Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 12
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

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Page 198
________________ अनुयोगद्वार - १६३ क्षायिकपारिणामिकनिष्पन्नभाव, औदयिक- औपशमिक क्षायोपशमिक-पारिणामिकनिष्पन्नभाव, औदयिकक्षायिक क्षायोपशमिक-पारिणामिकनिष्पन्नभाव, औपशमिक क्षायिक क्षायोपशमिकपारिणामिकनिष्पन्नभाव । औदयिक - औपशमिक क्षायिक क्षायोपशमिकनिष्पन्न सान्निपातिकभाव क्या है ? औदयिकभाव में मनुष्य, औपशमिकभाव में उपशांतकषाय, क्षायिकभाव में क्षायिकसम्यक्त्व और क्षायोपसमिकभाव में इन्द्रियां, यह औदयिक-औपशमिकक्षायिकक्षायोपशमिकभावनिष्पन्न सान्निपातिकभाव का स्वरूप है । औदयिकभाव में मनुष्यगति, औपशमिकभाव में उपशांतकषाय, क्षायिकभाव में क्षायिकसम्यक्त्व और पारिणामिकभाव में जीवत्व, यह औदयिक औपशमिक क्षायिकपारिणामिकभावनिष्पन्न सान्निपातिकभाव का स्वरूप है । औदयिकभाव में मनुष्यगति, औपशमिकभाव में उपशांतकपाय, क्षायोपशमिकभाव में इन्द्रियां और पारिणामिकभाव में जीवत्व, इस प्रकार से औदयिक - औपशमिकक्षायोपशमिकपारिणामिकभावनिष्पन्न सान्निपातिकभाव के तृतीय भंग का स्वरूप जानना । औदयिकभाव में मनुष्यगति, क्षायिकभाव में क्षायिकसम्यक्त्व, क्षायोपशमिकभाव में इन्द्रियां और पारिणामिकभाव में जीवत्व, यह औदयिक क्षायिक क्षायोपशमिकपारिणामिकभावनिष्पन्न सान्निपातिकभाव का स्वरूप है । औपशमिकभाव में उपसांतकषाय, क्षायिकभाव में क्षायिकसम्यक्त्व, क्षायोपशमिकभाव में इन्द्रियां और पारिणामिकभाव में जीवत्व, यह औपशमिक - क्षायिकक्षायोपशमिक-पारिणामिकभावनिष्पन्न सान्निपातिकभाव का स्वरूप है । पंचसंयोगज सान्निपातिकभाव का एक भंग इस प्रकार है- औदयिक - औपशमिकक्षायिकक्षायोपशमिक-पारिणामिकनिष्पन्नभाव । औदयिक - औपशमिक- ७यिक क्षायोपशमिकपारिणामिकभावनिष्पन्न सान्निपातिकभाव क्या है ? औदयिकभाव में मनुष्यगति, औपशमिकभाव में उपशांतकपाय, क्षायिकभाव में क्षायिकसम्यक्त्व, ७योपशमिकभाव में इन्द्रियां और पारिणामिकभाव में जीवत्व, यह औदयिक औपशमिक क्षायिक क्षायोपशमिकपारिणामिकभावनिष्पन्न सान्निपातिकभाव का स्वरूप है । इस प्रकार से सान्निपातिकभाव और हाथ ही पड़नाम का वर्ण' समाप्त हुआ । [१६४-१६५] सप्तनाम क्या है ? सात प्रकार के स्वर रूप है । षड्ज, ऋषभ, गांधार, मध्यम, पंचम, धैवत और निषाद, ये सात स्वर जानना | १९७ [१६६-१६८] इन सात स्वरों के सात स्वर स्थान हैं । जिह्वा के अग्रभाग से षड्जस्वर का, वक्षस्थल से ऋषभस्वर, कंठ से गांधारस्वर, जिह्वा के मध्यभाग से मध्यमस्वर, नासिका से पंचमस्वर का, दंतोष्ठ- संयोग से धैवतस्वर का और मूर्धा से निषाद स्वर का उच्चारण करना चाहिए । [१६९-१७१] जीवनिश्रित - सप्तस्वरों का स्वरूप इस प्रकार है— मयूर षड्जस्वर में, कुक्कुट ऋषभस्वर, हंस गांधारस्वर में, गवेलक मध्यमस्वर में, कोयल पुष्पोत्पत्तिकाल में पंचमस्वर में, सारस और क्रौंच पक्षी धैवतस्वर में तथा - हाथी निषाद स्वर में बोलता है । [१७२ - १७४] अजीवनिश्रित - मृदंग से षड्जस्वर, गोमुखी से ऋषभस्वर, शंख से गांधारस्वर, झालर से मध्यमस्वर, चार चरणों पर स्थित गोधिका से पंचमस्वर, आडंबर से धैवतस्वर तथा महाभेरी से निषादस्वर निकलता है । [१७५-१८२] इन सात स्वरों के सात स्वरलक्षण हैं । षड्जस्वर वाला मनुष्य वृत्ति

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