________________
उत्तराध्ययन- ३४/१४१४
शुक्ल लेश्या में परिणत होता है ।
[१४१५] असंख्य अवसर्पिणी और उत्सर्पिणी काल के जितने समय होते हैं, असंख्य योजन प्रमाण लोक के जितने आकाशप्रदेश होते है, उतने ही लेश्याओं के स्थान होते हैं । [१४१६-१४२१] कृष्ण-लेश्या की जघन्य स्थिति मुहूर्त्तार्ध है और उत्कृष्ट स्थिति एक मुहूर्त - अधिक तेतीस सागर है । नील लेश्या की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट पल्योपम के असंख्यातवें भाग अधिक दस सागर है । कापोत लेश्या की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट पल्यो पम के असंख्यातवें भाग अधिक तीन सागर है । तेजोलेश्या की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट पल्योपम के असंख्यातवें भाग अधिक दो सागर है । पद्मलेश्या की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट एक मुहूर्त्त अधिक दस सागर है । शुक्ललेश्या की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट मुहूर्त - अधिक तेतीस सागर है ।
[१४२२] गति की अपेक्षा के बिना यह लेश्याओं की ओघ - सामान्य स्थिति है । अब चार गतियों की अपेक्षा से लेश्याओं की स्थिति का वर्णन करूँगा ।
१३५
[१४२३-१४२५] कापोत लेश्या की जघन्य स्थिति दस हजार वर्ष है और उत्कृष्ट स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग अधिक तीन सागर है । नील लेश्या की जघन्य स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग अधिक तीन सागर है और उत्कृष्ट स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग अधिक दस सागर है । कृष्ण-लेश्या की जघन्य स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग अधिक दस सागर है और उत्कृष्ट स्थिति तेतीस सागर है ।
[१४२६] नैरयिक जीवों की लेश्याओं की स्थिति का यह वर्णन किया है । इसके बाद तिर्यंच, मनुष्य और देवों की लेश्या स्थिति का वर्णन करूँगा ।
[१४२७-१४२८] केवल शुक्ल लेश्या को छोड़कर मनुष्य और तिर्यंचों की जितनी भी लेश्याएँ हैं, उन सब की जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति अन्तर्मुहूर्त है । शुक्ल लेश्या की जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त्त है और उत्कृष्ट स्थिति नौ वर्ष न्यून एक करोड़ पूर्व है
[१४२९] मनुष्य और तिर्यंचों की लेश्याओं की स्थिति का यह वर्णन है । इससे आगे देवों की लेश्याओं की स्थिति का वर्णन करूँगा ।
[१४३०-१४३२] कृष्ण लेश्या की जघन्य स्थिति दस हजार वर्ष है और उत्कृष्ट स्थिति पल्योपम का असंख्यातवाँ भाग है । कृष्णलेश्या की जो उत्कृष्ट स्थिति है, उससे एक समय अधिक नील लेश्या की जघन्य स्थिति, और उत्कृष्ट पल्योपम का असंख्यातवाँ भाग अधिक है । नील लेश्या की जो उत्कृष्ट स्थिति है, उससे एक समय अधिक कापोत लेश्या की जघन्य स्थिति है, और पल्योपम का असंख्यातवाँ भाग अधिक उत्कृष्ट है ।
[१४३३] इससे आगे भवनपति, व्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देवों की तेजोलेश्या की स्थिति का निरूपण करूँगा ।
[१४३४-१४३५] तेजोलेश्या को जघन्य स्थिति एक पल्योपम है और उत्कृष्ट स्थिति पल्योपम का असंख्यातवाँ भाग अधिक दो सागर है । तेजो लेश्या की जघन्य स्थिति दस हजार वर्ष की है और उत्कृष्ट स्थिति पल्योपम का असंख्यातवाँ भाग अधिक दो सागर है । [१४३६-१४३७] तेजोलेश्या की जो उत्कृष्ट स्थिति है, उससे एक समय अधिक पद्म लेश्या की जघन्य स्थिति है और उत्कृष्ट स्थिति एक मुहूर्त्त अधिक दस सागर है । जो पद्म