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आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद
लेश्या का रस है । पके हुए आम और पके हुए कपित्थ का रस जितना खट-मीठा होता है, उससे अनन्त गुण अधिक खट-मीठा तेजोलेश्या का रस है । उत्तम सुरा, फूलों से बने विविध आसव, मधु तथा मैरेयक का रस जितना अम्ल होता है, उससे अनन्त गुण अधिक पद्मश्या का रस है । खजूर, मृद्वीका, क्षीर, खाँड और शक्कर का रस जितना मीठा होता है उससे अनन्त गुण अधिक मीठा शुक्ललेश्या का रस है ।
[१३९८-१३९९] गाय, कुत्ते और सर्प के मृतक शरीर की जैसे दुर्गन्ध होती है, उससे अनन्त गुण अधिक दुर्गन्ध तीनों अप्रशस्त लेश्याओं की होती है । सुगन्धित पुष्प और पीसे जा रहे सुगन्धित पदार्थों की जैसी गन्ध है, उससे अनन्त गुण अधिक सुगन्ध तीनों प्रशस्त लेश्याओं की है ।
[१४००-१४०१] क्रकच, गाय की जीभ और शाक वृक्ष के पत्रों का स्पर्श जैसे कर्कश होता है, उससे अनन्त गुण अधिक कर्कश स्पर्श तीनों अप्रशस्त लेश्याओं का है । बूर, नवनीत, सिरीष के पुष्पों का स्पर्श जैसे कोमल होता है, उससे अनन्त गुण अधिक कोमल स्पर्श तीनों प्रशस्त लेश्याओं का है ।
[१४०२] लेश्याओं के तीन, नौ, सत्ताईस, इक्कासी अथवा दो सौ तेंतालीस परिणाम होते हैं ।
[१४०३ - १४०४] जो मनुष्य पाँच आश्रवों में प्रवृत्त है, तीन गुप्तियों में अगुप्त है, पटुकाय में अविरत है, तीव्र आरम्भ में संलग्न है, क्षुद्र है, अविवेकी है - निःशंक परिणामवाला है, नृशंस है, अजितेन्द्रिय है - इन सभी योगों से युक्त, वह कृष्णलेश्या में परिणत होता है। [१४०५ - १४०६] जो ईर्ष्यालु है, अमर्ष है, अतपस्वी है, अज्ञानी है, मायावी है, लज्जारहित है, विषयासक्त है, द्वेषी है, धूर्त है, प्रमादी है, रस-लोलुप है, सुख का गवेषक हैजो आरम्भ से अविरत है, क्षुद्र है, दुःसाहसी है - इन योगों से युक्त मनुष्य नीललेश्या में पविवत होता है ।
[१४०७ - १४०८] जो मनुष्य वक्र है, आचार से टेढ़ा है, कपट करता है, सरलता से रहित है, प्रति कुञ्चक है- अपने दोषों को छुपाता है, औपधिक है - सर्वत्र छद्म का प्रयोग करता है । मिथ्यादृष्टि है, अनार्य है - उत्प्रासक है - दुष्ट वचन बोलता है, चोर है, मत्सरी है, इन सभी योगों से युक्त वह कापोत लेश्या में परिणत होता है ।
[१४०९-१४१०] जो नम्र है, अचपल है, माया से रहित है, अकुतूहल है, विनय करने में निपुण है, दान्त है, योगवान् है, उपधान करनेवाला है । प्रियधर्मी है, दृढधर्मी है, पपा - भीरु है, हितैपी है - इन सभी योगों से युक्त वह तेजो लेश्या में परिणत होता है । [१४११-१४१२] क्रोध, मान, माया और लोभ जिसके अत्यन्त अल्प हैं, जो प्रशान्तचित्त है, अपनी आत्मा का दमन करता है, योगवान् है, उपधान करनेवाला है - जो मितभाषी है, उपशान्त है, जितेन्द्रिय है- इन सभी योगों से युक्त वह पद्म लेश्या में परिणत होता है ।
[१४१३-१४१४] आर्त्त और रौद्र ध्यानों को छोड़कर जो धर्म और शुक्लध्यान में लीन है, जो प्रशान्त-चित्त और दान्त है, पाँच समितियों से समित और तीन गुप्तियों से गुप्त है - सराग हो या वीतराग, किन्तु जो उपशान्त है, जितेन्द्रिय है-इन सभी योगों से युक्त वह