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उत्तराध्ययन- ३६/१५५९
धान्य, तृण और हरितकाय - ये सभी प्रत्येक शरीरी हैं ।
[१५६०-१५६३] साधारणशरीरी अनेक प्रकार के हैं-आलुक, मूल, श्रृंगवेर, हिरिलीकन्द, सिरिलीकन्द, सिस्सिरिलीकन्द, जावईकन्द, केद-कंदलीकन्द, प्याज, लहसुन, कन्दली, कुस्तुम्बक, लोही, स्निहु, कुहक, कृष्ण, वज्रकन्द और सूरण- कन्द, अश्वकर्णी, सिंहकर्णी, मुसुंढी और हरिद्रा इत्यादि ।
[१५६४-१५६८] सूक्ष्म वनस्पति काय के जीव एक ही प्रकार के हैं, उनके भेद नहीं हैं । सूक्ष्म वनस्पतिकाय के जीव सम्पूर्ण लोक में और बादर वनस्पति काय के जीव लोक के एक भाग में व्याप्त हैं । वे प्रवाह की अपेक्षा से अनादि अनन्त हैं और स्थिति की अपेक्षा से सादिसान्त हैं । उनकी दस हजार वर्ष की उत्कृष्ट और अन्तर्मुहूर्त की जघन्य आयु-स्थिति है । उनकी अनन्त काल की उत्कृष्ट और अन्तर्मुहूर्त की जघन्य काय स्थिति है । वनस्पति के शरीर को न छोड़कर निरन्तर वनस्पति के शरीर में ही पैदा होना, कायस्थिति है । वनस्पति के शरीर को छोड़कर पुनः वनस्पति के शरीर में उत्पन्न होने में जो अन्तर होता है, वह जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट असंख्यात काल का है ।
[१५६९] वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श और संस्थान की अपेक्षा से वनस्पतिकाय के हजारों भेद हैं ।
[१५७०] इस प्रकार संक्षेप से तीन प्रकार के स्थावर जीवों का निरूपण किया गया। अब क्रमशः तीन प्रकार के त्रस जीवों का निरूपण करूँगा ।
[१५७१] तेजस्, वायु और उदार त्रस - ये तीन त्रसकाय के भेद हैं. उनके भेदों को मुझसे सुनो।
[१५७२-१५७४] तेजस् काय जीवों के दो भेद हैं- सूक्ष्म और बादर । पुनः दोनों के पर्याप्त और अपर्याप्त दो-दो भेद हैं । बादर पर्याप्त तेजस् काय जीवों के अनेक प्रकार हैंअंगार, मुर्मुर, अग्नि, अर्चि - ज्वाला, उल्का, विद्युत् इत्यादि । सूक्ष्म तेजस्काय के जीव एक प्रकार के हैं, उनके भेद नहीं हैं ।
[१५७५-१५७९] सूक्ष्म तेजस्काय के जीव सम्पूर्ण लोक में और बादर तेजस्काय के जीव लोक के एक भाग में व्याप्त हैं । इस निरूपण के बाद चार प्रकार से तेजस्काय जीवों के काल विभाग का कथन करूँगा । वे प्रवाही की अपेक्षा से अनादि अनन्त हैं और स्थिति की अपेक्षा से सादिसान्त हैं । तेजस्काय की आयु-स्थिति उत्कृष्ट तीन अहोरात्र की है और जघन्य अन्तर्मुहूर्त की है । तेजस्काय की काय स्थिति उत्कृष्ट असंख्यात काल की है और जघन्य अन्तर्मुहूर्त की है । तेजस् के शरीर को छोड़ कर रिन्तर तेजस् के शरीर में ही पैदा होना, काय स्थिति है । तेजस् के शरीर को छोड़कर पुनः तेजस् के शरीर में उत्पन्न होने में जो अन्तर है, वह जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट अनन्त काल का है ।
[१५८०] वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श और संस्थान की अपेक्षा से तेजस् के हजारो भेद हैं ।
[१५८१-१५८३] वायुकाय जीवों के दो भेद हैं- सूक्ष्म और बादर । पुनः उन दोनों के पर्याप्त और अपर्याप्त दो-दो भेद हैं। बादर पर्याप्त वायुकाय जीवों के पाँच भेद हैंउत्कलिका, मण्डलिका, धनवात, गुंजावात और शुद्धवात । संवर्तक- वात आदि और भी