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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
[३१] ज्ञान, दर्शन, तप और विनयादि गुणों में सर्वदा उद्यत तथा राग-द्वेष विहीन प्रसन्नमना, अनेक गुणों से सम्पन्न आर्य नन्दिल क्षपण को सिर नमाकर वन्दन करता हूँ ।
[३२] व्याकरण निपुण, कर्मप्रकृति की प्ररूपणा करने में प्रधान, ऐसे आर्य नन्दिलक्षपण के पट्टधर शिष्य आर्य नागहस्ती का वाचक वंश मूर्तिमान् यशोवंश की तरह अभिवृद्धि को प्राप्त हो ।
[३३] उत्तम जाति के अंजन धातु के सदृश प्रभावोत्पादक, परिपक्व द्राक्षा और नील कमल के समान कांतियुक्त आर्य रेवतिनक्षत्र का वाचक वंश वृद्धि प्राप्त करे ।
[३४] जो अचलपुर में दीक्षित हुए और कालिक श्रुत की व्याख्या में से दक्ष तथा धीर थे, उत्तम वाचक पद को प्राप्त ऐसे ब्रह्मद्वीपिक शाखा के आर्य सिंह को वन्दन करता हूँ ।
[३५] जिनका यह अनुयोग आज भी दक्षिणार्द्ध भरतक्षेत्र में प्रचलित है, तथा अनेकानेक नगरों में जिनका सुयश फैला हुआ है, उन स्कन्दिलाचार्य को मैं वन्दन करता हूँ ।
[३६] हिमवंत के सदृश विस्तृत क्षेत्र में विचरण करनेवाले महान विक्रमशाली, अनन्त धैर्यवान् और पराक्रमी, अनन्त स्वाध्याय के धारक आर्य हिमवान् को मस्तक नमाकर वन्दन करता हूँ।
[३७] कालिक सूत्र सम्बन्धी अनुयोग और उत्पाद आदि पूर्वो के धारक, ऐसे हिमवन्त क्षमाश्रमण को और नागार्जुनाचार्य को वन्दन करता हूँ ।
[३८] मृदु, मार्दव, आर्जव आदि भावों से सम्पन्न, क्रम से वाचक पद को प्राप्त तथा ओघश्रुत का समाचरण करने वाले नागार्जुन वाचक को वन्दन करता हूँ ।
[३९-४१] तपे हुए स्वर्ण, चम्पक पुष्प या खिले हुए उत्तम जातीय कमल के गर्भ तुल्य गौर वर्ण युक्त, भव्यों के हृदय-वल्लभ, जन-मानस में करुणा भाव उत्पन्न करने में निपुण, धैर्यगुण सम्पन्न, दक्षिणार्द्ध भरत में युग प्रधान, बहुविध स्वाध्याय के परिज्ञाता, संयमी पुरुषों को यथा योग्य स्वाध्याय में नियुक्तिकर्ता तथा नागेन्द्र कुल की परम्परा की अभिवृद्धि करने वाले, सभी प्राणियों को उपदेश देने में निपुण और भव-भीति के विनाशक नागार्जुन ऋषि के शिष्य भूतदिन को मैं वन्दन करता हूँ ।।
[२] नित्यानित्य रूप से द्रव्यों को समीचीन रूप से जानने वाले, सम्यक् प्रकार से समझे हुए सूत्र ओर अर्थ के धारक तथा सर्वज्ञ-प्ररूपित सद्भावों का यथाविधि प्रतिपादन करने वाले लोहित्याचार्य को नमस्कार करता हूँ।
[४३] शास्त्रों के अर्थ और महार्थ की खान के सदृश सुसाधुओं को आगमों की वाचना देते समय संतो, व समाधि का अनुभव करने वाले, प्रकृति से मधुर, श्री दूष्यगणी को सम्मानपूर्वक वन्दन करता हूँ ।
[४४] प्रशस्त लक्षणों से सम्पन्न, सुकुमार, सुन्दर तलवे वाले और सैकड़ों प्रातच्छिकों द्वारा नमस्कृत, प्रवचनकार श्री दूष्यगणि के पूज्य चरणों को प्रणाम करता हूँ ।
[४५] इस अनुयोगधर स्थविरों और आचार्यों से अतिरिक्त अन्य जो भी कालिक सूत्रों के ज्ञाता और अनुयोगधर धीर आचार्य भगवन्त हुए हैं, उन सभी को प्रणाम करके (मैं देव वाचक) ज्ञान की प्ररूपणा करूँगा ।
[४६] शेलघन-कुटक, चालनी, परिपूर्णक, हंस, महिष, मेष, मशक, जौंक, बिल्ली,