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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
नौनी मिट्टी, लोहा, ताम्बा, त्रपुक, शीशा, चाँदी, सोना, वज्र, हरिताल, हिंगुल, मैनसिल, सस्यक, अंजन, प्रवाल, अभ्र-पटल, अभ्रबालुक-अभ्रक की पड़तों से मिश्रित बालू । और विविध मणि भी बादर पृथ्वी काय के अन्तर्गत हैं-गोमेदक, रुचक, अंक, स्फटिक, लोहिताक्ष, मरकत, मसारगल्ल, भुजमोचक, इन्द्रनील, चन्दन, गेरुक एवं हंसगर्भ, पुलक, सौगन्धिक, चन्द्रप्रभ, वैडूर्य, जलकान्त और सूर्यकान्त ।
[१५४१] ये कठोर पृथ्वीकाय के छत्तीस भेद हैं । सूक्ष्म पृथ्वीकाय के जीव एक ही प्रकार के हैं, अतः वे अनानात्व हैं ।
[१५४२] सूक्ष्म पृथ्वीकाय के जीव सम्पूर्ण लोक में और बादर पृथ्वीकाय के जीवलोक के एक देश में व्याप्त हैं । अब चार प्रकार से पृथ्वीकायिक जीवों के काल-विभाग का कथन करूँगा ।
[१५४३-१५४६] पृथ्वीकायिक जीव प्रवाह की अपेक्षा से अनादि अनन्त हैं और स्थिति की अपेक्षा से सादि सान्त हैं । उनकी २२०० वर्ष की उत्कृष्ट और अन्तर्मुहूर्त की जघन्य स्थिति है । उनकी असंख्यात कालकी उत्कृष्ट और अन्तर्मुहर्त की जघन्य काय-स्थिति है । पृथ्वी के शरीर को न छोड़कर निरन्तर पृथ्वीकाय में ही पैदा होते रहना, काय-स्थिति है। पृथ्वी के शरीर को एकबार छोडकर फिर वापस पृथ्वी के शरीरमें उत्पन्न होने के बीचका अन्तरकाल जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट अनन्त काल है ।
[१५४७] वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श और संस्थान के आदेश से तो पृथ्वी के हजारों भेद
होते हैं ।
[१५४८-१५५०] अप् काय जीव के दो भेद हैं-सूक्ष्म और बादर । पुनः दोनों के पर्याप्त और अपर्याप्त दो-दो भेद हैं । बादर पर्याप्त अप्काय जीवों के पाँच भेद हैं-शुद्धोदक,
ओस, हरतनु, महिका और हिम । सूक्ष्म अप्काय के जीव एक प्रकार के हैं, उनके भेद नहीं हैं । सूक्ष्म अप्काय के जीव सम्पूर्ण लोक में और बादर अप्कायके जीव लोक के एक भाग में व्याप्त हैं ।
[१५५१-१५५४] अप्कायिक जीव प्रवाह की अपेक्षा से अनादि-अनन्त हैं और स्थिति की अपेक्षा से सादि-सान्त हैं । उनकी ७००० वर्ष की उत्कृष्ट और अन्तर्मुहुर्त की जघन्य आयुस्थिति है । उनकी असंख्यात काल की उत्कृष्ट और अन्तर्मुहूर्त की जघन्य कायस्थिति है । अप्काय को छोड़कर निरन्तर अप्काय में ही पैदा होना, काय स्थिति है । अप्काय को छोड़कर पुनः अप्काय में उत्पन्न होने का अन्तर जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट अनन्त-काल का है ।
[१५५५] वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श और संस्थान की अपेक्षा से अप्काय के हजारों भेद हैं |
[१५५६-१५५७] वनस्पति काय के जीवों के दो भेद हैं-सूक्ष्म और बादर । पुनः दोनों के पर्याप्त और अपर्याप्त दो-दो भेद हैं । बादर पर्याप्त वनस्पतिकाय के जीवों के दो भेद हैं साधारण-शरीर और प्रत्येक-शरीर ।
[१५५८-१५५९] प्रत्येक-शरीर वनस्पति काय के जीवों के अनेक प्रकार हैं । जैसेवृक्ष, गुच्छ, गुल्म, लता, वल्ली और तृण | लता-वलय, पर्वज, कुहण, जलरुह, औषधि,