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नन्दीसूत्र-४६
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जाहक, गौ, भेरी और आभीरी इनके समान श्रोताजन होते हैं ।
[४७] वह श्रोतासमूह तीन प्रकार की है । विज्ञपरिषद् अविज्ञपरिपद् और दुर्विदग्ध परिषद् । विज्ञ-परिषद् इस प्रकार है
[४८] जैसे उत्तम जाति के राजहंस पानी को छोड़कर दूध का पान करते हैं, वैसे ही गुणसम्पन्न श्रोता दोषों को छोड़कर गुणों को ग्रहण करते हैं । हे शिष्य ! इसे ही ज्ञायिका परिषद् समझना ।
[४९] अज्ञायिका परिषद् इस प्रकार है
[५०] जो श्रोता मृग, शेर और कुक्कुट के अबोध शिशुओं के सदृश स्वभाव से मधुर, भद्रहृदय होते हैं, उन्हें जैसी शिक्षा दी जाए वे उसे ग्रहण कर लेते हैं । वे असंस्कृत होते हैं । रत्नों को चाहे जैसा बनाया जा सकता है । ऐसे ही अनभिज्ञ श्रोताओं में यथेष्ट संस्कार डाले जा सकते हैं । हे शिष्य ! ऐसे अबोध जनों के समूह को अज्ञायिका परिषद् जानो ।
[५१] दुर्विदग्धा परिषद् का लक्षण
[५२] अल्पज्ञ पंडित ज्ञान में अपूर्ण होता है, किन्तु अपमान के भय से किसी विद्वान् से कुछ पूछता नहीं । फिर भी अपनी प्रशंसा सुनकर मिथ्याभिमान से वस्ति की तरह फूला हुआ रहता है । ऐसे लोगो की सभा को, हे शिष्य ! दुर्विदग्धा सभा समझना ।
[५३] ज्ञान पाँच प्रकार का है । जैसे आभिनिबोधिकज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मनःपर्यवज्ञान, केवलज्ञान ।
[५४] ज्ञान पांच प्रकार के ज्ञान के संक्षिप्त में दो प्रकार है, प्रत्यक्ष और परोक्ष । [५५] -प्रत्यक्षज्ञान के दो भेद हैं, यथा-इन्द्रिय-प्रत्यक्ष और नोइन्द्रिय-प्रत्यक्ष ।
[५६] --इन्द्रियप्रत्यक्ष पाँच प्रकार का है । यथा-श्रोत्रेन्द्रिय प्रत्यक्ष, चक्षुरिन्द्रिय प्रत्यक्ष है. घ्राणेन्द्रिय प्रत्यक्ष, जिह्वेन्द्रिय प्रत्यक्ष और स्पर्शनेन्द्रिय प्रत्यक्ष ।
[५७] नोइन्द्रियप्रत्यक्षज्ञान तीन प्रकार का है । अवधिज्ञान प्रत्यक्ष, मनःपर्यवज्ञानप्रत्यक्ष, केवलज्ञानप्रत्यक्ष ।
[५८] अवधिज्ञान प्रत्यक्ष के दो भेद हैं-भवप्रत्ययिक, क्षायोपशमिक । [५९] भवप्रत्ययिक अवधिज्ञान किन्हें होता है ? वह देवों एवं नारकों को होता है ।
[६०] क्षायोपशमिक अवधिज्ञान मनुष्यों को तथा पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चों को होता है । भगवन् ! क्षायोपशमिक अवधिज्ञान की उत्पत्ति का हेतु क्या है ? -जो कर्म अवधिज्ञान में रुकावट उत्पन्न करने वाले हैं, उनमें से उदयगत का क्षय होने से तथा अनुदित कर्मों का उपशम होने से जो उत्पन्न होता है ।
[६१] गुण-सम्पन्न मुनि को जो क्षायोपशमिक अवधिज्ञान समुत्पन्न होता है, वह संक्षेप में छह प्रकार का है । यथा-आनुगामिक, अनानुगामिक, वर्द्धमान, हीयमान, प्रतिपातिक और अप्रतिपातिक
[६२] भगवन् ! वह आनुगामिक अवधिज्ञान कितने प्रकार का है ? दो प्रकार का है | अन्तगत, मध्यगत । अन्तगत अवधिज्ञान तीन प्रकार का है-पुरतःअन्तगत, मार्गतः अन्तगत, पार्श्वतःअन्तगत
आगे से अन्तगत अवधिज्ञान कैसा है । जैसे कोई व्यक्ति दीपिका, घासफूस की