण होता है वैसे ही अनेक कार्षापण होते हैं, जैसे अनेक कार्षापण होते हैं, वैसा ही एक कार्षापण होता है । विशेषदृष्ट अनुमान का स्वरूप यह है-जैसे कोई एक पुरुष अनेक पुरुषों के बीच में किसी पूर्वदृष्ट पुरुष को पहचान लेता है कि यह वह पुरुष है । इसी प्रकार अनेक कार्षापणों के बीच में से पूर्व में देखे हुए कार्षापण को पहिचान लेता है कि यह वही कार्षापण है । उसका विषय संक्षेप से तीन प्रकार का है । अतीत, प्रत्युत्पन्न और अनागत कालग्रहण । अतीतकालग्रहण अनुमान क्या है ? वनों में ऊगी हुई घास, धान्यों से परिपूर्ण पृथ्वी, कुंड, सरोवर, नदी और बड़े-बड़े तालाबों को जल से संपूरित देखकर यह अनुमान करना कि यहाँ अच्छी वृष्टि हुई है । यह अतीतकालग्रहणसाधर्म्यवत्-अनुमान है । गोघरी गये हुए साधु को गृहस्थों से विशेष प्रचुर आहार-पानी प्राप्त करते हुए देखकर अनुमान किया जाता है कि यहाँ सुभिक्ष है । यह प्रत्युत्पन्नकालग्रहण अनुमान है । अनागतकालग्रहण का क्या स्वरूप है ? [३०६] आकाश की निर्मलता, पर्वतों का काला दिखाई देना, बिजली सहित मेघों की गर्जना, अनुकूल पवन और संध्या की गाढ लालिमा । तथा [३०७] वारुण, माहेन्द्र, अथवा किसी अन्य प्रशस्त उत्पात को देखकर अनुमान करना कि अच्छी वृष्टि होगी । इसे अनागतकालग्रहणविशेषदष्टसाधर्म्यवत्-अनुमान कहते हैं । 1215

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