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उत्तराध्ययन- १० / ३१०
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है । बहुत से लोग मिथ्यात्व का सेवन करते हैं । धर्म श्रद्धा होने पर भी तदनुरूप आचरण होना दुर्लभ है । बहुत से धर्मश्रद्धालु भी काम भोगों में आसक्त हैं । अतः गौतम ! क्षण भर का भी प्रमाद मत कर ।
[३११-३१६] तुम्हारा शरीर जीर्ण हो रहा है, बाल सफेद हो रहे हैं । श्रवणशक्ति कमजोर हो रही है । शरीर जीर्ण हो रहा है, आँखों की शक्ति क्षीण हो रही है । घ्राण शक्ति हीन हो रही है । रसग्राहक जिह्वा की शक्ति नष्ट हो रही है । स्पर्शशक्ति क्षीण हो रही है । सारी शक्ति ही क्षीण हो रही है । इस स्थिति में गौतम ! समय मात्र का भी प्रमाद मत कर । [३१७] वात विकार आदि से जन्य चित्तोद्वेग, फोड़ा-फुन्सी, विसूचिका तथा अन्य भी शीघ्र - घाती विविध रोग से शरीर गिर जाता है, विध्वस्त हो जाता है । अतः गौतम ! क्षण भर का भी प्रमाद मत कर ।
[३१८] जैसे शरद् कालीन कुमुद पानी से लिप्त नहीं होता, उसी प्रकार तू भी अपना सभी प्रकार का स्नेह का त्याग कर, गौतम ! इसमें तू समय मात्र भी प्रमाद मत कर ।
[३१९] धन और पत्नी का परित्याग कर तू अनगार वृत्ति में दीक्षित हुआ है । अतः एक बार वमन किए गए भोगों को पुनः मत पी, गौतम ! समय मात्र का भी प्रमाद मत कर। [३२०] मित्र, बान्धव और विपुल धनराशि को छोड़कर पुनः उनकी गवेषणा मत कर। हे गौतम ! समय मात्र का भी प्रमाद मत कर ।
[३२१] भविष्य में लोग कहेंगे- 'आज जिन नहीं दीख रहे हैं और जो मार्गदर्शक हैं। भी, एक मत के नहीं है ।' किन्तु आज तुझे न्यायपूर्ण मार्ग उपलब्ध है । अतः गौतम ! समय मात्र का भी प्रमाद मत कर ।
[३२२] कंटकाकीर्ण पथ छोड़कर तू साफ राज मार्ग पर आ गया है । अतः दृढ़ श्रद्धा के साथ इस मार्ग पर चल । गौतम ! समय मात्र का प्रमाद मत कर ।
[३२३] कमजोर भारवाहक विषम मार्ग पर जाता है, तो पश्चात्ताप करता है, गौतम ! तुम उसकी तरह विषम मार्ग पर मत जाओ । अन्यता बाद में पछताना होगा । गौतम ! समय मात्र का भी प्रमाद मत कर ।
[३२४] हे गौतम ! तू महासागर को तो पार कर गया है, अब तीर के निकट पहुँच कर क्यों खड़ा है ? उसको पार करने में जल्दी कर । गौतम ! क्षण भर का भी प्रमाद मत कर ।
[३२५] तू देहमुक्त सिद्धत्व को प्राप्त कराने वाली क्षपक श्रेणी पर आरूढ़ हो कर क्षेम, शिव और अनुत्तर सिद्धि लोक को प्राप्त करेगा । अतः गौतम ! क्षण भर का भी प्रमाद
मत कर ।
[३२६] बुद्ध-तत्त्वज्ञ और उपशान्त होकर पूर्ण संयतभाव से तू गांव एवं नगर में विचरण कर । शान्ति मार्ग को बढ़ा । गौतम ! इसमें समय मात्र का भी प्रमाद मत कर । [३२७] अर्थ और पद से सुशोभित एवं सुकथित भगवान की वाणी को सुनकर, राग द्वेष का छेदन कर गौतम सिद्धि गति को प्राप्त हुए । ऐसा मैं कहता हूँ ।
अध्ययन - १० - का मुनि दीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण