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अनुयोगद्वार - २००
[२०० ] भणतियां दो प्रकार की हैं - संस्कृत और प्राकृत । ये दोनों प्रशस्त एवं ऋषिभाषित हैं और स्वरमंडल में पाई जाती है ।
[२०१ - २०२] कौन स्त्री मधुर स्वर में गीत गाती है ? पुरुष और रूक्ष स्वर में कौन गाती है ? चतुराई से कौन गाती है ? विलंबित स्वर में कौन गाती है ? द्रुत स्वर में कौन गाती है ? तथा विकृत स्वर में कौन गाती है ? श्यामा स्त्री मधुर स्वर में गीत गाती है, कृष्णवर्णा स्त्री खर और रूक्ष स्वर में, गौरवर्णा स्त्री चतुराई से, कानी स्त्री विलंबित स्वर में, अंधी स्त्री शीघ्रता से और पिंगला विकृत स्वर में गीत गाती है ।
[२०३-२०४] इस प्रकार सात स्वर, तीन ग्राम और इक्कीस मूर्च्छनायें होती हैं । प्रत्येक स्वर सात तानों से गाया जाता है, इसलिये उनके उनपचास भेद हो जाते हैं । इस प्रकार स्वरमंडल का वर्णन समाप्त हुआ ।
[२०५- २०७] अष्टनाम क्या है ? आठ प्रकार की वचनविभक्तियों अष्टनाम हैं । वचनविभक्ति के वे आठ प्रकार यह हैं-निर्देश अर्थ में प्रथमा, उपदेशक्रिया के प्रतिपादन में द्वितीया, क्रिया के प्रति साधकतम कारण में तृतीया, संप्रदान में चतुर्थी, अपादान में पंचमी, स्व-स्वामित्वप्रतिपादन में पष्ठी सन्निधान में सप्तमी और संबोधित, अर्थ में अष्टमी विभक्ति होती है । [२०८ - २१२] निर्देश में प्रथमा विभक्ति होती है । जैसे - वह, यह अथवा मैं । उपदेश में द्वितीया विभक्ति होती है । —जैसे इसको कहो, उसको करो आदि । करण में तृतीया विभक्ति होती है । जैसे- उसके और मेरे द्वारा कहा गया अथवा उसके ओर मेरे द्वारा किया गया । संप्रदान, नमः तथा स्वाहा अर्थ में चतुर्थी विभक्ति होती है । अपादान में पंचमी होत है । जैसे - यहां से दूर करो अथवा इससे ले लो । स्वस्वामीसम्बन्ध बतलाने में षष्ठी विभक्ति होती है । जैसे- उसकी अथवा इसकी यह वस्तु है । आधार, काल और भाव में सप्तमी विभक्ति होती है । जैसे ( वह) इसमें है । आमंत्रण अर्थ में अष्टमी विभक्ति होती है। जैसे - हे युवन् !
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[२१३-२१४] नवनाम क्या है ? काव्य के नौ रस नवनाम कहलाते हैं । जिनके नाम हैं - वीररस, श्रृंगाररस, अद्भुतरस, रौद्ररस, व्रीडनकरस, बीभत्सरस, हास्यरस, कारुण्यरस और प्रशांतरस ।
[२१५-२१६] इन नव रसों में 9. परित्याग करने में गर्व या पश्चात्ताप न होने, २. तपश्चरण में धैर्य और ३. शत्रुओं का विनाश करने में पराक्रम होने रूप लक्षण वाला वीररस है । राज्य-वैभव का परित्याग करके जो दीक्षित हुआ और दीक्षित होकर काम-क्रोध आदि रूप महाशत्रुपक्ष का जिसने विघात किया, वही निश्चय से महावीर है ।
[२१७-२१८] श्रृंगाररस रति के कारणभूत साधनों के संयोग की अभिलाषा का जनक है तथा मंडन, विलास, विब्बोक, हास्य-लीला और रमण ये सब श्रृंगाररस के लक्षण हैं । कामचेष्टाओं से मनोहर कोई श्यामा क्षुद्र घंटिकाओं से मुखरित होने से मधुर तथा युवकों के हृदय को उन्मत्त करने वाले अपने कोटिसूत्र का प्रदर्शन करती है ।
[२१९-२२०] पूर्व में कभी अनुभव में नहीं आये अथवा अनुभव में आये किसी विस्मयकारी आश्चर्यकारक पदार्थ को देखकर जो आश्चर्य होता है, वह अद्भुतरस है । हर्ष और