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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
से संसार के हेतु मिथ्यात्व का छेदन करता है, उसके बाद सम्यक्त्व का प्रकाश बुझता नहीं है । श्रेष्ठ ज्ञान-दर्शन से आत्मा को संयोजित कर उन्हें सम्यक् प्रकार से आत्मसात् करता हुआ विचरण करता है ।
[११७५] भन्ते ! चारित्र-सम्पन्नता से जीव को क्या प्राप्त होता है ? चारित्र-सम्पन्नता से जीव शैलेशीभाव को प्राप्त होता है । शैलेशी भाव को प्राप्त अनगार चार केवलि-सत्क कर्मों का क्षय करता है । तत्पश्चात् वह सिद्ध होता है, बुद्ध होता है, मुक्त होता है, परिनिर्वाण को प्राप्त होता है और सब दुःखों का अन्त करता है ।
[११७६] भन्ते ! श्रोत्रेन्द्रिय के निग्रह से जीव को क्या प्राप्त होता है ? श्रोत्रेन्द्रिय के निग्रह से जीव मनोज्ञ और अमनोज्ञ शब्दों में होने वाले राग और द्वेष का निग्रह करता है । फिर शब्दनिमित्तक कर्म का बन्ध नहीं करता है, पूर्व-बद्ध कर्मों की निर्जरा करता है ।
[११७७] भन्ते ! चक्षुष्-इन्द्रिय के निग्रह से जीव को क्या प्राप्त होता है ? चक्षुष्इन्द्रिय के निग्रह से जीव मनोज्ञ और अमनोज्ञ रूपों में होने वाले राग और द्वेष का निग्रह करता है । फिर रूपनिमित्तक कर्म का बंध नहीं करता है, पूर्वबद्ध कर्मों की निर्जरा करता है।
[११७८] भन्ते ! घ्राण-इन्द्रिय के निग्रह से जीव को क्या प्राप्त होता है ? घ्राणइन्द्रिय के निग्रह से जीव मनोज्ञ और अमनोज्ञ गन्धों में होने वाले राग और द्वेष का निग्रह करता है । फिर गन्धनिमित्तक कर्म का बंध नहीं करता है । पूर्वबद्ध कर्मों की निर्जरा करता है ।
[११७९] भन्ते ! जिह्वा-इन्द्रिय के निग्रह से जीव को क्या प्राप्त होता है ? जिह्वाइन्द्रिय के निग्रह से जीव मनोज्ञ और अमनोज्ञ रसो में होने वाले राग और द्वेष का निग्रह करता है । फिर रसनिमित्तक कर्म का बन्ध नहीं करता है । पूर्वबद्ध कर्मों की निर्जरा करता है ।
[११८०] भन्ते ! स्पर्शन-इन्द्रिय के निग्रह से जीव को क्या प्राप्त होता है ? स्पर्शनइन्द्रिय के निग्रह से जीव मनोज्ञ और अमनोज्ञ स्पर्शों में होने वाले राग-द्वेष का निग्रह करता है । फिर स्पर्श-निमित्तक कर्म का बन्ध नहीं करता है, पूर्वबद्ध कर्मों की निर्जरा करता है ।
[११८१] भन्ते ! क्रोध-विजय से जीव को क्या प्राप्त होता है ? क्रोध-विजय से जीव शान्ति को प्राप्त होता है । क्रोध-वेदनीय कर्म का बन्ध नहीं करता है । पूर्व-बद्ध कर्मों की निर्जरा करता है ।
[११८२] भन्ते ! मान-विजय से जीव को क्या प्राप्त होता है ? मान-विजय से जीव मृदुता को प्राप्त होता है । मान-वेदनीय कर्म का बन्ध नहीं करता है । पूर्वबद्ध कर्मों की निर्जरा करता है ।
[११८३] भन्ते ! माया-विजय से जीव को क्या प्राप्त होता है ? मायाविजय से ऋजुता को प्राप्त होता है । माया-वेदनीय कर्म का बंध नहीं करता है । पूर्वबद्ध कर्मों की निर्जरा करता है ।
[११८४] भन्ते ! लोभ-विजय से जीव को क्या प्राप्त होता है ? लोभ-विजय से जीव सन्तोष-भाव को प्राप्त होता है । लोभ-वेदनीय कर्म का बन्ध नहीं करता है । पूर्वबद्ध कर्मों की निर्जरा करता है ।
[११८५] भन्ते ! राग, द्वेष और मिथ्यादर्शन के विजय से जीव को क्या प्राप्त होता