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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
मिले तो पापकर्मों को वर्जित करता हुआ, कामभोगों में अनासक्त रहकर अकेला ही विहार करे।
[५३५] वर्षाकाल में चार मास और अन्य ऋतुओं में एक मास रहने का उत्कृष्ट प्रमाण है । वहीं दूसरे वर्ष नहीं रहना चाहिए । सूत्र का अर्थ जिस प्रकार आज्ञा दे, भिक्षु उसी प्रकार सूत्र के मार्ग से चले ।
[५३६-५३७] जो साधु रात्रि के प्रथम प्रहर और पिछले प्रहर में अपनी आत्मा का अपनी आत्मा द्वारा सम्प्रेक्षण करता है कि मैंने क्या किया है ? मेरे लिए क्या कृत्य शेष रहा है ? वह कौन-सा कार्य है, जो मेरे द्वारा शक्य है, किन्तु मैं नहीं कर रहा हूँ ? क्या मेरी स्खलना को दूसरा कोई देखता है ? अथवा क्या अपनी भूल को मैं स्वयं देखता हूँ ? अथवा कौन-सी स्खलना मैं नहीं त्याग रहा हूँ ? इस प्रकार आत्मा का सम्यक् अनुप्रेक्षण करता हुआ मुनि अनागत में प्रतिबन्ध न करे ।
[५३८] जिस क्रिया में भी तन से, वाणी से अथवा मन से (अपने को) दुष्प्रयुक्त देखे, वहीं (उसी क्रिया में) धीर सम्भल जाए, जैसे जातिमान् अश्व लगाम खींचते ही शीघ्र संभल जाता है ।
[५३९] जिस जितेन्द्रिय, धृतिमान् सत्पुरुष के योग सदा इस प्रकार के रहते हैं, उसे लोक में प्रतिबुद्धजीवी कहते हैं । वही वास्तव में संयमी जीवन जीता है ।
[५४०] समस्त इन्द्रियों को सुसमाहित करके आत्मा की सतत रक्षा करनी चाहिए, अरक्षित आत्मा जातिपथ को प्राप्त होता है और सुरक्षित आत्मा सब दुःखों से मुक्त हो जाता है । -ऐसा मैं कहता हूँ ।
४२ | दशवैकालिक-मूलसूत्र-३-हिन्दी अनुवाद पूर्ण