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नमो नमो निम्मलदंसणस्स
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नन्दीसूत्र
चूलिका-१- हिन्दी अनुवाद
आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद
[9] संसार के तथा जीवोत्पत्तिस्थानों के ज्ञाता, जगद्गुरु, जीवों के लिए नन्दप्रदाता, प्राणियों के नाथ, विश्वबन्धु, लोक में पितामह स्वरूप अरिहन्त भगवान् सदा जयवन्त हैं । [२] समग्र श्रुतज्ञान के मूलस्रोत, वर्त्तमान अवसर्पिणी काल के चौबीस तीर्थंकरों में अन्तिम, लोकों के गुरु महातमा महावीर सदा जयवन्त हैं ।
[३] विश्व में ज्ञान का उद्योत करने वाले, राग-द्वेष रूप शत्रुओं के विजेता, देवोंदानवों द्वारा वन्दनीय, कर्म-रज से विमुक्त भगवान् महावीर का सदैव भद्र हो ।
[४] गुणरूपी भवनों से व्याप्त, श्रुत रत्नों से पूरित, विशुद्ध सम्यक्त्व रूप वीथियों से युक्त, अतिचार रहित चारित्र के परकोटे से सुरक्षित, संघ- नगर ! तुम्हारा कल्याण हो ।
[५] संयम जिसकी नाभि है । तप आरक हैं, तथा सम्यक्त्व जिस की परिधि है; ऐसे संघचक्र को नमस्कार हो, जो अतुलनीय है । उस संघ चक्र की सदा जय हो ।
[६] अठारह सहस्र शीलांग रूप ऊंची पताका से युक्त, तप और संयम रूप अश्व जिसमें जुते हुए हैं, स्वाध्याय का मंगलमय मधुर घोष जिससे निकल रहा है, ऐसे भगवान् संघ - रथ का कल्याण हो ।
[७-८] जो संघ रूपी पद्म, कर्म-रज तथा जल - राशि से ऊपर उठा हु है - जिसका धार श्रुतरत्नमय दीर्घ नाल है, पाँच महाव्रत जिसकी सुदृढ़ कर्णिकाएँ हैं, उत्तरगुण जिसका पराग है, जो भावुक जनरूपी मधुकरों से घिरा हु है, तीर्थंकर रूप सूर्य के केवलज्ञान रूप तेज से विकसित है, श्रमणगण रूप हजार पाँखुड़ी वाले उस संघ - पद्म का सदा कल्याण हो ।
[९] हे तप प्रधान ! संयम रूप मृगचिह्नमय ! अक्रियावाद रूप राहु के मुख से सदैव दुर्द्धर्ष ! निरतिचार स्यत्व चाँदनी से युक्त ! हे संघचन्द्र ! प सदा जय प्राप्त करें ।
[१०] एकान्तवादी, दुर्नयी परवादी रूप ग्रहाभा को निस्तेज करनेवाले, तप तेज से सदैव देदीप्यमान, सम्यग्ज्ञान से उजागर, उपशम-प्रधान संघ रूप सूर्य का कल्याण हो ।
[११] वृद्धिंगत आत्मिक परिणाम रूप बढ़ते हुए जल की वेला से परिव्याप्त है, जिसमें स्वाध्याय और शुभ योग रूप मगरमच्छ हैं, जो कर्मविदारण में महाशक्तिशाली है, निश्चल है तथा समस्त ऐश्वर्य से स्पन्न एवं विस्तृत है, ऐसे संघ समुध्र का भद्र हो ।
[१२-१७] संघमेरु की भूपीठिका सम्यग्दर्शन रूप श्रेष्ठ वज्रमयी है । सम्यक्-दर्शन सुदृढ आधार - शिला है । वह शंकादि दूषण रूप विवरों से रहित है । विशुद्ध अध्यवसायों से चिरंतन है । तत्त्व अभिरुचि से ठोस है, जीव आदि नव तत्त्वों में निमग्न होने के कारण गहरा है । उसमें उत्तर गुण रूप रत्न और मूल गुण स्वर्ण मेखला है । उससे संघ - मेरु अलंकृत है। इन्द्रिय दमन रूप नियम ही उज्ज्वल स्वर्णमय शिलातल हैं । उदात्त चित्त हो उन्नत कूट हैं