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अनुयोगद्वार-१८
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योनिस्थान से बाहर निकला और उसी प्राप्त शरीर द्वारा जिनोपदिष्ट भावानुसार भविष्य में आवश्यक पद को सीखेगा, किन्तु अभी सीख नहीं रहा है, ऐसे उस जीव का वह शरीर भव्यशरीरद्रव्यावश्यक है । इसका कोई दृष्टान्त है ? यह मधुकुंभ होगा, यह घृतकुंभ होगा । यह भव्यशरीरद्रव्यावश्यक का स्वरूप है ।
[१९] ज्ञायकशरीर-भव्यशरीरव्यतिरिक्तद्रव्यावश्यक क्या है ? वह तीन प्रकार का है । लौकिक, कुप्रावचनिक, लोकोत्तरिक ।
[२०] भगवन् ! लौकिक द्रव्यावश्यक क्या है ? जो ये राजा, ईश्वर, तलवर, माडंबिक, कौटुम्बिक, इभ्य, श्रेष्ठी, सेनापति, सार्थवाह आदि रात्रि के व्यतीत होने से प्रभातकालीन किंचिन्मात्र प्रकाश होने पर, पहले की अपेक्षा अधिक स्फुट प्रकाश होने, विकसित कमलपत्रों एवं मृगों के नयनों के ईषद् उन्मीलन से युक्त, प्रभात के होने तथा रक्त अशोकवृक्ष, पलाशपुष्प, तोते के मुख और गुंजा के अर्ध भाग के समान रक्त, सरोवरवर्ती कमलवनों को विकसित करने वाले और अपनी सहस्र रश्मियों से दिवसविधायक तेज से देदीप्यमान सूर्य के उदय होने पर मुख को धोना, दंतप्रक्षालन, तेलमालिश करना, स्नान, कंधी आदि से केशों को संवारना, मंगल के लिए सरसों, पुष्प, दूर्वा आदि का प्रक्षेपण, दर्पण में मुख देखना, धूप जलाना, पुष्पों
और पुष्पमालाओं को लेना, पान, खाना, स्वच्छ वस्त्र पहनना आदि करते हैं और उसके बाद राजसभा, देवालय, आरामगृह, उद्यान, सभा अथवा प्रपा की ओर जाते हैं, वह लौकिक द्रव्यावश्यक है ।
[२१] कुप्रावचनिक द्रव्यावश्यक क्या है ? जो ये चरक, चीरिक, चर्मखंडिक, भिक्षोण्डक, पांडुरंग, गौतम, गोव्रतिक, गृहीधर्मा, धर्मचिन्तक, अविरुद्ध, विरुद्ध, वृद्धश्रावक आदि पाषंडस्थ रात्रि के व्यतीत होने के अनन्तर प्रभात काल में यावत् सूर्य के जाज्वल्यमान तेज से दीप्त होने पर इन्द्र, स्कन्ध, रुद्र, शिव, वैश्रमण अथवा देव, नाग, यक्ष, भूत, मुकुन्द, आयदेिवी, कोट्टक्रियादेवी आदि की उपलेपन, समार्जन, स्नपन, धूप, पुष्प, गंध, माला आदि द्वारा पूजा करने रूप द्रव्यावश्यक करते हैं, वह कुप्रावचनिक द्रव्यावश्यक है ।
[२२] लोकोत्तरिक द्रव्यावश्यक क्या है ? जो श्रमण के गुणों से रहित हों, छह काय के जीवों के प्रति अनुकम्पा न होने के कारण अश्व की तरह उद्दाम हों, हस्तिवत् निरंकुश हों, स्निग्ध पदार्थों के लेप से अंग-प्रत्यंगों को कोमल, सलौना बनाते हों, शरीर को धोते हों, अथवा केशों का संस्कार करते हों, ओठों को मुलायम रखने के लिये मक्खन लगाते हों, पहनने के वस्त्रों को धोने में आसक्त हों और जिनेन्द्र भगवान् की आज्ञा की उपेक्षा कर स्वच्छंद विचरण करते हों, किन्तु उभयकाल आवश्यक करने के लिये तत्पर हों तो उनकी वह क्रिया लोकोत्तरिक द्रव्यावश्यक है । इस प्रकार यह ज्ञायकशरीर-भव्यशरीरव्यतिरिक्त द्रव्यावश्यक का स्वरूप जानना चाहिये ।
[२३] भावावश्यक क्या है ? दो प्रकार का है-आगमभावावश्यक और नोआगमभावावश्यक ।
[२४] आगमभावावश्यक क्या है ? जो आवश्यक पद का ज्ञाता हो और साथ ही उपयोग युक्त हो, वह आगमभावावश्यक है ।
[२५] नोआगमभावावश्यक किसे कहते हैं ? तीन प्रकार का है । लौकिक, कुप्रावचनिक