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उत्तराध्ययन-२९/१११७
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विनयमूलक सभी प्रशस्त कार्यों को साधता है । बहुत से अन्य जीवों को भी विनयी वनाने वाला होता है ।
[१११८] भन्ते ! आलोचना से जीव को क्या प्राप्त होता है ? आलोचना से मोक्षमार्ग में विघ्न डालने वाले और अनन्त संसार को बढ़ाने वाले माया, निदान और मिथ्यादर्शन रूप शल्यों को निकाल फेंकता है । ऋजु-भाव को प्राप्त होता है । जीव माया-रहित होता है । अतः वह स्त्री-वेद, नपुंसक-वेद का बन्ध नहीं करता है और पूर्वबद्ध की निर्जरा करता है।
[१११९] भन्ते ! निन्दा से जीव को क्या प्राप्त होता है ? निन्दा से पश्चात्ताप प्राप्त होता है । पश्चात्ताप से होने वाली विरक्ति से करण-गुण-श्रेणि प्राप्त होती है । अनगार मोहनीय कर्म को नष्ट करता है ।।
[११२०] भन्ते ! गर्दा से जीव को क्या प्राप्त होता है ? गर्दा से जीव को अपुरस्कार प्राप्त होता है । अपुरस्कृत होने से वह अप्रशस्त कार्यों से निवृत्त होता है । प्रशस्त कार्यों से युक्त होता है । ऐसा अनगार ज्ञान-दर्शनादि अनन्त गुणों का घात करनेवाले ज्ञानावरणादि कर्मों की पर्यायों का क्षय करता है ।
[११२१] भन्ते ! सामायिक से जीव को क्या प्राप्त होता है ? सामायिक से जीव सावध योगों से-विरति को प्राप्त होता है ।
[११२२] भन्ते ! चतुर्विंशतिस्तव से जीव को क्या प्राप्त होता है ? चतुर्विशति स्तव से जीव दर्शन-विशोधि को प्राप्त होता है ।
[११२३] भन्ते ! वन्दना से जीव को क्या प्राप्त होता है ? वन्दना से जीव नीचगोत्र कर्म का क्षय करता है । उच्च गोत्र का बन्ध करता है । वह अप्रतिहत सौभाग्य को प्राप्त कर सर्वजनप्रिय होता है । उसकी आज्ञा सर्वत्र मानी जाती है । वह जनता से दाक्षिण्य को प्राप्त होता है ।
[११२४] भन्दे ! प्रतिक्रमण से जीव को क्या प्राप्त होता है ? प्रतिक्रमण से जीव स्वीकृत व्रतों के छिद्रों को बंद करता है । आश्रवों का निरोध करता है, शुद्ध चारित्र का पालन करता है, समिति-गुप्ति रूप आठ प्रवचनमाताओं के आराधन में सतत उपयुक्त रहता है, संयम-योग में अपृथक्त्व होता है और सन्मार्ग में सम्यक् समाधिस्थ होकर विचरण करता है ।
[११२५] भन्ते ! कायोत्सर्ग से जीव को क्या प्राप्त होता है ? कायोत्सर्ग से जीव अतीत और वर्तमान के प्रायश्चित्तयोग्य अतिचारों का विशोधन करता है । अपने भार को हटा देनेवाले भार-वाहक की तरह निर्वृतहृदय हो जाता है और प्रशस्त ध्यान में लीन होकर सुखपूर्वक विचरण करता है ।
[११२६] भन्ते ! प्रत्याख्यान से जीव को क्या प्राप्त होता है ? प्रत्याख्यानसे जीव आश्रवद्वारों का निरोध करता है ।
[११२७] भन्ते ! स्तवस्तुतिमंगल से जीव को क्या प्राप्त होता है ? स्तव-स्तुति मंगल से जीव को ज्ञान-दर्शन चारित्र-स्वरूप बोधि का लाभ होता है । ज्ञान-दर्शन चारित्र स्वरूप वोधि से संपन्न जीव अन्तक्रिया के अथवा वैमानिक देवों में उत्पन्न होने के योग्य आराधना करता है ।