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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
धर्माचार्य, धर्मकथा, इह-परलौकिक ऋद्धि, नरकगमन, भवभ्रमण, दुःखपरम्परा, दुष्कुल में जन्म तथा दुर्लभबोधिता की प्ररूपणा है । सुखविपाक श्रुत में सुखरूप फल भोगनेवाले के नगर, उद्यान, वनखण्ड, व्यन्तरायतन, समवसरण, राजा, माता-पिता, धर्मोचार्य, धर्मकथा, ऋद्धि विशेष भोगों का परित्याग, प्रवज्या, दीक्षापर्याय, श्रुत ग्रहण, उपधानतप, संलेखना, भक्तप्रत्याख्यान, पादपोपगमन, देवलोकगमन, सुखों की परम्परा, पुनः बोधिलाभ, अन्तक्रिया इत्यादि विषयों है । इस में परिमित वाचना, संख्यात अनुयोगद्वार, संख्यात वेढ, संख्यात श्लोक, संख्यात नियुक्तियां संख्यात संग्रहणियाँ और संख्यात प्रतिपत्तियां हैं । वह ग्यारहवाँ अंग है । इसके दो श्रुतस्कंध, बीस अध्ययन, बीस उद्देशनकाल और बीस समुद्देशनकाल हैं । पद परिमाण से संख्यात सहस्र पद हैं, संख्यात अक्षर, अनन्त गम, अनन्त पर्याय, परिमित त्रस, अनन्त स्थावर, शाश्वत-कृत-निबद्ध-निकाचित जिनप्ररूपित भाव हेतु आदि से निर्णीत, प्ररूपित, निदर्शित और उपदर्शित किए गए हैं । विपाकश्रुत का अध्ययन करनेवाला एवंभूत आत्मा, ज्ञाता तथा विज्ञाता बन जाता है । इस तरह से चरण-करण की प्ररूपणा की गई है ।
[१५०] दृष्टिवाद क्या है ? दृष्टिवाद-सब नयदृष्टियों का कथन करने वाले श्रुत में समस्त भावों की प्ररूपणा है । संक्षेप में पाँच प्रकार का है । परिकर्म, सूत्र, पूर्वगत, अनुयोग और चूलिका ।
परिकर्म सात प्रकार का है, सिद्ध-श्रेणिकापरिकर्म, मनुष्य-श्रेणिकापरिकर्म, पुष्टश्रेणिकापरिकर्म, अवगाढ-श्रेणिकापरिकर्म, उपसम्पादन-श्रेणिकापरिकर्म, विप्रजहत् श्रेणिकापरिकर्म और च्युताच्युतश्रेणिका-परिकर्म ।
सिद्धश्रेणिका परिकर्म चौदह प्रकार का है । यथा-मातृकापद, एकार्थपद, अर्थपद, पृथगाकाशपद, केतुभूत, राशिबद्ध, एकगुण, द्विगुण, त्रिगुण, केतुभूत, प्रतिग्रह, संसारप्रतिग्रह, नन्दावर्त, सिद्धावर्त ।
मनुष्यश्रेणिका परिकर्म चौदह प्रकार का है, जैसे–मातृकापद, एकार्थक पद, अर्थपद, पृथगाकाशपद, केतुभूत, राशिबद्ध, एक गुण, द्विगुण, त्रिगुण, केतुभूत, प्रतिग्रह, संसारप्रतिग्रह, नन्दावर्त और मनुष्यावर्त ।
पृष्टश्रेणिका परिकर्म ग्यारह प्रकार का है, पृथगाकाशपद, केतुभूत, प्रतिग्रह, संसारप्रतिग्रह, नन्दावर्त और अवगाढावर्त ।
उपसम्पादन श्रेणिका परिकर्म ग्यारह प्रकार का है । पृथगाकाशपद, केतुभूत, राशिबद्ध, एकगुण, द्विगुण, त्रिगुण, केतुभूत, प्रतिग्रह, संसार प्रतिग्रह, नन्दावर्त और उपसम्पादनावर्त ।
विप्रजहत्श्रेणिका परिकर्म ग्यारह प्रकार का है । पृथकाकाशपद, केतुभूत, राशिबद्ध, एकगुण, द्विगुण, त्रिगुण, केतुभूत, प्रतिग्रह, संसारप्रतिग्रह, नंदावर्त, विप्रजहदावर्त्त । च्युताच्युत श्रेणिका परिकर्म ग्यारह प्रकार का है, पृथगाकाशपद, केतुभूत, राशिबद्ध, एकगुण, द्विगुण, त्रिगुण, केतुभूत, प्रतिग्रह, संसार-प्रतिग्रह, नन्दावर्त और च्युताच्युतावर्त । इन म्यारह भेदों में से प्रारम्भ के छह परिकर्म चार नयों के आश्रित हैं और अंतिम सात में त्रैराशिक मत का दिग्दर्शन कराया गया है ।
सूत्र रूप दृष्टिवाद बाईस प्रकार से है । ऋजुसूत्र, परिणतापरिणत, बहुभंगिक, विजयचरित, अनन्तर, परम्पर, आसान, संयूथ, सम्भिन्न, यथावाद, स्वस्तिकावर्त, नन्दावर्त, बहुल, पृष्टापृष्ट,