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अन्तकृद्दशा-५/१/२०
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अर्थ का आराधन कर अन्तिम श्वास से सिद्ध-बुद्ध-मुक्त हो गई ।
| वर्ग-५ अध्ययन-२ से ८ | [२१] उस काल और उस समय में द्वारका नगरी थी । उसके समीप रैवतक नाम का पर्वत था । उस पर्वत पर नन्दनवन उद्यान था । द्वारका नगरी में श्रीकृष्ण वासुदेव राजा थे। उन की गौरी नाम की महारानी थी, एक समय उस नन्दनवन उद्यान में भगवान् अरिष्टनेमि पधारे । कृष्ण वासुदेव भगवान् के दर्शन करने के लिए गये । जन-परिषद् भी गई। परिषद् लौट गई । कृष्ण वासुदेव भी अपने राज-भवन में लौट गये । तत्पश्चात् गौरी देवी पद्मावती रानी की तरह दीक्षित हुई यावत् सिद्ध हो गई । इसी तरह गांधारी, लक्ष्मण, सुसीमा, जाम्बवती, सत्यभामा और रुक्मिणी के भी छह अध्ययन पद्मावती के समान ही जानना ।
| वर्ग-५ अध्ययन-९, १० । [२२] उस काल उस समय में द्वारका नगरी के पास रैवतक नाम का पर्वत था, जहां एक नन्दन वन उद्यान था । वहां कृष्ण-वासुदेव राज्य करते थे । कृष्ण वासुदेव के पुत्र और रानी जाम्बवती देवी के आत्मज शाम्बकुमार थे जो सर्वांग सुन्दर थे । उन शाम्ब कुमार की मूलश्री नाम की भार्या थी । अत्यन्त सुन्दर एवं कोमलांगी थी । एक समय अरिष्टनेमि वहां पधारे । कृष्ण वासुदेव उनके दर्शनार्थ गये | मूलश्री देवी भी पद्मावती के समान प्रभु के दर्शनार्थ गई । विशेष में बोली-“हे देवानुप्रिय ! कृष्ण वासुदेव से पूछती हूँ यावत् सिद्ध हो गई । मूलश्री के ही समान मूलदत्ता का भी सारा वृत्तान्त जानना । वर्ग-५ का मुनिदीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
(वर्ग-६) [२३] भगवन् ! श्रमण भगवान् महावीर ने छठे वर्ग के क्या भाव कहे हैं ? 'हे जम्बू! श्रमण भगवान् महावीर ने अष्टम अंग अंतगड दशा के छठे वर्ग के सोलह अध्ययन कहे हैं, जो इस प्रकार हैं
[२४] मकाई, किंकम, मुदगरपाणि, काश्यप, क्षेमक, धृतिधर, कैलाश, हरिचन्दन, वारत, सुदर्शन, पुण्यभद्र, सुमनभद्र, सुप्रतिष्ठित, मेघकुमार, अतिमुक्त कुमार और अलक्क कुमार ।
| वर्ग-६ अध्ययन-१, २ [२६] भगवन् ! श्रमण भगवान् महावीर ने छठे वर्ग के १६ अध्ययन कहे हैं तो प्रथम अध्ययन का क्या अर्थ कहा है ? हे जम्बू ! उस काल उस समय में राजगृह नगर था। वहां गुणशीलनामक चैत्य था । श्रेणिक राजा थे । वहां मकाई नामक गाथापति रहता था, जो अत्यन्त समृद्ध यावत् अपरिभूत था । उस काल उस समय में धर्म की आदि करने वाले श्रमण भगवान महावीर गुणशील उद्यान में पधारे । परिषद् दर्शनार्थ एवं धर्मोपदेश-श्रवणार्थ आई । मकाई गाथापति भी भगवतीसूत्र में वर्णित गंगदत्त के वर्णनानुसार अपने घर से निकला। धर्मोपदेश सुनकर वह विरक्त हो गया । घर आकर ज्येष्ठ पुत्र को घर का भार सौंपा और स्वयं हजार पुरुषों से उठाई जाने वाली शिविका में बैठकर श्रमणदीक्षा अंगीकार करने हेतु भगवान्