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अन्तकृद्दशा-३/९ से १३/१४
की । “हे जंबू ! इस प्रकार यावत् मोक्ष-प्राप्त श्रमण भगवान् महावीर ने अन्तगड सूत्र के तृतीय वर्ग के नवम अध्ययन का यह अर्थ प्रतिपादन किया है, ऐसा मैं कहता हूँ ।"
इसी प्रकार दुर्मुख और कूपदारक कुमार का वर्णन जानना । दोनों के पिता बलदेव और माता धारिणी थी । दारुक और अनाधृष्टि भी इसी प्रकार हैं । विशेष यह है कि वसुदेव पिता और धारिणी माता थी । श्री सुधर्मा स्वामी ने कहा-“हे जंबू ! श्रमण यावत् मुक्तिप्राप्त प्रभु ने तीसरे वर्ग के तेरह अध्ययनों का यह भाव फरमाया है ।" वर्ग-३ का मुनिदीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
(वर्ग-४) [१५] "भगवन् ! श्रमण यावत् मुक्तिप्राप्त प्रभु ने आठवें अंग अंतकृतदशा के तीसरे वर्ग का जो वर्णन किया वह सुना । अंतगडदशा के चौथे वर्ग का हे पूज्य ! श्रमण भगवान् ने क्या भाव दर्शाये हैं ? “हे जंबू ! श्रमण यावत् मुक्तिप्राप्त प्रभु ने अंतगडदशा के चौथे वर्ग में दश अध्ययन कहे हैं, जो इस प्रकार हैं
[१६] जालि कुमार, मयालि कुमार, उवयालि कुमार, पुरुषसेन कुमार, वारिषेण कुमार, प्रद्युम्न कुमार, शाम्ब कुमार, अनिरुद्ध कुमार, सत्यनेमि कुमार और दृढनेमि कुमार ।
[१७] जंबू स्वामी ने कहा-भगवन् ! श्रमण यावत् मुक्तिप्राप्त प्रभु ने चौथे वर्ग के दश अध्ययन कहे हैं, तो प्रथम अध्ययन का श्रमण यावत् मुक्तिप्राप्त प्रभु ने क्या अर्थ बताया है ।" हे जंबू ! उस काल और उस समय में द्वारका नगरी थी, श्रीकृष्ण वासुदेव वहाँ राज्य कर रहे थे । उस द्वारका नगरी में महाराज 'वासुदेव' और रानी 'धारिणी' निवास करते थे । जालिकुमार का वर्णन गौतम कुमार के समान जानना । विशेष यह कि जालिकुमार ने युवावस्था प्राप्तकर पचास कन्याओं से विवाह किया तथा पचास-पचास वस्तुओं का दहेज मिला । दीक्षित होकर जालि मुनि ने बारह अंगों का ज्ञान प्राप्त किया, सोलह वर्ष दीक्षापर्याय का पालन किया, यावत् शत्रुजय पर्वत पर जाकर सिद्ध हुए ।
__इसी प्रकार मयालिकुमार, उवयालि कुमार, पुरुषसेन और वारिषेण का वर्णन जानना चाहिये । इसी प्रकार प्रद्युम्न कुमार का वर्णन भी जानना । विशेष—कृष्ण उनके पिता और रुक्मिणी देवी माता थी । इसी प्रकार साम्ब कुमार भी; विशेष-उनकी माता जाम्बवती थी । इसी प्रकार अनिरुद्ध कुमार का भी, विशेष यह है कि प्रधुम्न पिता और वैदर्भी उसकी माता थी । इसी प्रकार सत्यनेमि कुमार भी, विशेष, समुद्रविजय पिता और शिवा देवी माता थी। इसी प्रकार दृढनेमि कुमार का भी । ये सभी अध्ययन एक समान हैं । इस प्रकार हे जंबू! दश अध्ययनों वाले इस चौथे वर्ग का श्रमण यावत् मोक्षप्राप्त प्रभु ने यह अर्थ कहा है । वर्ग-४ का मुनिदीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
(वर्ग-५) [१८] "भगवन् ! यावत् मोक्षप्राप्त श्रमण भगवान् महावीर ने अन्तकृतदशा के पंचम वर्ग का क्या अर्थ प्रतिपादन किया है ? "हे जंबू ! यावत् मोक्ष प्राप्त श्रमण भगवान् महावीर ने अन्तकृत्दशा के पंचम वर्ग के दस अध्ययन बताए हैं ।
[१९] पद्मावती, गौरी, गान्धारी, लक्ष्मणा, सुसीमा, जाम्बवती, सत्यभामा, रुक्मिणी,