Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 12
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

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Page 125
________________ १२४ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद [१२३३] जो भिक्षु छह लेश्याओं, पृथ्वी कायं आदि छह कायों और आहार के छह कारणों में सदा उपयोग रखता है, वह संसार में नहीं रुकता है । [१२३४] पिण्डावग्रहों में, आहार ग्रहण की सात प्रतिमाओं में और सात भय-स्थानों में जो भिक्षु सदा उपयोग रखता है, वह संसार में नहीं रुकता है । [१२३५] मद-स्थानों में, ब्रह्मचर्य की गुप्तियों में और दस प्रकार के भिक्षु-धर्मों में जो भिक्षु सदा उपयोग रखता है, वह संसार में नहीं रुकता है । [१२३६] उपासकों की प्रतिमाओं में, भिक्षुओं की प्रतिमाओं में जो भिक्षु सदा उपयोग रखता है, वह संसार में नहीं रुकता है । [१२३७] क्रियाओं में, जीव-समुदायों में और परमाधार्मिक देवों में जो भिक्षु सदा उपयोग रखता है, वह संसार में नहीं रुकता है । [१२३८] गाथा-पोडशक में और असंयम में जो भिक्षु सदा उपयोग रखता है, वह संसार में नहीं रुकता है। [१२३९] ब्रह्मचर्य में, ज्ञातअध्ययनों में, असमाधि-स्थानों में जो भिक्षु सदा उपयोग रखता है, वह संसार में नहीं रुकता है । [१२४०] इक्कीस शबल दोषों में और बाईस परीषहों में जो भिक्षु सदा उपयोग रखता है, वह संसार में नहीं रुकता है । [१२४१] सूत्रकृतांग के तेईस अध्ययनों में, रूपाधिक अर्थात् चौबीस देवों में जो भिक्षु सदा उपयोग रखता वह संसार में नहीं रुकता है । [१२४२] पच्चीस भावनाओं में, दशा आदि (दशाश्रुत स्कन्ध, व्यवहार और बृहत्कल्प) के उद्देश्यों में जो भिक्षु सदा उपयोग रखता है, वह संसार में नहीं रुकता है । [१२४३] अनगार-गुणों में और तथैव प्रकल्प (आचारांग) के २८ अध्ययनों में जो भिक्षु सदा उपयोग रखता है, वह संसार में नहीं रुकता है । [१२४४] पाप-श्रुत-प्रसंगों में और मोह-स्थानों में जो भिक्षु सदा उपयोग रखता है, वह संसार में नहीं रुकता है । [१२४५] सिद्धों के ३१ अतिशायी गुणों में, योग-संग्रहों में, तैंतीस आशातनाओं में जो भिक्षु सदा उपयोग रखता है, वह संसार में नहीं रुकता है । [१२४६] इस प्रकार जो पण्डित भिक्षु इन स्थानों में सतत उपयोग रखता है, वह शीघ्र ही सर्व संसार से मुक्त हो जाता है । -ऐसा मैं कहता हूँ । ( अध्ययन-३२-प्रमादस्थान) [१२४७] अनन्त अनादि काल से सभी दुःखों और उनके मूल कारणों से मुक्ति का उपाय मैं कह रहा हूँ । उसे पूरे मन से सुनो । वह एकान्त हितरूप है, कल्याण के लिए है । [१२४८] सम्पूर्ण ज्ञान के प्रकाशन से, अज्ञान और मोह की परिहार से, राग-द्वेष के पूर्ण क्षय से-जीव एकान्त सुख-रूप मोक्ष को प्राप्त करता है । [१२४९] गुरुजनों की और वृद्धों की सेवा करना, अज्ञानी लोगों के सम्पर्क से दूर रहना, स्वाध्याय करना, एकान्त में निवास करना, सूत्र और अर्थ का चिन्तन करना, धैर्य

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