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उत्तराध्ययन- २३/९०३
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[९०३ - ९०४] - अश्व किसे कहा गया है ?" केशी ने गौतम को कहा । गौतम ने कहा - " मन ही साहसिक, भयंकर, दुष्ट अश्व है, जो चारों तरफ दौड़ता है । उसे मैं अच्छी तरह वश में करता हूँ । धर्मशिक्षा से वह कन्थक अश्व हो गया है ।”
[९०५-९०६ ] – “गौतम ! तुम्हारी प्रज्ञा श्रेष्ठ है । तुमने मेरा यह संदेह दूर किया । मेरा एक और भी संदेह है । गौतम ! उसके विषय में भी मुझे कहें ।" - " गौतम ! लोक में कुमार्ग बहुत हैं, जिससे लोग भटक जाते हैं । मार्ग पर चलते हुए तुम क्यों नहीं भटकते हो ?"
[९०७] गणधर गौतम - " जो सन्मार्ग से चलते हैं और जो उन्मार्ग से चलते हैं, उन सबको मैं जानता हूँ । अतः हे मुने ! मैं नहीं भटकता हूँ ।
[९०८- ९०९] - " मार्ग किसे कहते हैं ?" केशी ने गौतम को कहा । गौतम ने कहा - " मिथ्या प्रवचन को मानने वाले सभी पाषण्डी लोग उन्मार्ग पर चलते हैं । सन्मार्ग तो जिनोपदिष्ट है, और यही उत्तम मार्ग है ।"
[९१० - ९११] - " गौतम ! तुम्हारी प्रज्ञा श्रेष्ठ है । तुमने मेरा यह संदेह दूर किया । मेरा एक और भी संदेह है । गौतम ! उसके विषय में भी मुझे कहें ।" "मुने ! महान् जलप्रवाह के वेग से बहते - डूबते हुए प्राणियों के लिए शरण, गति, प्रतिष्ठा और द्वीप तुम किसे मानते हो ?"
[९१२] गणधर गौतम - " जल के बीच एक विशाल महाद्वीप है । वहाँ महान् जलप्रवाह के वेग की गति नहीं है ।"
[९१३ - ९१४] - वह महाद्वीप कौन सा है ?" केशी ने गौतम को कहा । गौतम ने कहा - " जरा-मरण के वेग से बहते - डूबते हुए प्राणियों के लिए धर्म ही द्वीप, प्रतिष्ठा, गति और उत्तम शरण है ।"
[९१५-९१६] – “गौतम ! तुम्हारी प्रज्ञा श्रेष्ठ है । तुमने मेरा यह संदेह दूर किया, मेरा एक और भी संदेह है । गौतम ! उसके विषय में भी मुझे कहें ।" - महाप्रवाह वाले समुद्र में नौका डगमगा रही है । तुम उस पर चढ़कर कैसे पार जा सकोगे ?"
[९१७] गणधर गौतम - " जो नौका छिद्रयुक्त है, वह पार नहीं जा सकती है । जो छिद्ररहित है; वही नौका पार जाती है ।"
[९१८-९१९] "वह नौका कौन सी है ?” केशी ने गौतम को कहा । गौतम ने कहा - " शरीर नौका है, जीव नाविक है और संसार समुद्र है, जिसे महर्षि तैर जाते हैं ।"
[९२०-९२१] – “गौतम ! तुम्हारी प्रज्ञा श्रेष्ठ है । तुमने मेरा यह संदेह दूर किया । मेरा एक और भी संदेह है । गौतम ! उसके विषय में भी मुझे कहें ।" - "भयंकर गाढ अन्धकार में बहुत प्राणी रह रहे हैं । सम्पूर्ण लोक में प्राणियों के लिए कौन प्रकाश
करेगा ?"
[९२२] गणधर गौतम - " सम्पूर्ण जगत् में प्रकाश करने वाला निर्मल सूर्य उदित हो चुका है । वह सब प्राणियों के लिए प्रकाश करेगा ।"
[९२३ - ९२४] "वह सूर्य कौन है ?" केशी ने गौतम को कहा । गौतम ने कहा" जिसका संसार क्षीण हो गया है, जो सर्वज्ञ है, ऐसा जिन भास्कर उदित हो चुका है । वह