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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
उत्थानश्रुत, समुत्थानश्रुत, नागपरिज्ञापनिका, निरयावलिका, कल्पिका, कल्पावतंसिका, पुष्पिता, पुष्पचूलिका और वृष्णिदशा आदि ।
८४००० प्रकीर्णक अर्हत् भगवान् श्रीऋषभदेव स्वामी आदि तीर्थंकर के हैं तथा संख्यात सहस्र प्रकीर्णक मध्यम तीर्थंकरों के हैं । १४००० प्रकीर्णक भगवान् महावीर स्वामी के हैं । इनके अतिरिक्त जिस तीर्थंकर के जितने शिष्य औत्पत्तिकी, वैनविकी, कर्मजा और पारिणामिकी बुद्धि से युक्त हैं, उनके उतने ही हजार प्रकीर्णक होते हैं । प्रत्येकबुद्ध भी उतने ही होते हैं । यह कालिकाश्रुत है । इस प्रकार आवश्यक-व्यतिरिक्त श्रुत और अनङ्ग-प्रविष्ट श्रुत का स्वरूप भी सम्पूर्ण हुआ ।
[१३८] -अङ्गप्रविष्टश्रुत कितने प्रकार का है ? बारह प्रकार का आचार, सूत्रकृत, स्थान, समवाय, व्याख्याप्रज्ञप्ति, ज्ञाताधर्मकथा, उपासकदशा, अन्तकृत्दशा, अनुत्तररौपपातिकदशा, प्रश्नव्याकरण, विपाकश्रुत और दृष्टिवाद ।।
[१३९] -आचार नामक अंगसूत्र का क्या स्वरूप है ? उसमें बाह्य-आभ्यंतर परिग्रह से रहित श्रमण निर्ग्रन्थों का आचार, गोचर-भिक्षा के ग्रहण करने की विधि, विनय, विनय का फल, ग्रहण और आसेवन रूप शिक्षा, बोलने योग्य एवंत्याज्य भाषा, चरण-व्रतादि, करणपिण्डविशुद्धि आदि, संयम का निर्वाह और अभिग्रह धारण करके विचरण करना इत्यादि विषयों का वर्णन है । वह आचार संक्षेप में पाँच प्रकार का है, जैसे-ज्ञानाचार, दर्शनाचार, चारित्राचार, तपाचार और वीर्याचार | आचारश्रुत में सूत्र और अर्थ से परिमित वाचनाएँ हैं, संख्यात अनुयोगद्वार, संख्यात वेढ-छंद, संख्यात श्लोक, संख्यात नियुक्तियाँ और संख्यात प्रत्तिपत्तियाँ वर्णित हैं । आचार अर्थ से प्रथम अंग है । उसमें दो श्रुतस्कन्ध हैं, पच्चीस अध्ययन हैं । पच्यासी उद्देशनकाल हैं, पच्यासी समुद्देशनकाल हैं । पदपरिमाण से अठारह हजार पद हैं । संख्यात अक्षर हैं । अनन्त गम और अनन्त पर्यायें हैं । परिमित त्रस और अनन्त स्थावर जीवों का वर्णन है । शाश्वत-धर्मास्तिकाय आदि, कृत-प्रयोगज-घटादि, विश्रसा-स्वाभाविक-सध्या, बादलों आदि का रंग, ये सभी आचार सूत्र में स्वरूप से वर्णित हैं । नियुक्ति, संग्रहणी, हेतु, उदाहरण आदि अनेक प्रकार से जिन-प्रज्ञप्त भाव-पदार्थ, सामान्य रूप से कहे गए हैं । नामादि से प्रज्ञप्त हैं । विस्तार से कथन किये गये हैं । उपमान आदि से पुष्ट किये गए हैं | आचार को ग्रहण करने वाला, उसके अनुसार क्रिया करने वाला, आचार की साक्षात् मूर्ति बन जाता है । वह भावों का ज्ञाता और विज्ञाता हो जाता है । इस प्रकार आचारांग सूत्र में चरण-करण की प्ररूपणा की गई है । यह आचार सूत्र का स्वरूप है ।।
[१४०] -सूत्रकृत में किस विषय का वर्णन है ? सूत्रकृत में षड्द्रव्यात्मक लोक, केवल आकाश द्रव्यमय अलोक, लोकालोक दोनों सूचित किये जाते हैं । इसी प्रकार जीव, अजीव और जीवाजीव की सूचना है । स्वमत, परमत और स्व-परमत की है । सूत्रकृत में १८० क्रियावादियों के, ८४ अक्रियावादियों के, ६७ अज्ञानवादियों और ३२ विनयवादियों के, इस प्रकार ३६३ पाखंडियों का निराकरण करके स्वसिद्धांत की स्थापना की जाती है । सूत्रकृत में परिमित वाचनाएँ हैं, संख्यात अनुयोगद्वार, संख्यात छन्द, संख्यात श्लोक, संख्यात नियुक्तियाँ संख्यात संग्रहणियाँ और संख्यात प्रतिपत्तियाँ हैं । यह अङ्ग अर्थ की दृष्टि से दूसरा है । इसमें दो श्रुतस्कंध और तेईस अध्ययन हैं । तेतीस उद्देशनकाल और तेतीस समुद्देशनकाल