Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 12
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

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Page 179
________________ १७८ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद है, वह कालोपक्रम है । [७९] भावोपक्रम क्या है ? दो प्रकार हैं । आगमभावोपक्रम, नोआगमभावोपक्रम । भगवन् ! आगमभावोपक्रम क्या है ? उपक्रम के अर्त को जानने के साथ जो उसके उपयोग से भी युक्त हो, वह आगमभावोपक्रम है । नोआगमभावोपक्रम दो प्रकार का है । प्रशस्त और अप्रशस्त । अप्रशस्त भावोपक्रम क्या है ? डोडणी ब्राह्मणी, गणिका और अमात्यादि का अन्य के भावों को जानने रूप उपक्रम अप्रशस्त नोआगमभावोपक्रम है । प्रशस्त भावोपक्रम क्या है ? गुरु आदि के अभिप्राय को यथावत् जानना प्रशस्त नोआगमभावोपक्रम है । [८०] अथवा उपक्रम के छह प्रकार हैं । आनुपूर्वी, नाम, प्रमाण, वक्तव्यता, अर्थाधिकार और समवतार । [८१] आनुपूर्वी क्या है ? दस प्रकार की है । नामानुपूर्वी, स्थापनानुपूर्वी, द्रव्यानुपूर्वी, क्षेत्रानुपूर्वी, कालानुपूर्वी, उत्कीर्तनानुपूर्वी, गणनानुपूर्वी, संस्थानानुपूर्वी, सामाचार्यनुपूर्वी, भावानुपूर्वी । [८२] नाम (स्थापना) आनुपूर्वी क्या है ? नाम और स्थापना आनुपूर्वी का स्वरूप नाम और स्थापना आवश्यक जैसा जानना । द्रव्यानुपूर्वी का स्वरूप भी ज्ञायकशरीरभव्यशरीव्यतिरिक्त द्रव्यानुपूर्वी के पहले तक सभेद द्रव्यावश्यक के समान जानना चाहिये । ज्ञायकशरीर-भव्यशरीरव्यतिरिक्त द्रव्यानुपूर्वी क्या है ? दो प्रकार की है । औपनिधिकी और अनौपनिधिकी द्रव्यानपूर्वी । इनमें से औपनिधिकी द्रव्यानुपूर्वी स्थाप्य है । तथा अनौपनिधिकी द्रव्यानुपूर्वी के दो प्रकार हैं-नैगम-व्यवहारनयसंमत, संग्रहनयसंमत । [८३] नैगमनय और व्यवहारनय द्वारा मान्य अनौपनिधिकी द्रव्यानुपूर्वी क्या है ? उसके पांच प्रकार हैं । अर्थपदप्ररूपणा, भंगसमुत्कीर्तनता, भंगोपदर्शनता, समवतार और अनुगम। [८४] भगवन् ! नैगम-व्यवहारनयसंमत अर्थपद की प्ररूपणा क्या हैं ? त्र्यणुकस्कन्ध आनुपूर्वी है । इसी प्रकार चतुष्प्रदेशिक आनुपूर्वी यावत् दसप्रदेशिक, संख्यातप्रदेशिक, असंख्यातप्रदेशिक और अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध आनुपूर्वी है । किन्तु परमाणु पुद्गल अनानुपूर्वी रूप है । द्विप्रदेशिक स्कन्ध अवक्तव्य है । अनेक त्रिप्रदेशिक स्कन्ध यावत् अनेक अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध आनुपूर्वियाँ-अनेक आनुपूर्वी रूप हैं । अनेक पृथक्-पृथक् पुद्गल परमाणु अनेक अनानुपूर्वी रूप हैं । अनेक द्विप्रदेशिक स्कन्ध अनेक अवक्तव्य हैं ।। [८५] नैगम-व्यवहारनयसंमत इस अर्थपदप्ररूपणा रूप आनुपूर्वी से क्या प्रयोजन सिद्ध होता है ? इनसे भंगसमुत्कीर्तना की जाती है । [८६] नैगम-व्यवहारनयसंमत भंगसमुत्कीर्तन क्या है ? वह ईस प्रकार है-आनुपूर्वी है, अनानुपूर्वी है, अवक्तव्य है, आनुपूर्वियां हैं, अनानुपूर्वियां हैं, (अनेक) अवक्तव्य हैं । अथवाआनुपूर्वी और अनानुपूर्वी है, आनुपूर्वी और अनानुपूर्वियां हैं, आनुपूर्वियां और अनानुपूर्वी है, आनुपूर्वियां और अनानुपूर्वियां हैं । अथवा-आनुपूर्वि और अवक्तव्यक है, आनुपूर्वी और (अनेक) अवक्तव्य हैं, आनुपूर्वियां और अवक्तव्य है, आनुपूर्वियां और (अनेक) अवक्तव्य हैं । अथवा अनानुपूर्वी और अवक्तव्य है, अनानुपूर्वी और (अनेक अवक्तव्य हैं, अनानुपूर्वियां और (एक) अवक्तव्य है, अनानुपूर्वियां और अनेक अवक्तव्य हैं । अथवा- आनपूर्वी, अनानुपूर्वी और अवक्तव्य है, आनुपूर्वी, अनानुपूर्वी और अनेक अवक्तव्य हैं, आनुपूर्वी, अनानुपूर्वियां और

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