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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
ले । असंयम के प्रति जुगुप्सा रखनेवाला मुनि अपने पात्र में दिया हुआ ही भोजन करे ।
[१६९] इस संसार में कुछ लोग मानते हैं कि-'पापों का परित्याग किए बिना ही केवल तत्त्वज्ञान को जानने-भर से ही जीव सब दुःखों से मुक्त हो जाता है ।'
[१७०] जो बन्ध और मोक्ष के सिद्धान्तों की स्थापना तो करते है, कहते बहुत हैं, किन्तु करते कुछ नहीं हैं, वे ज्ञानवादी केवल वागवीर्य से अपने को आश्वस्त करते रहते हैं।
[१७१] विविध भाषाएँ रक्षा नहीं करती हैं, विद्याओं का अनुशासन भी कहां सुरक्षा देता है ? जो इन्हें संरक्षक मानते हैं, वे अपने आपको पण्डित माननेवाले अज्ञानी जीव पाप कर्मों में मग्न हैं, डूबे हुए हैं ।
[१७२] जो मन, वचन और काया से शरीर में, शरीर के वर्ण और रूप में सर्वथा आसक्त हैं, वे सभी अपने लिए दुःख उत्पन्न करते हैं ।
[१७३] उन्होंने इस अनन्त संसार में लम्बे मार्ग को स्वीकार किया है । इसलिए सब ओर देख-भालकर साधक अप्रमत्त भाव से विचरण करे ।
[१७४] मुक्ति का लक्ष्य रखनेवाला साधक कभी भी बाह्य विषयों की आकांक्षा न करे । पूर्व कर्मों के क्षय के लिए ही इस शरीर को धारण करे ।।
[१७५] प्राप्त अवसर का ज्ञाता साधक कर्म के हेतुओं को दूर करके विचरे । गृहस्थ के द्वारा अपने लिए तैयार किया गया आहार और पानी आवश्यकतापूर्तिमात्र ग्रहण कर सेवन करे ।
[१७६] साधु लेशमात्र भी संग्रह न करे, पक्षी की तरह संग्रह से निरपेक्ष रहता हुआ पात्र लेकर भिक्षा के लिए विचरण करे ।
[१७७] एषणा समिति से युक्त लज्जावान् संयमी मुनि गांवों में अनियत विहार करे, अप्रमत्त रहकर गृहस्थों से पिण्डपातभिक्षा की गवेषणा करे ।
[१७८] अनुत्तर ज्ञानी, अनुत्तरदर्शी, अनुत्तर ज्ञान-दर्शन के धर्ता, अर्हन्, ज्ञातपुत्र वैशालिक महावीर ने ऐसा कहा है । -ऐसा मैं कहता हूँ ।
( अध्ययन-७-उरभ्रीय [१७९-१८२] जैसे कोई व्यक्ति संभावित अतिथि के उद्देश्य से मेमने का पोषण करता है । उसे चावल, जौ या हरी घास आदि देता है । और उसका यह पोषण अपने आंगन में ही करता है । इस प्रकार वह मेमना अच्छा खाते-पीते पुष्ट, बलवान, मोटा, बड़े पेटवाला हो जाता है । अब वह तृप्त एवं मांसल देहवाला मेमना बस अतिथि की प्रतीक्षा करता है । जब तक अतिथि नहीं आता है, तब तक वह बेचारा जीता है । मेहमान के आते ही वह सिर काटकर खा लिया जाता है । मेहमान के लिए प्रकल्पित मेमना, जैसे कि मेहमान की प्रतीक्षा करता है, वैसे ही अधमिष्ठ अज्ञानी जीव भी यथार्थ में नरक के आयुष्य की प्रतीक्षा करता है ।
[१८३-१८५] हिंसक, अज्ञानी, मिथ्याभाषी, मार्ग लूटनेवाला बटमार, दूसरों को दी हुई वस्तु को बीच में ही हड़प जानेवाला, चोर, मायावी ठग, कुतोहर-विकल्पना में निरन्तर लगा रहने वाला, धूर्त-स्त्री और अन्य विषयों में आसक्त, महाआरम्भ और महापरिग्रहवाला,